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09 November 2016

'औरतों के जीवन के खुलेपन की कहानी'

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हालांंकि कुछ श्रोताओं का मानना था कि भारत में भी इस तरह के संबंधों को स्वीकृति मिलने लगी है। कुल मिला कर कहानी ने कई विंदुओं पर खुलकर बहस का अवसर प्रदान किया।

प्रेमचंद विशेषज्ञ और हिंदी संस्‍थान, आगरा के उपाध्यक्ष कमलकिशोर गोयनका का मानना था कि आदमी कहीं भी हो उससे उसका गांव छूटता नहीं है। हां, आज के युवाओं की सोच थोड़ी भिन्न है। भूमंडलीकरण उनमें पूरी तरह समा गया है। सब्बरवाल के कहानी संग्रह उडारीके भूमिका लेखक, युवा कथाकार अजय नावरिया ने कहा कि तेजेन्द्र शर्मा की कब्रकामुनाफा और दिव्या माथुर की पंगा की श्रेणी में इसे भी रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि लंदन में वैयक्तिक आजादी है। हालांकि हम भी उस तरफ बढ़ रहे हैं लेकिन दृष्टि की समस्या है।

वहीं प्रवासीसंसार के संपादक राकेश पांडेय का जोर इस बात पर था कि बाहर जो भारतीय हैं वहां के उनके सुख-समस्याओं और अंतर्द्वंद्व को कहानी का विषय बनाया जाना चाहिए। जब कि अमरनाथ 'अमर' का कहना था कि वहां खुलापन और प्रौढ़ाओं में संबध बनना समय की मांग है। हमारे यहां उन्हें परिवार का सहारा मिल जाता है। लेकिन भारत के महानगर भी अब उसी ओर बढ़ रहे हैं।

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अकादेमी के हिंदी संपादक कुमार अनुपम के स्वागत-आभार के बीच हुई चर्चा में निर्मल वर्मा की लंदनकीएकरात और उषा राजे सक्सेना की वाकिंगपार्टनर का भी विशेष उल्लेख हुआ। प्रदीप पंत, गिरिराजशरण अग्रवाल, सरोज श्रीवास्तव आदि ने भी विचार व्यक्त किए।  

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TAGS: आदमी, जीवन, औरत, कहानी, खुलापन, story, life, woman, open culture
OUTLOOK 09 November, 2016
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