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21 February 2017

‘हुत’ में बिश्नोई का काव्यपाठ : कथ्य की हुई सराहना

        मंडी हाउस (नई दिल्ली), के अबुल फजल रोड स्थित एमसीडी पार्क में श्रोताओें ने अस्फुट पाठ की शिकायत की तो एक का सत्येन्द्र प्रकाश और दो कविताओं का पाठ सुशील कुमार ने किया। संचालक प्रकाश और प्रथम वक्ता आशीष मिश्र ने विषय की पकड़ को सराहते हुए कहानी-सी सपाटता और कसाव की कमी (लबाई भी वजह हो सकती है) की बात की। हालांकि प्रमोद कुमार इससे सहमत नहीं थे। उनका मानना था कि इनकी कविताओं में अनुभव और अध्ययन बोलता है। इनके यहां पौराणिक पात्रों से ले कर आज के समाज के प्रतिनिधि और स्थितियों की सटीक उपस्थिति मिलती है। जबकि, युवा अध्येता सुशील ने कविताओं में ‘मृत्युबोध का खूबी से वर्णन’ को रेखांकित किया। कवयित्री अनुपम सिंह ने ‘राजनीति के बारीकी से समावेश’ को पहचाना। रवीन्द्र के दास और कुमार वीरेन्द्र ने पूर्व में पढ़ी कविताओं की प्रशंसा की और शब्द और विंबों के चयन पुराने कवियों की याद दिलाते हैं। हालांकि, कविताओं में आई कमजोर ना का मतलब हां से कम नहीं है, करुणा और दमनीयता के बीच अटूट इलास्टिक,… सारी बस्तियां बाजार बन गईं और घूंघट में ढंकी-मुंदी कविता नहीं होती आदि पंक्तियां इस बात की पुष्टि करती हैं कि आधी सदी से चित्रकला और कविता पर समान रूप से तूलिका और कलम चलाने वाले बिश्नोई जी के धनात्मक पक्ष को जानने के लिए उनकी कविताओं को पढ़ा जाना चाहिए। अंत में आए वरिष्ठ कवि-उपन्यासकार उद्भ्रांत ने लोगों को मंतव्य पत्रिका का ‘उद्भ्रांत के संस्मरण’ वाला अंक दिखाया। संयोजक इरेन्द्र बबुआवा ने आभार व्यक्त किया।  

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TAGS: ‘हुत’-काव्यपाठ, छत्तीसवें, बजरंग बिश्नोई, 1964, धर्मयुग, पहली कविता, खामियों, सराहना
OUTLOOK 21 February, 2017
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