जीवन के आयामों का आइना पॉल की तीर्थयात्रा
तरक्की के रास्ते पर तेज रफ्तार दौड़ते कदमों को परिवार और उसकी जिम्मेदारियां पैरों में बेड़ी का अहसास कराने लगी हैं शायद, तभी जिम्मेदारियों की जंजीरों ने तेज दौड़ते कदमों की रफ्तार सुस्त की, इंसान ने इससे भी अपना पीछा छुड़ाने का इंतजाम करना शुरू कर दिया और अब एक नए संसार की तरफ कदम बढ़ाता दिखने लगा है। जिसे सिंगल फादर या सिंगल मदर का नाम दिया जा रहा है। वह कौन से अहसास और संस्कार हैं, जिनकी बदौलत वाकई में परिवार, समाज और सभ्यता के इंद्रधनुषी रंग इंसान को अपनी जिंदगी में भरने की इच्छा फिर से पनपने लगती है। इसी पूरे सिलसिले का नाम है पॉल की तीर्थयात्रा।
डेनमार्क में रहने वाली भारतीय मूल की अर्चना ने पॉल की तीर्थयात्रा में इस विषय को बेशक किस्तों में कहे गए एक किस्से के जरिए छूने की कोशिश की है मगर उनकी इस कोशिश में दर्द की वह तस्वीर भी नजर आ जाती है जिसके दायरे से जो गुजरता है शायद उसे ही इसका अहसास हो सकता है। समझने की कोशिश भी नहीं करना चाहता और यही बात उस समाज का सबसे खास हिस्सा भी हो जाती है, जहां इन लोगों की कुंठाओं को पनाह मिलती है। यकीनी तौर पर इस पुस्तक के जरिए अर्चना पैन्यूली उन लोगों को दीक्षित करती महसूस होती है जो अपनी यादों और अपने सुख दुख की परतों में सिमटकर अपना वजूद तलाश करने की जद्दोजहद करते हैं।
पुस्तक – पॉल की तीर्थयात्रा
लेखक – अर्चना पैन्यूली
प्रकाशक – राजपाल एंड संस
मूल्य – 655 रुपये