Advertisement
07 February 2022

यादें: एडवांस मैथ इश्क, रोटोमैक और 'सफर तो छोटा रहा तुम्हारे साथ पर तुम...'

राशियों के चरित्र में परिवर्तन होता रहता है। ग्रह भी अपने घर बदलते रहते हैं। आनंद के ग्रहों ने भी उस महीने घर बदल लिया था। वह आखिर कब तक हर्षवर्द्धन और पंकज जैसे दोस्तों की कहानियों का हिस्सा बनता? अब तक वह दूसरों की कहानी में दीपक तिजोरी बना घूम रहा था पर जैसे घूरे के भी दिन फिरते हैं, आनंद के भी फिरे। स्कूल से एक साँझ लौटने पर घर में आयी एक मूरत दिखी। माँ ने बताया - 'तुम्हारे विनय भैया की साली है। यहाँ एडवांस मैथ की तैयारी करने आयी है ताकि दसवीं की परीक्षा ठीक से दे सके। यही रहेगी कुछ समय।'- विनय भैया मामा के बेटे थे और उनकी शादी जिले के दियारे में हुई थी। भैया की साली! आनंद की आँखों के आगे माधुरी-सलमान 'धिकताना धिकताना' कहते तैर गए और मन में 'बेचैन हैं क्यों मेरी नज़र...हम आपके/ आपके हैं कौन' बजने लगा। अब तक स्कूल से भाग इधर-उधर दिन भर टंडैली काटने के बाद, गाँव के ग्राउंड में क्रिकेट खेल, सांझ ढले घर में घुसना ही आनंद की फितरत में शामिल था। जब घर में यह नया शाहकार नमूदार हुआ है तो कोई क्योंकर बाहर रहे? तभी माँ की आवाज़ से सलमान-माधुरी गायब हुए। माँ लड़की को बता रही थी -'यही आनंद है बेटा! यह भी तुम्हारी तरह इसी साल दसवीं देगा। इसके पास भी एडवांस मैथ ही है' - लड़की मुस्कुराकर हौले से बोली - 'अरे वाह! तब तो आप महतो सर से पढ़ते होंगे, हैं ना?' - भाग्यश्री की माधुरी के कैलकुलेशन में डूबे आनंद को हड़बड़ाना तो नहीं चाहिए था पर पहली बार में ऐसे मामलों में सिंगल और जवान होता लड़का तो हिल ही जाता है। हड़बड़ाने में उससे 'जी' के आगे कोई और जवाब नहीं सूझा।  लड़की देखने में ठीक-ठाक थी और प्रथमदृष्टया विनम्र भी लग रही थी। पता लगा, लड़की ने एडवांस मैथ्स लिया हुआ था और गाँव में कोई ढंग का टीचर नहीं मिलने की वजह से उसको मजबूरन शहर आना पड़ा है। इधर जिले में एडवांस मैथ्स पढ़ाने में महतो सर के नाम की धूम दूर-दूर तक थी। यह जानकारी आनंद के लिए नई थी। अब लड़की क्या आयी, आनंद के लिए बोधिवृक्ष हो गयी। आनंद को उससे पहले ही रोज ज्ञान मिल गया 'एडवांस मैथ', 'महतो सर'! और बताओ 'मैं तो यूँ ही टाइम बर्बाद कर रहा हूँ! लोग कितने सीरियस हैं!! पर खाल इतनी मोटी हो चली थी कि आना चाहिए था खुद की करनियों पर शर्म पर हुआ उल्टा। आनंद बाबू को लड़की पर प्यार आ गया। रात जैसे-तैसे करवट बदलते गुजरी, सुबह स्कूल के साथियों से इस बात का जिक्र न करता तो उसके पेट का पानी न पचता। हालत यह थी कि सिनेड़ी मन में कई रंगीन बुलबुले उठने-उड़ने-फूटने लगे थे, भाभी की बहन, भैया की साली! उँहु!! आनंद उत्साह में करवट फेर गया। दिमाग में यह उथल थी कि कल से घर में अच्छा बनकर रहना है। पिताजी को डाँटने का एक मौका न दूँगा, खूब पढ़ूँगा तीन महीने। इमेज अच्छी रहनी चाहिए। आज दिल के रेडियो में "देखा जो तुमको/ ये दिल को क्या हुआ है/ मेरी धड़कनों में ये छाया क्या नशा है/मोहब्बत हो न जाए"- लगातार बज रहा था। ग्रुप में पंकज की पदवी चचाजान वाली थी। पहले तो वह आनंद की स्थिति जान भीतर ही भीतर उसकी अच्छी किस्मत पर कुढ़े पर आदतन सलाह दे मारी - 'बेटा! सिन्सियरली पढ़ना। अब महतो जी के यहाँ तुम्हारे साथ ही एडवांस का क्रैश कोर्स करेगी? अब तो दबाव भी हो जाएगा कि उससे बेहतर परफॉर्म करना है।'- हर्षवर्द्धन दोस्त की ओर से कूदा - 'अरे आनंद परेशान नहीं होना है। भैया की साली है। साथ पढ़ो, समझो-समझाओ, हँसी-मजाक का रिश्ता है लोड नहीं लेना है। चलने दो, सब आराम से। चचवा की बात का ध्यान न दो।'- आनंद लटकेम्पू बना हुआ था। एक राय पर पंकज की ओर दूसरी पर हर्ष की तरफ हो रहा था। तभी महेश बोला -  'कैसी है बे? देखनउक है?'- लटकेम्पू इस बात पर बमककर स्थिर हुआ - 'महेश हमको ये सब पसंद नहीं है। अच्छी लड़की है। रिश्तेदार भी है...'- आमतौर पर आनंद किसी भी मामले में पूरा शांतिप्रिय द्विवेदी बना रहता था पर उसके इस प्रोटेस्ट पर सबकी आँखें आने वाली किसी अज्ञात आशंका से सहम गईं। पंकज ने बात संभाली -'ठीक है ! गरम मत हो। पसंद है तो कोई बात नहीं। तुम बस सीरियस हो जाओ अब।'- सबकी समझ में आ गया था कि आनंद अब संजीदा हो गया है। ग्रुप को यह पता था कि उनमें से कोई संजीदा हुआ, मतलब वह डिफेक्टिव हो गया,  ग्रुप से दूर हो गया। खैर! यह जीवन की रीत है क्या कर सकते हैं।

दोनों का सुबह-सुबह महतो सर की कोचिंग में जाना शुरू हो गया। पहले दिन तो आनंद को देखते ही महतो जी बोले थे - 'क्या जी! स्कूल में तो एकदमे लखेरा हो, यहाँ क्रैश कोर्स से बेड़ा पार कराने आये हो तो बाप की इज्जत न डुबा देना!'- आनंद तिलमिलाकर रह गया। लड़की दूसरी ओर बैठी थी ठठाकर हँस दी थी। लड़की मुस्कुराने ठठाकर हँसने तक आगे बढ़ी थी! हाँ ! बिल्कुल! यह प्रगति आनंद ने देखी थी। आग और घास थोड़े सहज हो गए थे। स्वाभाविक भी था, एक रिश्ता, एक घर, एक कोचिंग और रोज का साथ। फिर दोनों शाम को बरामदे में चौकी पर साथ ही पढ़ते थे। नदी के एक छोर का पता नहीं था पर लड़के वाले छोर ढलान दिनों-दिन बढ़ती जा रही थी।

एक सुबह आनंद छत पर खड़ा था, तभी लड़की कपड़ा पसारने आयी और  झटके में पूछ लिया -'आप तो पूरा बदमाशी करते है न स्कूल में? छुटकी बता रही थी। '- और आनंद ने साँस संभाली और मुस्कुराकर बस इतना ही कहा - "भक्क! वह बदमाश है ऐसे ही कहती है।"-  इस 'भक्क' में उसने कई रंग देखे जीवन के। लड़की हँसकर वापिस नीचे चली गयी। आनंद ने उसके पसारे कपड़ों को चोरी से छूआ और तुरंत कलेजे की धड़कन संभालने लगा। सच तो यही था कि इस किनारे से वह धीरे-धीरे भैया की साली नहीं, आनंद के खुद के आने वाले भविष्य की सुंदर दुनिया लगने लगी थी - भला हो एडवांस मैथ का। वरना कहाँ मुलाकात होनी थी। एक सुबह घर में सत्यनारायण की कथा के समय, जब उसने लड़की को पीले सलवार-कुर्ते में में देखा तो वह विद्यापति की सद्य:स्नाता नायिका-सी लगी। उस पूरे दिन आनंद का जी चाहा - "काजल का एक तिल तुम्हारे लबों पे लगा दूँ/चँदा और सूरज की नजरों से तुमको बचा लूँ/पलकों की चिलमन में आओ मैं तुमको छुपा लूँ/ ख़यालों की ये शोखियाँ माफ हों "- पर फिर वही कमबख्त ज़माना और जमाने की तथाकथित लोक-लाज-मर्यादा आड़े आ गयी थी। इसने ना जाने कितनी जानें ली हैं। सैटेलाइट बना आनंद मन मसोसकर रह गया था। 

Advertisement

अब यह गाहे-बगाहे होने लगा था कि लड़की कभी कुछ कहती, फिर हँसती और इधर-उधर में चली जाती। कोचिंग के रास्ते कोई खास बात न होती। उसका मन रोज भूमिका रचता, यह कहना है वह कहना ही है पर कैसे कहे, वह आती है तो उसके मुँह से बकार नहीं फूटता है कि कम-से-कम वह यही कह दें -'देखो जी! पढ़ाई सीरियसली चल ही रहा है और हमारा तुम्हारा रिश्ता मजाक वाला हइये है फिर मेरे मन में तुमको लेकर कोई छौ-पाँच नहीं है। हमको तुम पसंद हो। सो आओ "आज हम तुम ओ सनम मिलके ये वादा करें /मैं तेरे दिल में रहूँ तू मेरे दिल में रहे"- लेकिन अकेले में की जा रही बड़बड़ाहट की हिम्मत को पंख नहीं लगते थे। महीना बीतते सब अपनी गति में चलने लगे थे, घर, ट्यूशन, स्कूल, शाम की पढ़ाई और यहाँ तक कि दोनों की बात और आपसी संबंध भी। एक चीज ही बढ़िया हुई थी वह थी सहजता।

लड़की सुबह की कोचिंग के बाद दिन में घर पर ही रहती थी। उसका दाखिला देहात के हाई स्कूल में था, सो उसको स्कूल की चिंता न थी। पर आनंद कोचिंग के बाद स्कूल जाते वक्त भारी मन से जाता और लौटते वक्त उड़न्तू बनकर लौटता। उसका यह बड़ा परिवर्तन शुरू के दिनों से ही दोस्त भी महसूस कर रहे थे। उसकी उड़न्तूगिरी देख पंकज ने शुरू में ही हर्ष से आशंका जताई थी - 'क्या लगता है? जिस तरह जा रहा है, जल्दी ही लड़किया को लभ लेटर दे देगा क्या?' हर्षवर्द्धन आनंद की जिंदगी का 'राहुल रॉय' था। उसको अपने दीपक तिजोरी की हालत का अंदाजा था उसने आनंद को दूर जाता देख कहा था -"प्यार का पहला खत लिखने में वक़्त तो लगता है/नए परिंदों को उड़ने में वक़्त तो लगता है"। महेश को महीन बातें समझ नहीं आती थी, उसने दो टूक कही थी - 'इसका कटेगा देखना।'

उसमें आया यह बदलाव बाहर ही नहीं घर में भी नोटिस हो रहा था। घर में लड़की और छुटकी में सखियापा हो गया था। छुटकी ने एक रोज उस लड़की से कहा - 'भैया, आजकल पूरा ऋषि कपूर टाइप सुपुत्र बने हुए हैं, पहले तो एकदम गायब रहते थे। खाली सिनेमा, क्रिकेट, लफ़ण्डरई और आजकल देखिए बड़ा टाइमली हो गए हैं।'- आनंद ने दरवाजे की ओट से यह सुन लिया था और उसने देखा था कि इस बात पर लड़की खिलखिलाकर हँसी थी। वह पहले ही उसके प्रति मखमल हुआ जा रहा था, अब बात-बेबात पर मुस्कुराने हँसने- ठठाकर हँसने के बाद तो अब एकदम पसर का पानी ही हुआ जा रहा था। छुटकी और लड़की की बात के बाद उस रात किसी ने आनंद के कमरे की ओर कान दिया होता तो उसकी गुनगुन साफ सुन सकता था - "उड़े खुश्बू, कली महके/ ये रूत बदले बहार आये/ मोहब्बत करने की जानम/ उम्र तो एक बार आये/ तुम्हें प्यार करने को जी करता है/ इकरार करने को जी करता है/ तुम जो ना होते तो दिल ना लगाते"।

हमारे उधर हवाएँ पुरुआ, पछुआ में समझी जाती हैं, पर इन दिनों में। वह आनंद के लिए एडवांस मैथ और उसका असर टाइप हो चली थी। ऐसे मामलों में ऐसा हो ही जाता है। ट्यूशन और पढ़ाई दोनों गम्भीरता से चल रहे थे। अब समय के साथ लड़की के बारे में एक बात आनंद भी साफ जान गया था कि वह पढ़ाई में उससे बीस है उन्नीस नहीं। परिणाम वह भी शिद्दत से पढ़ने लगा था।

दोस्तों के पेट में खलबली मची हुई थी। इसी क्रम में दोस्तों ने नरेश कैसेट वाले से आनंद के इन दिनों के पसंदीदा गीतों की लिस्ट पूछ यह अंदाजा लगा लिया था कि लड़का डिरेल हो चला है। गीतों की लिस्ट जान पहली बार हर्ष की भी पेशानी पर बल पड़ा - 'हद है ! कहाँ तो अपना भाई एक रोज राजू वीडियो में अश्विनी भावे के 'मैं शरमा के रह जाती हूँ, जब कोई कबूतर बोले" गीत पर टी-शर्ट लहराकर नाचा था और कहाँ तो ये आलम है कि अब वह लूप में "खोई खोई आँखों में सजने लगे हैं सपने तुम्हारे सनम", "ऐ काश के हम होश में अब आने ना पाएं" और "तुझसे क्या चोरी है/तेरी आँखों की मस्ती मेरी कमजोरी है"- सुन रहा है।'- मामला संगीन हो चला था। चचा ने सांत्वना दी -'जाने दो! उसको हम अच्छे से जानते हैं। है डेविड धवन और बनने चला है यश चोपड़ा। चार दिन की चांदनी है। लौटके हमलोगों के पास ही आएगा।'

ख़ैर! कुछ और समय बीता। वक़्त के पैरों में लगा पहिया घूमकर वहाँ भी पहुँचा, जहाँ मिलन के बाद जुदाई का सीन आता है। लड़की परीक्षा देने अपने घर चली गयी। उस रोज पहली बार आनंद को अपना घर देखकर यह लगा था कि उसका घर कितना खाली, कितना वीरान और कितना उदास है। वह झुके कंधों से अपने कमरे की ओर गया तो उसने देखा कि लड़की ने आनंद के टेबल पर रोटोमैक पेन और थैंक यू के साथ आल द बेस्ट फ़ॉर एक्जाम का एक नोट छोड़ा था। रोटोमैक! झुके कंधों में हरकत हुई, भूकभुकाता चेहरा, ट्यूबलाइट की तरह चमक उठा। रोटोमैक, उसने टीवी पर इस कलम का विज्ञापन देखा था - 'लिखते-लिखते लव हो जाए।'- उफ्फ़! तो क्या वह भी? आनंद के बिस्तर पर अब तकिए चादर के साथ रोटोमैक भी सोने लगा था। रोटोमैक ने मलहम का काम किया। किसी रात कलम कहता - "आएगी हर पल तुझे मेरी याद" तो किसी शाम गाता - "आके तेरी बाहों में हर शाम लगे सिंदूरी"- अभी परीक्षा में कुछ दिन थे। दर्द हल्का हुआ था। पर फिर भी लाख रोटोमैक पास हो,  कमबख्त ये परीक्षा न होती तो आनंद चीख कर कह देता -"वक़्त कटे नहीं कटता है तेरे बिना मेरे साजन"। - बहरहाल, परीक्षा के बाद ही सही, कहना तो है ही, बस कुछ दिन और। आगे की पढ़ाई के लिए उसको यहीं आना है। यह बड़ी उम्मीद थी।

टीचर्स ने इस बार की परीक्षा का बड़ा हौवा बनाया हुआ था कि इस बार एक्जाम टाइट होगा, नो चीटिंग। यह पहले मजाक लगा फिर मजाक भयावह सच में बदल गया। परीक्षा का भयावह दौर बीता। वह एक रोज अपने पिता के साथ परीक्षा के बाद आयी। मुलाकात हुई, आनंद का हालचाल भी पूछा और पेपर कैसे गए यह भी पर वह नहीं जो आनंद सुनना चाहता था। आनंद उसको कह देना चाहता था "देखो कैसा बेकरार है ये भरे बाजार में/यार एक यार के इंतज़ार में/ सावन बरसे तरसे दिल"- पर जबान ने मन के साथ बेवफाई कर दी। इस शुष्क मुलाकात से तीन महीने की कहानी वह तीस महीनों वाली लगने लगी थी। आनंद ने सुना कि जाते वक्त उसके पिता ने उसके पापा से कहा - 'आपका एहसान रहा हम पर भाई साहब, वरना इसका एडवांस मैथ इसका रिजल्ट खराब कर देता। पेपर अच्छे गए हैं। उम्मीद है रिजल्ट अच्छा आएगा।  अब आगे गोरखपुर भेजना है पढ़ने के लिए। इसका डॉक्टर बनने का मन है।'- कहने वाले कहकर चले गए, निष्ठुर नायिका से नायक कुछ कह न सका। नायिका तो खैर कोई और ही लगी थी। एकाएक तीन महीने का वह आभासी प्रेम जो तीस महीने सरीखा लग रहा था, एक झटके में सश्रम उम्रकैद में तब्दील हो गया था।

अब आनंद को अपने माता-पिता पर गुस्सा आ रहा था वह इन लोगों को मुस्कुराकर कैसे विदा कर सकते हैं। वह दोनों चले गए। आनंद ने पाया कि लड़की ने रिक्शा के पीछे के पर्दे को उठाकर उसको बाय जरूर किया था। तभी उसी समय एक मिनी ट्रक अपनी पीठ पर लिखा इस जीवन का दर्शन आनंद को देता गुजर गया 'सफर तो छोटा रहा तुम्हारे साथ/पर तुम याद उम्र भर रह गए।' 

बहरहाल, जीवनचक्र है, कोई जाता है तो कोई आता है। वह गयी तो रिजल्ट आया। घर वालों का माथा ठनका। आनंद ने भी रिजल्ट देखा था, हर्षवर्द्धन ने भी चचा पंकज और महेश ने भी, असल चीज है दोस्ती, सब लटके मिले। सब एक साथ एक जैसा रिजल्ट शेयर कर रहे थे। लेकिन कमाल देखिए, आनंद और पंकज डरावने पत्र एडवांस मैथ में पास हो गए थे। पर उन दोनों को संस्कृत ले डूबा था। आनन्द ने कहा -'साला! एडवांस मैथ, तुम्हारे चक्कर में संस्कृत ले डूबा, लानत है!!- और लड़की ? अजी छोड़िए उसको जहाँ जाना था वहीं गयी और फिर वह भगवती चरण वर्मा का उपन्यास भी हो गयी अर्थात वह फिर न आई।

अब आप कहेंगे - और रोटोमैक ! धत महाराज!! 'रोटोमैक इश्क' की स्याही कोई गूलर का फूल थोड़े थी, रिफिल कब की खत्म हो गयी थी और लिखते-लिखते लव का तो पता नहीं पर मार्किट में अब रेनॉल्ड्स आ गया था फिर फिल्मों के सेकेंड लीड दीपक तिजोरी को हीरोइन कब मिली थी? सेकेंड लीड का इश्क भी भला कोई इश्क हुआ? आनंद भी अलग न था। दोस्तों की आँखें अनुभवी थीं और अनुभवी आँखों की आशंका भी गलत हुई है भला। राशियों, ग्रहों में परिवर्तन तो ज्योतिष का नियम है और आनंद इससे परे नहीं था।

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं)

 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: नॉस्टेल्जिया, नब्बे के दीवाने, कहानी, एमके पांडे, Nostalgia, Nabe Ke Deewane, MK Pandey
OUTLOOK 07 February, 2022
Advertisement