माता को ई-मेल फोगाट की आवाज में
जिद्द है हरियाणा में रहना
गजेंद्र फोगाट का कहना है कि लोग बॉलीवुड में किसी भी तरह कदम रखने के लिए कड़ा संघर्ष करते हैं। वे सपनों की नगरी मुंबई का रुख करते हैं लेकिन मेरी जिद्द थी कि मैं हरियाणा में रहकर बॉलीवुड में कदम रखने के लिए संघर्ष करूंगा। मुझे खुशी है कि आज हरियाणा में रहते हुए मैंने बॉलीवुड में सफलता पाई।
घर में गजेंद्र की गायकी का विरोध
झज्जर के छोटे से गांव मलकपुर के मध्यम आर्थिक जाट परिवार में जन्मे गजेंद्र पर भी बाकियों की तरह दबाव था कि वह खेती संभालें या खेलों में जाएं। वह बताते हैं कि ‘मेरे पिता को मेरी गायकी से नफरत थी। वह कहते थे जाट होकर भांड वाला काम करेगा ? चोरी-चोरी मैं गीत गाता, बजाता और पिता के घर आने से पहले संगीत वाद्य यंत्र छिपा देता।’ गायकी के फलक पर गजेंद्र को घर में कोई सहयोग नहीं कर रहा था।
सफलता की कहानी
इतने विरोध और बिना सहयोग के सफलता की यह छलांग गजेंद्र ने लगाई तो कैसे लगाई ? इसपर वह कहते हैं कि ‘मैं बास्केटबॉल का राष्ट्रीय चैंपियन था। रोहतक कॉलेज से फिजिकल एजूकेशन में एमए कर रहा था तो हरियाणवी रैप में घरवालों से चोरी एक एलबम निकाली। एलबम निकलने पर पहली दफा अपनी खुशी पिता से छिपाने का मन नहीं माना लेकिन पिता जी ने उसे मेरे मुंह पर दे मारा।’ फोगाट को पहली सफलता तब मिली जब वह 1997 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में हरियाणा दिवस पर हुए कार्यक्रम में बेस्ट सिंगर चुने गए। फिर 1999 में डीडी मेट्रो पर आने वाले रियल्टी शो में विजेता रहे, जहां भप्पी लहरी ने उनकी आवाज की प्रशंसा की। फोगाट के अनुसार फिर वह सरकारी नौकरी में आ गए। यहां-वहां जहां मौका मिला घरवालों से चोरी गाने का सिलसिला जारी रहा। फोगाट को सहयोग मिला तो तकनीक का मिला। उन्होंने अपने गीत रिकॉर्ड कर यूट्यूब पर डालने शुरू कर दिए। उन्हें कई पंजाबी के गायकों के साथ गाने का मौका मिला।
जिद्द और जुनून के सामने पिघले पिता
गजेंद्र के अनुसार कई दफा ऐसा हुआ जब वह कार्यक्रमों में गाने के लिए जाया करते तो उनके पिता उनके कमरे की बाहर से कुंडी लगा देते। वह बताते हैं हालांकि उनके पिता उन्हें बहुत प्यार करते थे लेकिन ग्रामीण समाज वह भी जाटों में गायन को बुरा माना जाता था। गजेंद्र की इच्छा थी कि वह नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में जाएं लेकिन पिता जी ने दिल्ली जाने का भाड़ा नहीं दिया। उन्हें वह दिन कभी नहीं भूलता जब उनके पिता ने उनका गाया एक गीत गाना शुरू किया। वह बताते हैं कि ‘यह ठीक पिता जी की मौत से दो दिन पहले की बात है जब उन्होंने उन दिनों मेरा गाया एक मशहूर गीत गाना शुरू किया-पाणि आख्यां का बिना बात के आया न ’ यानी पुत्र की जिद्द और जुनून के सामने पिता आखिरकार पिघल गए। लेकिन दो दिन बाद उनकी मौत हो गई। आज गजेंद्र को अपनी इस सफलता पर अपने पिता की कमी बहुत खल रही है।