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19 May 2017

गेहूं, गन्ना और गन के इलाके वाले नवाजुद्दीन

घूरे फिरने के बारह साल और नवाज

ऐसा कई बार हुआ जब नवाजुद्दीन को भी लगा कि उन्हें अपने घर लौट चलना चाहिए। लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव बुढ़ाना लौटने का मतलब था, दोस्तों के सामने हेठी कि मुंबई में कुछ नहीं कर पाए। नवाजुद्दीन हंसते हुए कहते हैं, छोटे मोटे बहुत सारे काम किए। जब भी हार कर लौटने का मन बनाता बस तभी अम्मा का कहा वाक्य याद आ जाता, बारह साल में तो घूरे (कचरे) के भी दिन फिरते हैं, तू तो इंसान है बेटा। बाद में यह वाक्य मैंने अपने अंदर इतनी गहराई से उतार लिया कि कोई भी मुझे डिगा न सके। नतीजा सामने है। नवाज हंस कर कहते हैं, मेरी मां को फिल्म में मेरे किरदार या कहानी से ज्यादा इस बात की चिंता रहती है कि मैं दिख कैसे रहा हूं। मां को कहानी फिल्म बहुत पसंद आई थी क्योंकि उस फिल्म में मुझे अच्छे कपड़े पहनने को मिले थे!

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अभिनेता से पहले बावर्ची

नवाज गए तो थे अभिनेता बनने लेकिन मुंबई किसी पर दया नहीं करता है इस बात से वह अंजान नहीं थे। कमरे का किराया देने लायक पैसे जेब में नहीं थे सो एक दोस्त ने इस शर्त पर अपने साथ रखा कि नवाज उनके लिए खाना बनाएंगे। अभिनय से पहले वह कुशल गृहिणी की तरह खाना बना कर अपने लिए काम खोजने निकलते थे।

 

अभिनय का पहला स्कूल रामलीला

नवाजुद्दीन बचपन से अपने गांव में होने वाली रामलीला में अलग-अलग किरदार निभाते थे। यह अलग बात है कि कुछ मौका परस्त लोगों ने उन्हें रामलीला में अभिनय नहीं करने दिया। लेकिन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय आने से पहले वह अभिनय का स्कूल रामलीला को ही मानते हैं।

 

गेहूं, गन्ना और गन

अपने गांव से नवाजुद्दीन सिद्दीकी को बेइंतहा प्यार है। वह कहते हैं मेरे गांव में लोग बस गेहूं, गन्ना और गन ही समझते हैं। बाकी बातें उनके लिए दूसरी दुनिया की होती हैं। इन तीन बातों के इर्द-गिर्द सिमटी दुनिया के बीच नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने बॉलीवुड में अपनी जगह बनाई है जहां अवसर काबिलियत के बजाय त्वचा के रंग और शरीर की लंबाई पर काम मिलता है। लेकिन लंबाई से क्या होता है, कद तो काम से ही बनता है। मंटो के किरदार में नवाजुद्दीन का सभी को इंतजार है। 

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TAGS: nawazuddin siddiqui, gangs of vasyepur, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, गैंग्स ऑफ वासेपुर
OUTLOOK 19 May, 2017
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