बेहमई सामूहिक नरसंहार मामले की केस डायरी गायब, फैसला 24 जनवरी तक के लिए फिर टला
उत्तर प्रदेश के चर्चित बेहमई के सामूहिक नरसंहार पर करीब चार दशक बाद शनिवार को आना वाला बहुप्रतीक्षित फैसला केस डायरी के गायब होने के कारण फिर टल गया है। अदालत ने अब फैसले की तारीख 24 जनवरी तय की है।
स्पेशल जज (यूपी डकैती प्रभावित क्षेत्र) सुधीर कुमार ने मामले की केस डायरी उपलब्ध न होने पर अदालत के कर्मचारियों के प्रति नाराजगी जाहिर की और केस डायरी को 24 जनवरी से पहले अदालत में पेश करने को कहा है। साथ ही स्पेशल जज ने संबंधित क्लर्क का जवाब तलब किया है। इससे पहले कोर्ट ने 6 जनवरी को बचाव पक्ष की दलील पर फैसले के लिए 18 जानवरी की तारीख तय की गई थी।
जिला सरकारी वकील (आपराधिक) राजीव पोरवाल ने बताया कि जज ने अदालत के रिकॉर्ड से मूल केस डायरी गायब होने का पता लगने के बाद फैसले को स्थगित कर दिया। केस डायरी गायब होने के मामले में अदालत ने क्लर्क को नोटिस जारी किया है तथा इसे तलाशने के सख्त निर्देश जारी किए गए हैं। हालांकि केस डायरी के गायब होने की बात हाल ही में सामने आई हैं। उन्होंने इसके पीछे किसी साजिश से इनकार किया है।
हाई कोर्ट जा सकते हैं पीड़ित पक्ष
शिकायतकर्ता के एक वकील ने कहा कि फैसले में अनावश्यक देरी और मूल केस डायरी रहस्यमय ढंग से गायब होने के लिए मामला ट्रांसर्फर कराने के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल की जाएगी।
बता दें कि राजपुर थाना क्षेत्र के बेहमई गांव में फूलनदेवी के गैंग ने 14 फरवरी 1981 को गांव के कई लोगों को एक जगह एकत्र कर उन्हें गोलियों से भून दिया था। इसमें 20 लोगों की मौत हो गई थी। इस नरसंहार ने पूरे देश को हिला दिया था। 39 साल बाद इस मुकदमे में फैसला होना है।
सात अभियुक्त हैं जिंदा
नरसंहार की मुख्य आरोपित रही दस्यु फूलन देवी के अलावा बाबा मुस्तकीम की पहले ही मौत हो चुकी है। पोशा, भीखा, विश्वनाथ और श्यामबाबू पर फैसला आना है। गैंग का एक सदस्य पोसा ही अब जेल में है। इस वक्त मामले के कुल सात अभियुक्त जिंदा हैं। उनमें से मानसिंह समेत तीन डकैत आज तक फरार हैं, उनकी फाइल अलग की जा चुकी है।
फूलन ने किया था आत्मसमर्पण
फूलन ने वर्ष 1983 में मध्य प्रदेश पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। वर्ष 1996 में फूलन समाजवादी पार्टी के टिकट पर मिर्जापुर से सांसद चुनी गयी थीं। उसके बाद वह 1999 में भी सांसद बनीं। फूलन 11 साल तक मध्य प्रदेश की ग्वालियर और जबलपुर जेल में रहीं और वर्ष 1994 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव द्वारा फूलन के खिलाफ मुकदमा वापस ले लिये जाने पर उन्हें रिहा कर दिया गया। हालांकि कानपुर की अदालत ने यादव के निर्णय को खारिज कर दिया था और उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को बहाल रखा था।