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09 January 2019

इस व्यक्ति की सिफारिशों पर पीएम मोदी ने खेला आरक्षण का दांव, जानिए पूरा घटनाक्रम

File Photo

आगामी लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार के मास्टरस्ट्रोक 'सामान्य वर्ग आरक्षण' के लिए मंगलवार का दिन बेहद अहम रहा। क्योंकि सभी धर्मों के सामान्य वर्ग के लोगों को 10 फीसदी आरक्षण देने के लिए संविधान में लाया गया संशोधन बिल मंगलवार को लोकसभा में पास हो गया। 

लोकसभा में मंगलवार को पेश किए गए 'सामान्य वर्ग आरक्षण' बिल को लेकर कुल 326 सांसदों ने मतदान किया, जिनमें से 323 ने संशोधन का समर्थन किया, जबकि 3 सांसदों ने बिल का विरोध किया। यानि सामान्य वर्ग को आरक्षण देने वाला संशोधन बिल लोकसभा में उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई से ज्यादा बहुमत से पास हो गया। अब यह बिल राज्यसभा में पेश किया जाएगा।

ऐसा बताया जा रहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र सरकार ने सामान्य वर्ग को आरक्षण देने के फैसले पर काफी गोपनीयता बरती थी। इस फैसले को लेकर पिछले दिनों एक कैबिनेट नोट तैयार किया गया था, खबर लीक न हो इसलिए इस फैसले को बिल्कुल आखिर वक्त पर कैबिनेट के एजेंडे में जोड़ा गया। इसके लिए सोमवार को खास तौर से कैबिनेट बुलाई गई और इसका ऐलान किया गया। कैबिनेट नोट यूपीए के वक्त बने सिन्हा कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर तैयार किया गया।

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  आइए जानते हैं उस शख्स के बारे में जिनकी सिफारिशों पर लोकसभा चुनाव 2019 से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग को 10% आरक्षण देने का दाव खेला।

सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग को आरक्षण देने का फैसला सिन्हा आयोग की रिपोर्ट के आधार पर किया है। सेवानिवृत्त मेजर जनरल एसआर सिन्हा की अध्यक्षता में 2006 में एक आयोग का गठन किया गया था। इसने 22 जुलाई, 2010 को अपनी रिपोर्ट दी थी। रिपोर्ट में सामान्य जातियों के गरीब लोगों को भी सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण देने की सिफारिश की गई थी। हालांकि, इस सिफारिश को तत्कालीन संप्रग सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था।

आर्थिक रूप से पिछड़ों की पहचान के लिए बना था कमीशन

देश में आरक्षण की व्यवस्था आजादी के बाद से ही चली आ रही है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण की व्यवस्था के बाद 1990 में अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिया गया। इसके बाद आर्थिक तौर पर पिछड़े समाज की पहचान और उसे आरक्षण का लाभ देने की कोशिश शुरू हुई। इसी के तहत जुलाई 2006 में मेजर जनरल रिटायर्ड एसआर सिन्हा की अध्यक्षता में ईबीसी (EBC) कमीशन बनाया गया। इसका काम ईबीसी यानी आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्ग की पहचान करने और उनकी दशा देखकर सिफारिश करने का था। एसआर सिन्हा कमीशन ने 2010 में दी अपनी रिपोर्ट में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बारे में जानकारी दी।

सिन्हा कमीशन की ये है रिपोर्ट-

- टैक्स भरने तक की कमाई ना कर पाने वाले सवर्णों को ओबीसी की तरह से देखना चाहिए।

- 5 से 6 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिन्हें एससी-एसटी के जैसे आरक्षण मिलना चाहिए।

- आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इस वर्ग को आरक्षण सहित 14 सिफारिशें की थी।

- खास तौर पर सवर्ण जातियों के लिए नौकरी-कॉलेज में आरक्षण देने की सिफारिश थी।

- आरक्षण न पाने वाले आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की आबादी करीब 17% है।

- आर्थिक पिछड़ों में 18 फीसदी ऐसे हैं, जो गरीबी रेखा से नीचे हैं।

- सवर्ण जातियों में करीब 6 फीसदी ऐसे लोग हैं, जिनके पास कोई ज़मीन तक नहीं है।

- करीब 65 फीसदी ऐसे लोग हैं, जिनके पास एक हेक्टेअर से भी कम जमीन है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक, दलित और आदिवासी के बराबर ऐसी सामान्य वर्ग आबादी है, जो गरीबी रेखा से नीचे है। ऐसे में अगर इन आंकड़ों के हिसाब से देखा जाए तो मोदी सरकार का यह फैसला देश के एक बड़े तबके को साधने में सहयोग कर सकता है, जो 2019  में होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

जानें अभी किसे कितना आरक्षण

देश में अब तक आरक्षण पाने वालों की स्थिति क्या है और नई आरक्षण नीति लागू होने पर कितने लोगों को इसका लाभ मिल पाएगा। देश में 16.6 फीसदी अनुसूचित जाति (एससी) आबादी है, जिसे 15% आरक्षण मिलता है जबकि 8.6 फीसदी अनुसूचित जनजाति (एसटी) आबादी है जिसे 7.5 फीसदी आरक्षण मिलता है। देश में करीब 41% अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आबादी है, जिसे 27% आरक्षण मिलता है।

इनके अलावा करीब 34 फीसदी लोग वो हैं, जो सामान्य श्रेणी में आते हैं और फिलहाल आरक्षण की व्यवस्था से बाहर हैं और मोदी सरकार ऐसे ही सामान्य श्रेणी वाले गरीबों के लिए 10 फीसदी आरक्षण ला रही है, जिन्हें अभी तक कोई फायदा नहीं मिलता है। यानी मोदी सरकार का यह फैसला अगर लागू हो जाता है, इसका लाभ पाने वाला देश का एक बड़ा वर्ग होगा। दिलचस्प बात ये है कि मोदी सरकार ने धर्म और जाति की सीमाओं को तोड़ते हुए फायदा पहुंचाने का फैसला लिया, जो चुनावी दृष्टिकोण से मील का पत्थर साबित हो सकता है।

चुनावों में कितना असर डालता है सामान्य वर्ग

लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा की नजर सामान्य वर्ग के वोट बैंक पर है। एससी-एसटी एक्ट और दलित आंदोलन के बाद माना जा रहा था कि यह वर्ग भाजपा से नाराज है। ऐसे में यह देखना जरूरी है कि सामान्य वर्ग चुनावी गणित में कितना असर डालता है।

2007 में कराए गए एक सर्वे के मुताबिक, देश की हिंदू आबादी में पिछड़े वर्ग की संख्या 41 फीसदी और सामान्य वर्ग की संख्या 30 प्रतिशत है। 2014 के एक अनुमान के मुताबिक, 125 लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जहां हर जातिगत समीकरणों पर सामान्य वर्ग के उम्मीदवार भारी पड़ते हैं और जीतते हैं।

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, दिल्ली, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, हिमाचल, उत्तराखंड और राजस्थान में सामान्य वर्ग की जातियों का असर वोट बैंक पर दिखता है। अब भी देश में 55 प्रतिशत वोटर उम्मीदवार की जाति देखकर वोट करते हैं। 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सामान्य वर्ग के 35.3 फीसदी और कांग्रेस को 25.5 फीसदी वोट मिले थे। 2014 में भाजपा के पक्ष में सबसे ज्यादा 47.8 फीसदी सामान्य वर्ग के वोट पड़े थे। वहीं, कांग्रेस को महज 13.8 प्रतिशत वोट मिले थे, जिसका असर लोकसभा की सीटों पर दिखा।

ये है कैबिनेट का फैसला

लोकसभा चुनावों से पहले बड़ा कदम उठाते हुए केंद्रीय कैबिनेट ने सोमवार को आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लिए सरकारी नौकरियों एवं शिक्षा में 10% आरक्षण देने के फैसले को मंजूरी दे दी। कैबिनेट ने ईसाइयों व मुस्लिमों सहित 'अनारक्षित श्रेणी' के लोगों को नौकरियों व शिक्षा में 10% आरक्षण देने का फैसला लिया। इसका फायदा 8 लाख रुपये वार्षिक आय सीमा और करीब 5 एकड़ भूमि की जोत वाले गरीब सवर्णो को मिलेगा।

भाजपा के समर्थन का आधार मानी जाने वाली अगड़ी जातियों की लंबे समय से मांग थी कि उनके गरीब तबकों को भी आरक्षण दिया जाए। प्रस्तावित आरक्षण अनुसूचित जातियों (एससी), अनुसूचित जनजातियों (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) को मिल रहे आरक्षण की 50% सीमा के अतिरिक्त होगा यानी आर्थिक रूप से कमजोर तबकों के लिए आरक्षण लागू हो जाने पर यह आंकड़ा बढ़कर 60 फीसदी हो जाएगा।

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OUTLOOK 09 January, 2019
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