बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी से एक दिन पहले पूर्व नौकरशाहों ने जताया, देश की मौजूदा स्थिति पर अफसोस
छह दिसंबर को अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढहाने की बरसी से एक दिन दिन पहले रिटायर्ड सिविल सर्वेंट यानी सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारियों ने एक पत्र जारी करके बाबरी मस्जिद विध्वंस के 27 साल बाद देश की मौजूदा स्थिति पर अफसोस और गहरी चिंता जताई है। आज देश के अल्पसंख्यक दोयम दर्जे के नागरिक बन गए हैं। पूर्व प्रशासनिक अधिकारियों के कंस्टीट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप (सीसीजी) ने देश के नागरिकों को जारी इस पत्र में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर अपने फैसले में उसी पक्ष को पुरस्कृत किया है जो 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के लिए जिम्मेदार थे।
मस्जिद के लिए लड़ाई संविधान के लिए संघर्ष
पूर्व कोयला सचिव चंद्रशेखर बालाकृष्णन, पुर्तगाल की पूर्व राजदूत मधु भादुड़ी, पूर्व पर्यावरण सचिव मीना गुप्ता, ट्राई के पूर्व चेयरमैन राहुल खुल्लर, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पूर्व महासचिव पीएसएसएस थॉमस सहित 46 रिटायर्ड नौकरशाहों के हस्ताक्षर से जारी पत्र में कहा गया है कि छह दिसंबर को देश के संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर की पुण्य तिथि भी होती है। अयोध्या में मध्यकालीन मस्जिद की जमीन के लिए लड़ाई दरअसल संविधान के सिद्धांतों की रक्षा के लिए संघर्ष है।
इस विवाद से देश का स्वरूप तय होगा
पत्र में कहा गया है कि एक छोटे कस्बे में यह सिर्फ जमीन के छोटे से टुकड़े के लिए विवाद नहीं है और यह मध्यकालीन मस्जिद के स्थान पर अभी तक काल्पनिक भव्य मंदिर बनाने का भी कोई मसला नहीं है, बल्कि यह देश के सामने ऐसा विवाद है जिससे तय होगा कि क्या भविष्य में यह देश विभिन्न पहचान और विश्वास वाले लोगों का होगा या नहीं।
बाबरी मस्जिद विध्वंस के दोषियों को सजा नहीं मिली
आज से 27 साल पहले मस्जिद गिराए जाने पर अफसोस जताते हुए पूर्व नौकरशाहों ने कहा है कि इसके लिए जिम्मेदार लोगों को रोजाना सुनवाई करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद अभी तक सजा नहीं मिली है। यही नहीं, उस समय विध्वंस में शामिल रहे कई लोग आज देश के शीर्ष पदों पर आसीन हैं। पूर्व प्रशासनिक अधिकारियों ने कहा है कि देश के मौजूदा हालात में अल्पसंख्यकों को यह संदेश मिल रहा है कि वे दोयम दर्जे के नागरिक हैं और उनके अधिकार भी कम हैं।
ऐसे ही मसले पर महात्मा गांधी ने किया था उपवास
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को याद करते हुए पत्र में कहा गया है कि उनकी हत्या से दो सप्ताह पहले उन्होंने तीन मांगों को लेकर उपवास किया था। इनमें से एक मांग थी कि दिल्ली में मस्जिद और दरगाहों में रखी हिंदू मूर्तियों को तुरंत हटाया जाए और धार्मिक स्थल मुस्लिमों को लौटाए जाएं।