गाय के चमड़े की कमी : क्रिकेट की गेंद के दाम 400 से बढ़कर हुए 800 रुपए
इसकी कमी के बाद निर्माण कंपनियांं अब भैस के चमड़े का उपयोग कर रही हैं। लेेकिन भैंस के चमड़े से बनी गेंदों में उतनी चिकनाई नहीं रहेगी, जितनी गाय के चमड़े से बनी गेंदों में होती है। देशभर में जो क्रिकेट की लाल गेंद बनाई जाती है उसमें से 80 फीसदी गेंद गाय के चमड़े से बनाई जाती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खासकर मेरठ में हर साल करीब एक लाख गेंद बनाई जाती है। जो समूचे भारत के उत्पादन का करीब 50 फीसदी है।
मेरठ के बीडी महाजन एंड संस प्रायवेट लिमिटेड के कार्यकारी राकेश महाजन ने कहा कि यहां बड़ी मात्रा में क्रिकेट की लेदर बॉल बनाई जाती हैं। चमड़े की कमी का असर इन गेंदों की कीमत पर पड़ने लगा है। बीते माह में क्रिकेट गेंद की कीमतों में सौ फीसदी तक बढ़ोतरी हुई है। यह बढोत्तरी तेजी से महंगाई को छू रही है। जो गेंद पहले 400 रुपए की मिलती थी, वह अब 800 रुपए की मिल रही है। दादरी के अखलाक प्रकरण और राजनीतिक हस्तक्षेप के बाद ट्रांसपोर्टर गाय के चमड़ेे के परिवहन करने से बच रहे हैं। उल्लेखनीय है कि देश के केरल, पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम में गाय का वध वैध है। यहां से गाय के चमड़े का परिवहन अब यूपी में नहीं हो पा रहा है। ट्रांसपोर्टर इसको नहीं ला रहे हैं। जिस वजह से चमड़ेे की कमी हो गई है।
मेरठ स्थित एक क्रिकेट बॉल ब्रांड के डायरेक्टर का कहना है कि हमें यूके से चमड़ा मंगाना पड़ रहा है जो महंगा है। बीफ बैन के कारण दूसरे जानवरों का चमड़ा मंगवाना पड़ रहा है। इस पर इम्पोर्ट ड्यूटी और अन्य टैक्स हैं। कुल मिलाकर क्रिकेट खेलने वालों की जेब पर बोझ बढ़ गया है। नामी ब्रांड वाली कंपनियां विदेशों या अन्य राज्यों से चमड़ा खरीद रही हैं, लेकिन छोटी ईकाइयां भैंस के चमड़े का इस्तेमाल कर गेंद बना रही हैं। लेकिन ऐसी गेंदों में चिकनाई कम है।