नोटबंदी से मनरेगा के 23.4 लाख ग्रामीणों को नहीं मिला काम, खाली हाथ लौटे
नोटबंदी के चलते जिन लोगों को खाली हाथ लौटना पड़ा, उनकी संख्या 23.4 लाख हो गई, जो कि अक्टूबर से दोगुनी है। इतना ही नहीं, पिछले साल नवंबर से यदि तुलना करें तो मनरेगा के तहत मिलने वाले काम में 55 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।
ये आंकड़े बयां कर रहे हैं कि ग्रामीण इलाकों में नोटबंदी के चलते एक यह दर्द भी है, जो गरीब, बेसहारा, मनरेगा पर निर्भर लोगों को सहना पड़ रहा है। झारखंड के सिंहभूमि जिले में तो हाल बुरा है। यहां के अधिकांश मजदूरों को पैसों की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। एक ग्रामीण ने बताया कि अगर मनरेगा के तहत काम उपलब्ध रहता तो हमें कम से कम कुछ राहत मिलती, अभी हम थोड़ी-बहुत मजदूरी 50 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से कर रहे हैं। ज्यादातर वक्त खाली बैठे ही बीत रहा है।
उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के हवलदार सिंह बताते हैं, 'शुरुआत के काफी दिन हमने उधार लेकर काम चलाया, लेकिन अब नोटबंदी के पांचवे हफ्ते हालात बद से बदतर होते दिख रहे हैं।'
गौर हो कि कि वित्त वर्ष 2015-16 में इस योजना पर सबसे ज्यादा यानी 56,000 करोड़ रुपए खर्च हुए। इसमें 12,000 करोड़ रुपए बकाया मजदूरी के भुगतान पर खर्च हुए। इस स्कीम से वर्ष 2015-16 में पिछले 5 साल में सबसे अधिक रोजगार मिला। हालांकि, रोजगार गारंटी स्कीम समय पर भुगतान के मामले में लगातार पिछड़ती जा रही है और अब तक सिर्फ 34.3 फीसदी भुगतान समय पर दिया गया है।