अल्पसंख्यक दर्जा मामले में एएमयू का समर्थन नहीं करेगा केंद्र
केंद्र सरकार ने एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जा के मामले में आज एक बार फिर अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी। सोमवार को केंद्र ने अपना रूख अदालत के सामने साफ करते हुए कहा कि वह एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दिए जाने के पक्ष में नहीं है। भारत के एटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने अपील वापस लेने और एएमयू से दूरी बनाने के केंद्र के फैसले के बारे में न्यायमूर्ति जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ से कहा, मैंने दो महीने पहले अपना मन बदल दिया था। पीठ में न्यायमूर्ति एम बी लोकुर और न्यायमूर्ति सी नागप्पन भी शामिल हैं। रोहगती ने कहा कि एएमयू की स्थापना केंद्रीय कानून के तहत की गई थी और 1967 में शीर्ष अदालत की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अजीज बाशा फैसले में इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय कहा था, अल्पसंख्यक संस्थान नहीं। रोहतगी ने कहा कि 1981 में विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने के लिए एक संशोधन लाया गया जिसे उच्च न्यायालय ने असंवैधानिक करार दिया था।
देश के शीर्ष विधि अधिकारी ने पीठ से कहा, आप अजीज बाशा मामले में आए फैसले की अवहेलना नहीं कर सकते। भारतीय संघ का मानना है कि एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देना अजीज बाशा फैसले के विरोधाभासी होगा। पीठ ने केंद्र को उसके द्वारा दाखिल अपील को वापस लेने के लिए आठ सप्ताह के अंदर एक हलफनामे के साथ आवेदन दाखिल करने की अनुमति दे दी। पीठ ने कहा कि एएमयू केंद्र के रुख पर जवाबी हलफनामा दाखिल कर सकता है। उन्होंने ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद के लिए सुनवाई स्थगित कर दी। एएमयू का पक्ष वरिष्ठ वकील पी पी राव रख रहे थे। शीर्ष अदालत ने हस्तक्षेप करने वाले कुछ लोगों को भी मामले में सहायता करने की अनुमति दी जिनके लिए वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने पक्ष रखा।
उच्च न्यायालय ने जनवरी 2006 में एएमयू (संशोधन) अधिनियम, 1981 के प्रावधान को निष्प्रभावी करार दिया था जिसके माध्यम से विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया था। उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने 2005 में उसकी एकल पीठ के फैसले को बरकरार रखा था जिसके माध्यम से एएमयू को अल्पसंख्यक का दर्जा देने और 2004 में मुसलमानों को 50 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने को असंवैधानिक करार दिया गया था। एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे का मुद्दा प्रधान न्यायाधीश टी एस ठाकुर की अगुवाई वाली एक और पीठ के सामने भी आया जो उसके कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) जमीरउद्दीन शाह की नियुक्ति को चुनौती देने से संबंधित एक अन्य मामले पर सुनवाई कर रही है। पीठ में न्यायमूर्ति यू यू ललित भी शामिल हैं। पीठ ने भी सुनवाई के दौरान पूछा, क्या किसी विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक संस्थान कहा जा सकता है। जिसपर रोहतगी ने कहा, भारतीय संघ उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपनी अपील पर एक और पीठ के सामने आगे बढ़ने का इच्छुक नहीं है।