चर्चाः जिंदा जला, तमाशा किया | आलोक मेहता
लेकिन आर्थिक विकास के साथ उपासना केंद्र धूमधाम, दिखावा, आडंबर और एक हद तक शक्ति प्रदर्शन के स्थल बनने लगे। इसी की परिणति है कि केरल के पुत्तिंगल मंदिर के संचालकों ने नियम-कानून, प्रशासन और इलाके के लोगों के अनुरोध को ठुकराते हुए बड़े पैमाने पर आतिशबाजी की प्रतियोगिता कर 110 से अधिक लोगों को मार दिया एवं चार सौ से अधिक घायल कर दिए। केरल में उत्सवों के दौरान मंदिरों द्वारा पटाखों पर लगभग दो हजार करोड़ रुपया खर्च कर दिया जाता है। प्रदेश में करीब 36 हजार छोटे-बड़े मंदिर हैं।
कोल्लम की घटना ऐसे समय हुई, जबकि केरल विधानसभा के चुनाव भी हो रहे हैं। इस कारण प्रशासन के सामने बड़ा धर्मसंकट था। उसे राजनीतिक दबाव के साथ हिंदू संगठनों की नाराजगी झेलनी पड़ रही थी, क्योंकि वे आतिशबाजी की अनुमति नहीं देने को सांप्रदायिक रंग दे रहे थे। आतिशबाजी से हुए भयावह अग्निकांड के बाद केंद्र और राज्य सरकारों, विभिन्न पार्टियों के नेताओं ने सहानुभूति व्यक्त कर हरसंभव सहायता पहुंचाने का प्रयास किया। न्यायिक जांच के आदेश दिए गए हैं। लेकिन पिछले कुछ अर्से से धार्मिक भावनाओं को सांप्रदायिक रूप देने वाले कई बड़े नेताओं ने धार्मिक आयोजनों में बड़े पैमाने पर आतिशबाजी, धूमधाम पर अनावश्यक खर्च, कई उपासना केंद्रों में होने वाले अपराधों पर कड़े अंकुश लगाने की आवाज नहीं उठाई। पुत्तिंगल मंदिर में मनमानी करने वाले संचालकों को इतने गंभीर अपराध के लिए अब तक गिरफ्तार भी नहीं किया गया है।
हत्या, डकैती और आतंकवादी गतिविधियों में फंसे लोगों की गिरफ्तारी के लिए जिस तरह त्वरित पुलिस कार्रवाई होती है, उसी स्तर पर पटाखों के तमाशे से लोगों की जाने लेने वालों को क्यों नहीं पकड़ा गया? यह पहला आयोजन नहीं है। उपासना स्थलों, धार्मिक मेलों अथवा अन्य आयोजनों के दौरान प्रशासन अथवा आयोजकों की गड़बड़ी एवं लापरवाही से भोले-भाले धर्मप्राण लोगों की जान जाती रही है। इसलिए केरल की घटना से सबक लेकर पटाखों एवं हथियारों के साथ शक्ति प्रदर्शन करने वालों पर अंकुश के लिए कदम उठाए जाने चाहिए।