Advertisement
26 May 2016

चर्चाः ‘चीयर्स’ सरकार के नाम | आलोक मेहता

गूगल

केंद्र में भाजपा सरकार के दो साल पूरे होने पर सरकार और उसके चाहने वाले हर मंच, टी.वी., रेडियो, सोशल मीडिया पर सफलताओं के नगाड़े बजा रहे हैं। यह चीयर्स गान लगभग दो सप्ताह चलेगा। इसी तर्ज पर तमिलनाडु में जयललिता, असम में सर्वानंद सानोवाल, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ही नहीं, केरल में मार्क्सवादी पी. विजयन ने भी अपने प्रदेशों के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर अपने बाजे बजा दिए हैं। अब भाजपा ने पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक के उत्सवों का संगम रूप दिखाने का फार्मूला सबको सिखा दिया है। इस ‘चीयर्स’ प्रदर्शन पर लाखों नहीं कुछ हजार करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। बर्लिन की दीवार टूटने के साथ जर्मनी के एकीकरण पर भी इतनी धूमधाम संपन्न देश में नहीं दिखाई दी थी। वायदे ही नहीं दावे भी ऐसे किए जा रहे हैं, मानो भारत सोने की चिड़िया नहीं सोने का हाथी बन चुका है। हाथी शक्ति संपन्न होने के साथ सबका उद्धार कर रहा है। दूसरी तरफ 2014 से लगातार पराजय झेल रही कांग्रेस पार्टी ‘चीयर्स शो’ के रंग में भंग कर मातमी धुन बजाने लगी है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी इस ‘शोक गान’ के प्रचार के लिए भी लाखों रुपया खर्च कर रही हैं। मतलब हर्ष-शोक की शैली कमर्शियल प्रतियोगिता की तरह है। खर्च किए बिना विरोध भी मुश्किल है। सवाल यह है कि इसी लाखों-करोड़ों रुपयों से देश के हजारों गरीब लोगों को राहत देने वाले छोटे-छोटे काम भी हो सकते थे। सफलताओं का अहसास दैनंदिन जीवन में होना चाहिए अथवा आम जनता को एहसान की तरह बताया, सुनाया जाए? फिर सफलताओं में आंकड़े ज्यादा हैं, कुछ अधूरे हैं। राज्यों में भी नई सरकारें बनने का श्रेय मतदाताओं को है और ये सरकारें चुनाव में पराजित दलों और नेताओं का कुछ सहयोग लेकर ही प्रदेश के लोगों का कल्याण कर सकती हैं। लोकतंत्र में असहमति और विरोध के बाद व्यापक हित में सहयोग तथा सहमतियों से ही प्रगति संभव है।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: मोदी सरकार, चीयर्स, मुख्यमंत्री, नेता, अफसर, व्यापारी, भाजपा, कांग्रेस, ममता, विजयन, जया, सर्वानंद
OUTLOOK 26 May, 2016
Advertisement