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06 May 2015

एनजीओ पर भारत के सख्त रवैये से अमेरिका खफा

गूगल

विदेशों से कथित रूप से अवैध धन प्राप्त करने वाले एनजीओ पर कार्रवाई करते हुए सरकार ने पिछले महीने विदेशी चंदा नियमन कानून (एफसीआरए) के उल्लंघन करने पर इस तरह के करीब नौ हजार संगठनों के लाइसेंस रद्द कर दिए थे। अमेरिका के फोर्ड फाउंडेशन को भी गृह मंत्रालय द्वारा निगरानी सूची में डाला गया है। मंत्रालय ने अंतरराष्ट्रीय दानदाता से आने वाला कोष किसी बैंक द्वारा भारतीय एनजीओ को उनसे अनिवार्य अनुमति लिए बगैर जारी नहीं करने का निर्देश दिया है।

अमेरिकी राजदूत रिचर्ड वर्मा ने कहा कि लोकतांत्रिक समाज में लोगों को शांतिपूर्ण ढंग से तर्क करने और कानूनों पर सवाल करने या उन्हें चुनौती देने का अपरिहार्य अधिकार होता है। वर्मा ने कहा, ‘मुझे भारत में गैर सरकारी संगठनों के सामने आ रही चुनौतियों पर हालिया प्रेस खबरों को लेकर कुछ चिंता है क्योंकि एक गतिशील सभ्य समाज हमारे दोनों देशों की लोकतांत्रिक परंपराओं के लिए काफी महत्वपूर्ण है, इसलिए मुझे गैर सरकारी संगठनों पर केंद्रित इन नियामक कदमों के संभावित दुष्प्रभावों को लेकर चिंता है।’ वर्मा एक थिंकटैंक अनंता अस्पियन इंस्टीट्यूट में फाउंडेशन आफ द यूएस इंडिया स्ट्रैटेजिक प्लस रिलेशनशिप विषय पर लोगों को संबोधित कर रहे थे।

सरकार ने ग्रीनपीस इंडिया पर तत्काल प्रभाव से विदेशी चंदा लेने पर पाबंदी लगा दी है। वर्मा ने कहा कि दोनों देशों के बीच कुछ विषयों पर असहमति होना स्वाभाविक है। उन्होंने कहा कि वह भारत के साथ खास मुद्दों पर कुछ कड़ी चर्चा को लेकर आशान्वित हैं। उन्होंने इशारा किया कि इन विषयों में एक विषय एनजीओ के खिलाफ कार्रवाई भी हो सकती है। उन्होंने कहा, ‘मैं यह भी जानता हूं कि ऐसा कई बार होगा जब हम कई मुद्दों पर असहमत होंगे और मैं उन पर बातचीत को लेकर भी आशान्वित हूं। हां, मुझे कठिन चर्चा की आशा है क्योंकि मेरी दलील यह नहीं है कि हम दो संप्रभु राष्ट्रों को हर मामले में समान होना चाहिए।

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फोर्ड फाउंडेशन को निगरानी सूची में रखने के बाद अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने इस पर विरोध जताया था और पिछले सप्ताह राजनीतिक मामलों के अंडर सेक्रेटरी वेंडी शरमन द्वारा भारत के अधिकारियों से बातचीत के दौरान भी यह विषय उठा था। अमेरिकी राजदूत वर्मा ने कहा कि नजरिया यह है कि (एनजीओ के खिलाफ की जा रही) नियामक कार्रवाई का अभिव्यक्ति पर गहरा असर हो सकता है।

वर्मा ने कहा कि लोकतंत्र चुनावों से बढ़कर है और मुक्त समाजों को सार्वजनिक चिंता के विषयों पर निरंतर चर्चा में भाग लेना चाहिए। हम राजनीतिक फायदे के नाम पर मुश्किल सवालों को टाल नहीं सकते। हम सिर्फ इसलिए चर्चा टाल नहीं सकते कि शायद हमें जवाब पसंद नहीं हों।

बीस लाख से अधिक एनजीओ वाले भारत के जीवंत समुदाय की बात करते हुए राजदूत ने कहा कि विभिन्न चर्चाओं में कई आवाजें शामिल होने पर ऐसा निश्चित रूप से होगा कि कुछ नजरिये अन्य को आपत्तिजनक लगेंगे।

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TAGS: एनजीओ, अमेरिकी राजदूत, रिचर्ड वर्मा, एफसीआरए, फोर्ड फाउंडेशन, अनंता अस्पियन इंस्टीट्यूट
OUTLOOK 06 May, 2015
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