पंजाब में अंग प्रत्यारोपण होगा आसान
जोशी के अनुसार संशोधित कानून में खास यह होगा कि-
- कई समाज सेवी संस्थान, विशेष तौर पर राधा स्वामी सत्संग ब्यास के डेरा प्रमुख द्वारा चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान विभाग की ओर से उक्त संशोधित नियम लागू किए जाने के लिए लिखा गया था ताकि इनके अस्पतालों में आने वाली लावारिस लाशों और ब्रेन डेड मरीजों के अंगों का सदुपयोग किया जा सके।
- इस नीति अनुसार किसी ब्रेन-स्टैम मौत के दानी के परिवार द्वारा इस प्रकार के अंगों को दान करने की इच्छा की जानकारी इलाके के एसएचओ, आईजी या अस्पताल में स्थित पुलिस पोस्ट द्वारा समय पर दी जाएगी ताकि अंगों के पुन: प्रयोग में लाने के लिए कीमती समय बर्बाद ना हो। इसकी एक प्रति क्षेत्र के नामांकित पोस्टमार्टम डॉ. को दी जाएगी। अंगों को बदलने का काम पंजीकृत प्रत्यारोपण सेंटर/टीशू बैंक आदि में ही स्वीकार किया जाएगा, जो कि वैज्ञानिक गतिविधि के अनुसार चलेंगे।
- इस संबंध में सरकार के निर्देशों के अनुसार अस्पताल द्वारा नामजद की गई कमेटी स्वीकृति देगी।
गौरतलब है कि इस संबध में देश में अंगों के मामले में गैर कानूनी तरीके से खरीद-फरोख्त का सबसे बड़ा मामला, ‘किडनी कांड’, पंजाब का ही था। गरीब प्रवासी मजदूरों को थोड़े से रुपये देकर उनकी किडनी निकालने का गोरखधंधा जोरों पर चल रहा था। अब पंजाब सरकार इस कानून को और सुविधाजनक बनाने जा रही है ताकि मर चुके इंसान के अंग समय से प्रयोग किए जा सकें।
एक मेडिकल अध्ययन के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष 2.1 लाख लोगों को गुर्दा (किडनी) प्रत्यारोपण की जरूरत होती है लेकिन इनमें से मात्र 3000 से 4000 गुर्दा प्रत्यारोपण ही हो पाते हैं। हृदय प्रत्यारोपण में तो हालात बहुत खराब हैं। प्रति वर्ष देश में 4000 से 5000 लोगों को हृदय प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ती है लेकिन सिर्फ 100 लोगों की यह जरूरत पूरी हो पाती है।
नेशनल प्रोग्राम ऑफ कंट्रोल ऑफ ब्लाइंडनेस- एनपीसीबी की 2012-13 की रिपोर्ट के मुताबिक 2012-13 के दौरान देश में 4,417 कॉर्निया उपलब्ध थे, जबकि हर साल 80,000 से 1,00,000 कॉर्निया की जरूरत होती है। अंग प्रत्यारोपण में बड़ी दिक्कत अंग दान दाताओं का अभाव है। जहां जागरूकता है वहां जटिलताएं बहुत हैं। इसकी कमी को पूरा करने के लिए पंजाब उक्त कदम उठाने जा रहा है। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 1994 में मानव अंग प्रत्यारोपण (टीएचओ) अध्यादेश पारित किया था। इस कानून के तहत असंबद्ध प्रत्यारोपण को गैरकानूनी बना दिया और ब्रेन डेथ की स्वीकृति मिलने के बाद मृतक के अंग दान को कानूनी करार दिया गया। इसमें वर्ष 2011 में संशोधन किया गया और वर्ष 2014 में नए नियम बनाए गए। वर्ष 2011 में हुए संशोधन का उद्देश्य दादा-दादी और पोते-पोती को नजदीकी रिश्तेदारों के दायरे में लाकर नजदीकी रिश्तेदार की परिभाषा व्यापक बनाने और मानव अंगों की खरीद-फरोख्त रोकने के अन्य उपाय लागू करना था।
अधिसूचित मानव अंग प्रत्यारोपण नियम-2014
अधिसूचित मानव अंग प्रत्यारोपण नियम (टीएचओटी), 2014 के तहत अंग दान की दिशा में आने वाली कई बाधाओं को दूर करने के साथ, मानव अंग दान का दुरुपयोग और नियमों की गलत व्याख्या को रोकने के कई प्रावधान मौजूद हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं।
- कानून के तहत जो डॉक्टर अंग प्रत्यारोपण के लिए किए जाने वाले ऑपरेशन दल का सदस्य होगा वह प्राधिकार समिति का सदस्य नहीं होगा।
- अंग दान करने वाले प्रस्तावित दानदाता या इसे प्राप्त करने वाले दोनों अगर भारतीय नागरिक न हों चाहे वे निकट संबंधी ही क्यों न हों, ऐसे मामले में प्रत्यारोपण के अनुरोध पर प्राधिकार समिति फैसला करेगी। इन मामलों में अंग दान, हासिल करने वाला विदेशी नागरिक हो और दानदाता भारतीय तो बगैर निकट रिश्तेदारी के संबंध के प्रत्यारोपण की अनुमति नहीं मिलेगी।
- जब प्रस्तावित अंग दान दाता और इसे प्राप्त करने वाले करीब के संबंधी न हों तो प्राधिकार समिति यह मूल्यांकन करेगी कि दान दाता और प्राप्त करने वाले व्यक्ति के बीच किसी भी तरह का व्यवसायिक लेन-देन न हो और किसी अन्य व्यक्ति अथवा दान दाता को किसी भी तरह का भुगतान देने अथवा उसका वादा न किया गया हो।
- यदि अंग प्राप्त करने वाला गंभीर अवस्था में है और उसे एक सप्ताह के भीतर जीवन रक्षक अंग प्रत्यारोपण की आवश्यकता है तो दान दाता अथवा प्राप्त करने वाला प्राधिकार समिति की शीघ्रता से जांच के लिए अस्पताल के प्रभारी से संपर्क कर सकते हैं।