इक आग का दरिया है बांसुरी
वाराणसी से आप मुंबई क्यों गए ?
मैंने अपने समय में वाराणसी में शास्त्रीय संगीत का बेहतर समय देखा। उस दौर में बड़े-बड़े बांसुरीवादकों को सुना। मुंबई इसलिए चला गया क्योंकि मैं बासुंरी में और भी कुछ करना चाहता था। मैं इसे देश से विदेश खासकर युवाओं तक पहुंचाना चाहता था।
बांसुरी को लेकर युवाओं का रुझान कैसा है?
हाल ही में मैंने 5,378 बांसुरीवादकों से नासिक में एक साथ बांसुरी बजवाई, जो विश्व रिकॉर्ड है। इसमें 2,000 बांसुरी वादक 20 वर्ष से कम थे।
बांसुरी किन युवाओं को सीखनी चाहिए?
बांसुरी इतना आसान वाद्य यंत्र नहीं है। आग का दरिया है। अगर कोई इसे बजाना सीखना चाहता है तो, तभी सीखे अगर वह इसमें आसमान छूने की चाहत रखता है। आप बांसुरी में बेहतरीन होंगे तभी श्रोता आपको सुनेंगे। सामान्य को नकार देंगे।
मौके कैसे हैं इसमें ?
बांसुरी लोकसंगीत से शास्त्रीय संगीत में आई। हरि प्रसाद चौरसिया जी जैसे महान बांसुरीवादक इसे ऊंचाई पर ले गए। अब आलम यह है कि फिल्म, टीवी चैनल्स, जुगलबंदी, शास्त्रीय संगीत, फ्यूजन और बॉलीवुड सब जगह बांसुरी प्रयोग की जाती है। कोई इसमें बेहतर है तो मौकों की कमी नहीं। बॉलीवुड में बांसुरी का प्रयोग इसे दूसरी पीढ़ी में ले जा चुका है।
आपका फिल्मी सफर कैसा रहा?
मुझे 1980 में लव स्टोरी फिल्म में पहला मौका आर.डी. बर्मन साहब ने दिया था। उसके बाद कई फिल्मों से होता हुआ माचिस फिल्म में मौका मिला। जो बेहतरीन रहा। अब तक मैं 200 से ज्यादा फिल्मों में बजा चुका हूं।
भविष्य की योजनाएं क्या हैं?
भारतीय संगीत की विदेशों में खासी मांग है। मैं चाहता हूं कि विदेशों तक इसका प्रचार प्रसार हो,आने वाली पीढ़ियों तक बांसुरी के प्रति लगन जगा सकूं।