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09 April 2015

‘बांसुरी मेरा पहला प्यार है’-मु्‍क्तेश चंद्र

गूगल

बांसुरी के प्रति आपका लगाव कैसे हुआ, क्या कोई पारिवारिक माहौल था?
परिवार में ऐसा कोई माहौल नहीं था। बस सात साल की उम्र में पिताजी के एक दोस्त बांसुरी लेकर घर आए थे। घर में सभी बच्चे बांसुरी को लेकर उत्साहित हुए लेकिन बजा कोई नहीं पाया। मेरी उत्सुकता भी जगी और मैंने बांसुरी उठाकर बजानी शुरु कर दी। बस फिर क्या था, वहीं से मेरा बांसुरी बजाने का सिलसिला शुरु हो गया।
इसके लिए कहीं से आपने किसी प्रकार की शिक्षा भी ली?
नहीं बांसुरी बजाना मेरा शौक बन गया और मैं स्कूल और काॅलेज में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी बांसुरी बजाने लगा।
पुलिस सेवा में आने के बाद आपकी व्यस्तता तो बढ़ गई होगी, फिर कैसे आपने अपने इस शौक को जारी रखा?
सही बात है कि जब मैं पुलिस सेवा में आया तो मेरी व्यस्तता बढ़ गई और बांसुरी पीछे छुट गई। लेकिन साल 2002 में जब गोवा में मेरी नियुक्ति हुई तो वहां का संगीत का माहौल देखकर एक बार फिर इच्छा हुई कि बांसुरी बजाया जाए। बस फिर क्या था बांसुरी उठा ली उसके बाद तो बांसुरी मेरा पहला प्यार बन गया।
क्या आपका कोई एलबम भी लांच हुआ है?
हां, साल 2014 में मेरा एक एलबम लांच हुआ। जिसमें दस गीतों पर मेरी बांसुरी की धुन है।

आप जब बांसुरी बजाते हैं तो पुरानी धुनों पर बजाना अच्छा लगता है, या नई धुनों पर?

पुराने गानों पर बांसुरी की धुनें अच्छी बनती हैं। कुछ नई धुनों पर भी मैंने बांसुरी बजाया है, जैसे संदेशे आते हैं जैसी धुनों को श्रोताओं की खूब सराहना मिली।
क्या शीला की जवानी जैसे गीतों पर भी धुन बजा लेते हैं?
दरअसल इस तरह के गीतों पर बांसुरी की धुनें अच्छी नहीं लगती। ऐसे गीत तो केवल देखने के लिए ही होते हैं।
आपने कई कार्यक्रमों में शिरकत किया है। अभी तक का कोई यादगार लम्हा?
मोहम्मद रफी साहब की स्मृति में सिरी फोर्ट सभागार में एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ था। जिसमें मेरे कार्यक्रम को खूब सराहना मिली। उस कार्यक्रम में रफी साहब की बेटी और कई फिल्मी कलाकार मौजूद थे।

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TAGS: बांसुरी, मुक्तेश चंद्र, आईपीएस, पुलिस, एलबम, यादगार
OUTLOOK 09 April, 2015
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