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02 June 2017

‘रूह अफजा’ की मिठास में सांप्रदायिकता की कड़वाहट

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वैसे तो रूह अफजा मेहमान नवाजी लिए घरो-घर इस्तेमाल होता रहा है। लेकिन सोशल मीडिया पर इसे कुछ और ही रंग दिया जा रहा है। रूह अफजा के बारे में अब तक लोगों को जानकारी थी कि इसका जायका खास होता है। तो वहीं सोशल मीडिया पर बताया जा रहा है कि रूह अफजा ‘मुसलमान’ है।

 

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सोशल मीडिया में फैलाया जा रहा है “5 जून को निर्जला एकादशी है। इस दिन लोग बड़े चाव से रूह अफजा पिएंगे। हमदर्द का मुसलमान मालिक बहुत खुश होगा। अभी भी वक्त है हिंदू भाइयों जागो और बदलो।”

 

इस पर एमसी गौतम नाम के एक व्यक्ति ने ट्वीट किया है, "फ्रेश जूस ले लो भैया, रूह अफजा मुसलमान है।"

वहीं कुछ लोग इस संदेश को राजनीति प्रेरित बताते हुए तंज कस रहे हैं कि रूह अफज़ा 1906 से बाज़ार में बिक रहा है, लेकिन उसका धर्म जानने में 111 साल लग गए। खैर इस नफ़रत में भाजपा की राजनीति का कोई हाथ नहीं है,शायद।

 

 

हमदर्द: एक सदी के बाद

 

रूह अफजा मशहूर ट्रस्ट हमदर्द का प्रोडक्ट है। अविभाजित भारत की राजधानी दिल्ली में 1906 को हकीम हाफिज अब्दुल मजीद ने इसकी नींव डाली थी।

 

 

पुरानी दिल्ली के गलियों में एक छोटे यूनानी क्लिनिक के रूप में यह शुरू हुआ। अपेक्षाकृत सस्ती यूनानी दवाइयों के क्षेत्र में हमदर्द एक नाम बन गया। हमदर्द की शाखाएं भारत के अलावा पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी है। 

हमदर्द हिंदुओं को नौकरी नहीं देता!

सोशल मीडिया पर यह संदेश प्रसारित किया जा रहा है कि हमदर्द हिंदुओं को नौकरी नहीं देता। इसलिए इसका बहिष्कार किया जाना चाहिए। जबकि इसके प्रत्युत्तर में लोग बता रहे हैं कि यहां गैर मुस्लिम भी काम करते हैं।

 

 

 

बता दें कि हमदर्द की कई औषधियों की मांग आज भी भारत में अच्छी-खासी है। वहीं रूह अफजा का जुड़ाव भारतीय व्रत-त्यौहारों से है इसलिए इसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की जा रही है। बहरहाल इस मौसम में सांप्रदायिकता की नहीं बल्कि गला तर करने वाली शरबत की जरूरत ज्यादा है।

 

 

 

  

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TAGS: Bitterness, Communalism, Sweetness, Ruh Afza, DELHI, Hakeem Hafiz Abdul Majeed, HAMDARD, SOCIAL MEDIA
OUTLOOK 02 June, 2017
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