राजनीतिक जंग का सबसे अहम मैदान सोशल मीडिया
यह सोशल मीडिया की ताकत ही है कि आने वाले वर्ष में उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने एक बड़ी राजनीतिक लड़ाई सोशल मीडिया पर लड़ने की रणनीति तैयार की है। इसके लिए पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने मौजूदा विधायकों से जरूरी तौर पर अपने-अपने फेसबुक पेज पर 25,000 लाइक्स लाने के फरमान दिए हैं। फिलहाल उत्तर प्रदेश में सोशल मीडिया पर वरूण गांधी काफी आगे चल रहे हैं।
राजनीतिक और सामाजिक मामलों में सोशल मीडिया सलाहकार तमसील हुसैन का कहना है कि राजनीतिक पार्टियां और नेता ट्विटर और फेसबुक पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे हैं। ट्विटर पर आने का टारगेट मीडिया और देश के प्रभावशाली लोगों के बीच पहुंच बनाना है जबकि फेसबुक के जरिये आम आदमी खासकर मध्यम वर्ग को अपने साथ जोडऩा है। तमसील के अनुसार इस समय राजनीतिक पार्टियों का सोशल मीडिया संभाल रही टीमों को फरमान हैं कि वे ज्यादा से ज्यादा आम आदमी को अपने साथ जोड़ें। उत्तर प्रदेश के चुनावों के लिए खासतौर पर कवायद जारी है। तमसील इस पूरी कवायद को मोदी लर्निंग का नाम देते हैं।
महाराष्ट्र में नवनिर्माण सेना के सोशल मीडिया के सलाहकार केतन जोशी बताते हैं कि वर्ष 2010 के आसपास कांग्रेस केविधायक और पूर्व मंत्री शशि थरूर को अपने कैटल ञ्चलास वाले ट्वीट की वजह से आलोचना सहनी पड़ी। यानी किसी एक ट्वीट से नेताओं की छवि बनती है तो किसी दूसरे ट्वीट से संवरती है। नेताओं को इसका अहसास हो चुका है। वाद-विवाद, सवाल-जवाब अब सब सोशल मीडिया पर होने लगा है। हाल ही में हम जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय संबंधी विवाद, देशद्रोह और राष्ट्रवाद की बहस में सोशल मीडिया की भूमिका देख चुके हैं। मिसाल देते हुए केतन कहते हैं कि भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया का बेहतरीन प्रयोग कर विश्व राजनीति में अपनी बेहतरीन उपस्थिति दर्ज करवाई है। सोशल मीडिया के मुद्दों और बहसों ने यहां तक कि टेलीविजन की कुछ ओछी चर्चाओं को भी खोखला कर दिया है। इसके फायदे हैं तो नुकसान भी कम नहीं। मुज्जफरनगर दंगों के दौरान हालात अगर बेकाबू हुए तो सोशल मीडिया की ही वजह से हुए।
सवाल यह है कि ञ्चया सोशल मीडिया पर प्रचार वोटबैंक में तब्दील होता है? तो इसका जवाब है, हां होता है। केतन जोशी के अनुसार कम से कम नेताओं की सोशल मीडिया पर प्रभावशाली उपस्थिति युवाओं का वोटबैंक तो हासिल करती ही है। इस माध्यम का प्रभावी इस्तेमाल करने वाले अपने पक्ष में चुनाव जीत सकते हैं। पश्चिमी बंगाल की मुक्चयमंत्री ममता बेनर्जी ने हाल ही में फेसबुक पर किए एक पोस्ट में कहा कि तृणमूल कांग्रेस सोशल मीडिया पर बहुत सक्रिय है और इसकी ट्विटर, फेसबुक और यूट्यूब पर मजूबत मौजूदगी है। इसने हमें आप सब से हमारे विचार, उपलब्धियों और चिंताएं साझा करने के लिए एक बड़ा मंच दिया है।
नई पीढ़ी तक पहुंचने की कोशिश के तहत, तृणमूल कांग्रेस, माकपा, कांग्रेस और भाजपा अपने शीर्ष नेताओं के जरिये डिजिटल जगत में अपनी मौजूदगी महसूस कराने के लिए नए विचारों के साथ आई हैं। तृणमूल की प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी नियमित तौर पर फेसबुक और ट्विटर का इस्तेमाल कर रही हैं, जबकि पंजाब की कांग्रेस टीम की भी फेसबुक पर उपस्थिति बढ़ गई है। हाल ही में पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष कैप्टन अमरिंदर सिंह और कांग्रेसी नेता प्रताप सिंह बाजवा फेसबुक पर काफी सक्रिया दिखाई देने लगे हैं। यही वजह है कि आज ऐसी कंपनियों से बाजार भरा हुआ है जो नेताओं और राजनीतिक पार्टियों का सोशल मीडिया संभाल रही हैं। इन कंपनियों का काम धड़ाधड़ स्टेट्स डालना, उन्हें फैलाना और लाइक्स बढ़ाना होता है। लाइक्स और स्टेटस का काम कंप्यूटर की मदद से भी लिया जाता है। फेसबुक, ट्विटर के अलावा छोटे ऑडियो कैप्सूल और यू ट्यूब का भी खासा महत्व है। जिसके जरिये लोगों तक पहुंचने के विकास कार्य पहुंचाने में मदद मिलती है।
ट्विटर पर कौन कहां
नरेंद्र मोदी- 18,730,314
शशि थुरूर- 3,989,541
अमित शाह- 1,813,786
उमर अद्ब्रदुल्ला-1,363,922
अखिलेश यादव- 896,267
दिज्विजय सिंह- 459,314
नितिश कुमार- 260,574
लालू यादव- 255,057