कांग्रेस ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना पर उठाया सवाल, कहा- बनी बेनामी चंदे का साधन
कांग्रेस पार्टी ने इलेक्टोरल बॉन्ड के मुद्दे पर केंद्र की मोदी सरकार पर निशाना साधा है। कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि इलेक्टोरल बॉन्ड में पारदर्शिता और स्पष्टता नहीं है और इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। इलेक्टोरल बॉन्ड योजना लागू करने में आरबीआई की आपत्ति को भी दरकिनार कर दिया गया जिसमें साफतौर पर कालेधन को बढ़ावा मिलने की बात कही गई थी। अब यह योजना बेनामी चंदे का साधन बन गई है।
सोमवार को कांग्रेस मुख्यालय में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पार्टी प्रवक्ता राजीव गौड़ा और पवन खेड़ा ने कहा, “आरबीआई ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को लागू करने का विरोध करते हुए कहा था कि इस योजना से काले धन को सफेद बनाने का मौका मिल जाएगा। भारतीय मुद्रा पर लोगों की आस्था कमजोर हो जाएगी और भारतीय बैंकिग प्रणाली के मौलिक सिद्धांतों को भी कमजोर कर देगा। उन्होंने कहा, “किसी भी देश के लोकतंत्र के चुनावों में चुनावी चंदा बहुत महत्वपूर्ण पहलू होता है। चुनावी चंदे के दो महत्वपूर्ण पहलू होते हैं। ये बॉन्ड किसने खरीदे और कितने खरीदे, सरकार को इस बारे में सूची सार्वजनिक की जानी चाहिए।
पारदर्शिता का किया था दावा
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा उस वक्त के वित्त सचिव हंसमुख अधिया ने आरबीआई के विरोध को नकारते हुए यह लिखा कि आरबीआई शायद नहीं समझ पाया कि यह योजना चंदा देने वाले की पहचान को गुप्त रखना चाहती है और पारदर्शिता के पक्ष में है। हैरानी की बात यह है कि अधिया जी लिखते हैं कि आरबीआई की यह सलाह देरी से मिली है और वित्त बिल छप चुका है इसलिए हम इस प्रस्ताव को लागू करने जा रहे हैं। इसके 2 दिन पश्चात 1 फरवरी 2017 को स्वर्गीय अरूण जेटली ने इलेक्टरल बॉण्ड योजना की घोषणा की और मार्च 2017 में फाइनेंस बिल के माध्यम से यह पास हो गया।
बैक डोर से लाया गया बिल
पवन खेड़ा ने कहा कि शनिवार 28 जनवरी 2017 की दोपहर 1.45 मिनट पर वित्त मंत्रालय ने आरबीआई के डिप्टी गवर्नर रामा सुब्रमण्यम गांधी को एक मेल भेजा। इस नोट में आरबीआई से ’चुनावी बॉण्ड’ योजना लागू करने के लिए आरबीआई एक्ट में संशोधन का ड्राफ्ट था। सोमवार जनवरी 30, 2017 को आरबीआई ने चुनावी बॉण्ड एवं प्रस्तावित संशोधन दोनों ही को एक ‘गलत मिसाल’ करार किया। एक सवाल यह है कि ये किस साल मनी बिल का पार्ट था। 28 जनवरी को दोपहर 1:45 ये भेजा गया। एक फरवरी का जो बजट था, इन सबको एक फाईनेंस बिल के तहत बैक डोर एंट्री से लाया गया, ताकि कांग्रेस की पैनी निगाह से बचा जा सके, राज्यसभा में ये कहीं विरोध ना कर दें।
चंदा देने की सीमा भी हटाई
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा, ऐसा क्या कारण है कि जो योजना चुनावी चंदे को पारदर्शी बनाने के लिए लाई गई थी, चंदा देने वाले का नाम गुप्त रखकर एक तरह से उसे विरोधी दलों के बदला लेने की कार्यवाही से सुरक्षा देने की बात की गई थी, फिर भी इलेक्टरल बॉण्ड के माध्यम से अर्जित चंदे का 95 प्रतिशत भारतीय जनता पार्टी को प्राप्त हुआ? इसके कारण सबके सामने है। किसी व्यक्ति ने कितने बॉण्ड खरीदे और किस पार्टी को दिए इसकी जानकारी सिर्फ स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, बॉण्ड खरीदने वाला एवं बॉण्ड लेने वाले और आयकर विभाग को है। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और आयकर विभाग दोनों ही सरकार के उपक्रम हैं इसलिए चंदा देने वालों ने किसी और पार्टी को चंदा देने की हिम्मत नहीं जुटाई। इस पूरी प्रकिया में चंदा देने की 7.5 प्रतिशत की सीमा को भी हटा दिया गया।