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03 September 2015

गरीबी में पूर्व बॉक्‍सर बना सफाईकर्मी, लेकिन छोड़ी नहीं आस

36 साल का कमल अब अपने बेटों को मुक्केबाज बनाने का सपना देख रहा है। इसलिए नगर निगम में अस्थायी नौकरी के बाद रात में वह रिक्शा चलाता है ताकि अपने दो बेटों को मुक्केबाज बना सके। कमल वाल्मीकि ने पीटीआई-भाषा से बातचीत में कहा, बचपन से हम वाल्मीकि समाज की बस्ती में रहते थे जहां बात-बात पर मारपीट होती थी। तब उसकी उम्र करीब 15 साल थी। पिता सफाई कर्मचारी थे। उस समय अभिनेता धर्मेंद्र की फिल्म मैं इंतकाम लूंगा आई थी जिसमें वह मुक्केबाज बनकर अपने विरोधियों को ठिकाने लगते थे। फिल्म देखने के बाद उन्‍होंने भी बाॅक्सर बनने की सोची और पिता के लाख विरोध के बाद शहर के ग्रीन पार्क में जाकर मुक्केबाजी सीखना शुरू कर दिया। उस समय ग्रीन पार्क में स्पोर्ट्स अथाॅरिटी आॅफ इंडिया के मुक्केबाजी के कोच डगलस शेफर्ड थे, उन्होंने मेरे अंदर के जुनून और गुस्से को भांप लिया और जबरदस्त ट्रेनिंग दी।

कमल ने बताया कि सफाई कर्मचारी पिता की डांट सुनने के बाद भी उसने जिला स्‍तर पर तीन गोल्ड मेडल जीते। इसके बाद यूपी राज्य मुक्केबाजी प्रतियोगिता में 1993 में उन्हें कास्ंय पदक जीता। उनके मुक्केबाजी प्रशिक्षकों ने उनसे राष्ट्रीय स्तर पर बाॅक्सिंग की कोचिंग लेने की सलाह दी लेकिन आर्थिक तंगी आड़े आ गई। उनके पास इतने पैसे नही थे कि वह अच्‍छी कोचिंग ले सके। और आखिरकार वह मजबूर होकर घर बैठ गए।

कमल कहते है कि मुक्केबाजी के जुनून के आगे वह पढ़ नही सके थे इसलिये उन्होंने सफाई कर्मचारी का खानदानी पेशा ही अपनाया। अब वह नगर निगम के एक ठेकेदार के अन्तर्गत सफाई, कूड़ा और गंदगी उठाने का काम करते है। उन्हें ठेकेदार ने 4200 रूपये महीना देने का वायदा किया है। शाम से लेकर रात तक वह रिक्शा चलाते है और 100 से 200 रुपये रोज कमा लेते है।

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कमल कहते है कि उनके मुक्केबाजी के सपने तो दफन हो गये है लेकिन मेरे चार बेटे है जिनमें से दो बड़े बेटों सुमित 14 और आदित्य 12 को बाॅक्सिंग की ट्रेनिंग दिलवा रहे हैं। इन्हें मुक्केबाज बनाने के लिए जो भी करना पड़ेगा, वह करेंगे। 

 

 

 

 

 

 

 

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TAGS: मुक्‍केबाज, सफाईकर्मी, रिक्‍शा चालक, कमल वाल्मिकी, बॉक्सिंग
OUTLOOK 03 September, 2015
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