56 इंच की जुबान का रक्षा सिद्धांत
वास्तविकता में कुत्ता दुम हिलाता है। लेकिन अंग्रेजी की एक कहावत में दुम कुत्ता को डुलाती है। उस तर्ज पर इस सरकार की 56 इंच की जुबान हमारे देश की सुरक्षा नीति को एक जोखिम भरी जमीन पर बेवजह डुलाती दिख रही है। राष्ट्रपति के स्वीडन यात्रा पूर्व इंटरव्यू प्रसंग और आतंकवाद से आतंकवाद को काटने के पर्रिकर प्रकाण के बाद म्यांमार सीमा पर उत्तर पूर्वी बागियों से निपटने के ताजा प्रसंग में लंबी जुबान की जोखिम के प्रति हम एक बार फिर आगाह कर रहे हैं।
लेकिन चेतावनी के पहले हम मणिपुर में मुख्यत: नेशनल सोशलिस्ट काउंंसिल ऑफ नागालैंड (खापलांग गुट) यानि एनएससीएन (के) बागियों के हमले में 18 भारतीय फौजियों की दुखद मौत और बाद में भारतीय सेना की कार्रवाई से संबंधित सार्वजनिक तथ्य दोहराना चाहेंगे। इनमें कुछ ताजा घटनाक्रम से संबंधित और कुछ इस संदर्भ में प्रासंगिक पुरानी जानकारियां हैं। इन तथ्यों में जाहिर अंतर्विरोध खोखले गर्जन-तर्जन वाले सरकारी सुरक्षा प्रचार तंत्र की बखिया बखूबी उधेड़ते हैं। पहले सभी प्रासंगिक तथ्य:
> चार जून को मुख्यत: एनएससीएन (के) के बागियों ने गश्त कर रहे सेना के 18 जवानों को घात लगाकर मार डाला। भारतीय अधिकारियों के अनुसार इसमें उन्हें मुख्यत: मणिपुर के कुछ अन्य विद्रोही संगठनों का सहयोग मिला: पीपल्स रिवोल्यूशनरी पार्टी ऑफ कांगलेइपाक, कांगलेइपाक लिबरेशन आर्गेनाइजेशन, कांगलेइपाक कम्युनिस्ट पार्टी आदि। सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार युनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के परेश बरुआ के तत्वावधान में उत्तरपूर्व के उपरोक्त सहित सात विद्रोही गुटों ने म्यांमार के काचिन प्रांत को आधार बनाकर चीन के संरक्षण में एक पश्चिमी दक्षिण पूर्वी एशिया मुक्ति मोर्चा बनाया है। एनएससीएन (के) के नेता एसएस खापलांग ने तीन माह पूर्व ही वर्षों से चला आ रहा भारतीय सुरक्षा बलों से युद्ध विराम तोड़ा था। यह कदम उन्होंने एनएससीएन ((आईएम) के साथ केंद्र सरकार की जारी वार्ता की प्रतिक्रिया में उठाया।
> इससे पहले पिछले दिनों मणिपुर में सुरक्षा बलों पर हमले की कुछ घटनाएं हुईं। उत्तर पूर्व में भंग होती शांति पर विपक्ष सरकार को आड़े हाथों ले रहा था।
> नौ जून को भारतीय सेना ने जवाबी कार्रवाई की।
> सेना की अधिकृत विज्ञप्ति के अनुसार विशेष बलों ने ठोस खुफिया जानकारी के आधार पर भारत-म्यांमार सीमा पर दो अलग-अलग स्थानों पर दो बागी शिविरों पर हमले में विद्रोहियों को जानमाल का भारी नुकसान पहुंचाया। भारतीय टुकड़ी में किसी को जान का नुकसान नहीं हुआ।
> सेना की अधिकृत विज्ञप्ति में यह कहीं नहीं कहा गया कि जवाबी कार्रवाई म्यांमार सीमा के अंदर की गई। विद्रोही हताहतों की संख्या के बारे में भी कोई जानकारी नहीं थी।
> लेकिन उसी शाम सूचना एवं प्रसारण मंत्री राज्यवर्धन राठौड़ ने टीवी चैनलों पर तथा मीडिया साक्षात्कारों में दावा किया कि भारतीय सेना ने म्यांमार के अंदर घुसकर इस तरह की पहली कार्रवाई में अनेक विद्रोहियों को मार गिराया है। लगे हाथों उन्होंने पाकिस्तान, इस्लामिक स्टेट और इराक को भी आतंकी कार्रवाइयों से बाज आने की चेतावनी दे डाली। नहीं तो भारत उनसे भी ऐसे ही निपटेगा।
> इसके बाद कई बौराए मीडिया चैनलों, नए मीडिया आउटलेट्स और अगले दिन अखबारों ने जयगान और स्तुतिवाचन का समां बांध दिया। एजेंसियों, चैनलों, अखबारों और इंटरनेट पर तस्वीरें भी चलीं जिनमें कार्रवाई में शामिल कथित जवान और हेलीकॉप्टर दिखाई दिए।
> कुछ अखबारों ने जरूर ध्यान दिलाया कि इस तरह की कार्रवाइयां उत्तर पूर्व में भारतीय सुरक्षा बल पहले भी म्यांमार, भूटान, बांग्लादेश और नेपाल में उन देशों के सहयोग से 1995 से 2014 तक बिना ढिंढोरा पीटे करते रहे हैं।
> मीडिया संस्थानों ने अपनी खबरें अनाम स्रोतों के वे हवाले से चलाईं और विद्रोही मृतकों की संख्या 20 से 70 तक बताई। लेकिन अब केवल सात विद्रोहियों के मारे जाने की खबरें आ रही हैं।
> अगले दिन राज्यवर्धन सिंह राठौड़ के जवाब में पाकिस्तान के आंतरिक मामलों के मंत्री चौधरी निसार अली खान ने कहा कि पाकिस्तान को म्यांमार समझने की भूल भारत न करे। पाकिस्तान से भारतीय अतिक्रमण की हालत में सीमित परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की धमकी भी आई।
> भारत के पूर्व सैन्य अधिकारियों और सुरक्षा विशेषज्ञों ने भी माना कि पाकिस्तान में प्रवेश करते वक्त जवाबी हमले के लिए भारतीय सुरक्षा बलों को तैयार रहना होगा और संभावी युद्ध की तैयारी के साथ जाना होगा।
> म्यांमार राष्ट्रपति कार्यालय में निदेशक जॉ हते ने आधिकारिक खंडन किया कि भारतीय सेना ने म्यांमार में घुसकर कार्रवाई की।
> भारतीय मीडिया में खबरें चलीं कि म्यांमार संप्रभुता के मसले पर संवेदनशीलता की वजह से खंडन कर रहा है, हालांकि राठौड़ से दावा किया था कि कार्रवाई में म्यांमार का सहयोग था।
> अगर म्यांमार का सहयोग था तो संप्रभुता का मसला कहां आता है, इस पर भारतीय अधिकारी चुप रहे।
> मणिपुर में विद्रोही पीपल्स बिरेशन आर्मी ने दावा किया कि भारतीय सेना के जवानों ने म्यांमार सीमा पर उनके शिविर पर धावा जरूर बोला लेकिन पीएलए का कोई छापामार हताहत नहीं हुआ।
> एनएससीएन (के) ने मणिपुर के संपादकों को फोन कर भारतीय सेना के दावे को गलत बताते हुए कहा कि भारत ने प्रचार का यह ढिंढोरा भारतीय सेना के हत मनोबल को ऊंचा उठाने के लिए पीटा है।
> मणिपुर सहित उत्तरपूर्व के मानव अधिकार संगठन चिंतित हैं कि भारतीय मीडिया में जिस तरह नई सरकार के कथित अनूठे मर्दानगी भरे सुरक्षा सिद्धांत को लेकर गाल बजाया गया उससे सशस्त्र सेना विशेष शक्तियां अधिनियम हटाने को लेकर हो रही प्रगति खटाई में पड़ जाएगी। हाल ही में केंद्र के टास्क फोर्स ने एक अहम प्रस्ताव दिया था कि अंतर्राष्ट्रीय सीमा सील कर दी जाए लेकिन अंदर कानून-व्यवस्था बहाली का काम सेना नहीं पुलिस करे। इस पर सहमति बनाई जा सकती थी। ऐसे कुछ नागा संगठनों का कहना है कि पहले युद्ध विराम मान चुके एनएससीएन (के) को हाल में स्थिति बिगड़ने के पहले वापस युद्ध विराम और वार्ता के लिए राजी करने का प्रयास किया जा सकता था।
> मीडिया के एक हिस्से में प्रकाशित कार्रवाई में शािमल कथित जवानों और हेलीकॉप्टरों की तस्वीरें पुरानी साबित हुईं। सेना ने खंडन किया कि उसने ऐसी कोई तस्वीरें जारी की थीं।
सभी पक्षों की अतिशयक्तियों को घटाकर भी यह साफ है कि भले ही भारतीय सेना की कार्रवाई सीमा के इस पार या उस पार हुई, इसमें म्यांमार से प्राप्त जानकारियों का सहयोग था। सेना ने तो संयम बरता और गर्मी नहीं दिखाई लेकिन भारत सरकार, खुफिया तंत्र और मीडिया के बड़े हिस्से ने अपने अपरिपक्व बड़बोलेपन और उन्माद से न सिर्फ सहयोगी देश म्यांमार को नाराज कर दिया बल्कि उत्तर-पूर्व में शांति की कोशिशों को भी पीछे धकेल दिया। चुपचाप वार्ता और पड़ोसी देशों के सहयोग से सटीक सुरक्षात्मक कार्रवाइयां धीरे-धीरे उत्तर-पूर्व में पिछले वर्षों में सामान्य स्थिति बहाल करने की दिशा में प्रगति दिखा रही थीं, उन्हें एक लपलपाती लंबी जुबान ने पीछे धकेल दिया है। पाकिस्तान को धमकी ने बिना उसकी शत्रु कार्रवाइयों पर लगाम लगाए उसे चौकन्ना कर दिया, सो अलग। यह हास्यास्पद है इस्लामिक स्टेट में बंदी 40 भारतीयों को छुड़ाने में विफल सरकार उसे धमकी दे रही है जबकि आशंका है कि भारतीय मार डाले गए हैं।
(नीलाभ मिश्र का नजरिया आप ट्विटर पर भी पढ़ सकते हैं। फोलो करें @neelabh_outlook )