बीमारू से बिकाऊ प्रदेश तक - रिसर्जेंट राजस्थान
विश्व के कुछ देश भी राज्य में निवेश के लिए आगे आए हैं। जापान ने 685 करोड़ की परियोजनाओं में निवेश का करार किया है तो मलेशिया राजस्थान के सार्वजनिक निर्माण विभाग के साथ मिलकर 10 हजार करोड़ रुपये निवेश करेगा। साऊथ कोरिया, आस्ट्रेलिया और सिंगापूर ने भी विभिन्न परियोजनाओं में निवेश में रूचि प्रदर्शित की है। रिसर्जेंट राजस्थान में शामिल होने आए उद्योगपति, नौकरशाह, मंत्री और मुख्यमंत्री सभी समवेत स्वर में कह रहे है कि अब राजस्थान देश में अग्रणी राज्य हो जाएगा। हालांकि टाटा समूह के चेयरपर्सन सायरस मिस्त्री इससे इत्तफाक नहीं रखते, उनका मानना है, रिसर्जेंट राजस्थान के माध्यम से प्रदेश को देश का अग्रणी राज्य बनाने की बात कही जा रही है, लेकिन राजस्थान तो पहले से ही कई क्षेत्रों में देश के अव्वल राज्यों में शामिल हो चुका है।” पूर्व नौकरशाह सत्यनारायण सिंह सायरस मिस्त्री की बात की ताकीद करते हुए बताते हैं, “राजस्थान देश का सबसे बड़ा सीमेंट उत्पादक राज्य है। भेड़ ऊन उत्पादन में हम अव्वल हैं। राजस्थान देश का तीसरा सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक राज्य है। सेंड स्टोन तथा जिंक उत्पादकता में राजस्थान का अग्रणी स्थान है। राजस्थान 80% सीसा भंडारक राज्य है तथा पुरे देश में पशुधन के मामले में भी राजस्थान सबसे बड़े राज्य की श्रेणी में है।“
यह सच है कि टेक्सटाइल, अक्षय उर्जा, सिरेमिक, मार्बल आदि उद्योगों में राजस्थान का स्थान काफी महत्वपूर्ण है। प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों और जमीन की उपलब्धता के चलते भी राज्य कई मामलों में देश के अन्य राज्यों से आगे खड़ा है। फिर भी रिसर्जेंट राजस्थान जैसे कॉरपोरेट जमावड़े के जरिये सत्तारूढ़ पार्टी यह सन्देश देना चाहती है कि उसके प्रयास से नामी गिरामी निवेशक राज्य में आ रहे हैं। माना जा रहा है कि राज्य सरकार ने इसके लिए काफी पहले से भूमिका तैयार करना प्रारंभ किया और प्रदेश में इंवेस्टमेंट फ्रेंडली माहौल बनाया। विभिन्न श्रमिक एवं अन्य जन संगठनों का आरोप है कि वसुंधरा राजे ने पूंजीपतियों के हित में श्रम कानूनों को बदल दिया है और उनकी सलाहकार परिषद् में भी अधिकतर कॉरपोरेट क्षेत्र के ही लोग भर दिए गए है। शुरू से ही राज्य सरकार उद्योग जगत के लिए लाल कालीन बिछा रही है। यह भी देखा गया कि सरकार की पोलिसिज भी निवेशकों को आकर्षित करने को धयान में रख कर बनाई जा रही हैं। कई लोगों का तो यहां तक कहना है कि न केवल कॉरपोरेट के हित में योजनाएं बनाईं जा रही हैं बल्कि निजी सार्वजनिक सहभागिता (पी पी पी ) की आड़ में शिक्षा और चिकित्सा जैसी बुनियादी सेवाओं को भी धनकुबेरों की झोली में डालने का भरसक प्रयास हो रहा है।
वैसे भी राजस्थान की मुख्यमंत्री का कॉरपोरेट प्रेम कोई ढंकी छिपी हुई बात नहीं है। उन्होंने अपने पिछले मुख्यमंत्री काल में भी रिसर्जेंट राजस्थान सम्मिट किया था, जिसमें इसी तरह बहुत सारे निवेश करार (एमओयू) हुए थे। हालांकि उनमें से ज्यादातर परवान नहीं चढ़ पाए। बजट अध्ययन राजस्थान केंद्र के समन्वयक युवा अर्थशास्त्री नेसार अहमद बताते हैं “वर्ष 2007 में हुए रिसर्जेंट राजस्थान में 1 लाख 62 हजार करोड़ रुपये निवेश वाली 357 परियोजनाओं पर सहमति बनी थी, लेकिन उसका सिर्फ एक तिहाई, तकरीबन 39 हजार करोड़ ही निवेश आ पाया। अनुभव बताते हैं कि इस तरह के कार्यकर्मों में निवेश के वादे तो किए जाते हैं पर उनमें से बहुत कम पूरे हो पाते हैं”। क्या वाकई रिसर्जेंट राजस्थान जैसे आयोजनों से निवेश बढ़ता है या यह सिर्फ सार्वजनिक धन की फिजूलखर्ची है। जैसा कि आम आदमी पार्टी और पीपुल्स ग्रीन पार्टी का आरोप है। जिस तरह से पूरी सरकार इन उद्योगपतियों के समक्ष बिछी हुई नजर आई, वह आश्चर्य का ही विषय है।
रिसर्जेंट राजस्थान के फसाने की हकीकत को उद्योग जगत भी जानता है, उसे भी इस सरकारी तमाशे से कोई बड़ी अपेक्षा नहीं रहती है, मगर लोक दिखावे के लिए यह कार्यक्रम करने पड़ते हैं। मेवाड़ चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स के मानद सचिव सूर्यप्रकाश नाथानी कहते हैं, “सच्चाई तो यही है कि निवेश करार तो पहले ही हो चुके हैं, रिसर्जेंट राजस्थान तो सिर्फ गेट-टूगेदर है”। यह भी जानना रोचक होगा कि इस सम्मिट में आये कई उद्योगपति पहले से ही राजस्थान में निवेश किए हुए हैं और वे अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। इस आयोजन के जरिये वे अपनी परियोजनाओं को प्रचार और विस्तार दे रहे हैं।
सब जानते हैं कि पूंजीपति मुनाफे के लिए निवेश करते हैं, न तो वह कोई एनजीओ हैं और न ही कल्याणकारी सरकार। उसका शुद्ध उद्देश्य लाभ कमाना है। आज उन्हें राजस्थान में नेचुरल रिसोर्स की वजह से लाभ की विपुल संभावनाएं दिख रही हैं, इसलिए वह यहां पैसा डाल रहे हैं। रिसर्जेंट राजस्थान हो या न हो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है। वह किसी सरकार के बुलावे के कारण निवेश नहीं करते। स्पष्ट है कि उनका मन लोक गायिका भंवरी देवी के सुरों से नहीं डोलता और न ही इरफान खान की आवाज उन पर असर करती है, न उन्हें इस बात से कोई मतलब होता है कि शासन करने वाले किस पार्टी के हैं सब सरकारें उनकी हैं और सारी सत्ताओं को वो अपनी मुट्ठी में रखते हैं। पर तभी, जबकि उनका निवेश दिन-दूना, रात-चौगुना बढ़ना तय हो, वर्ना पूंजी जगत के ये सूरमा एक धेला भी कहीं निवेश नहीं करते। अभी उन्हें राजस्थान में पर्याप्त मुनाफा दिख रहा है और वे इसमें निवेश करने को तत्पर हैं। ऐसे में अगर राजस्थान की सरकार यह नारा लगाए कि ‘पधारो म्हारे देश, राजस्थान है तैयार‘, तो कौन नहीं आएगा। इसलिए आ तो गए हैं, कागजों में करार भी हो गए हैं। मगर वे जमीन पर कितना उतर पाएंगे यह एक अनुत्तरित प्रश्न है। जिसे भविष्य के लिए छोड़ देना अच्छा रहेगा।
अगर बात राज्य में निवेश योग्य माहौल की और सुशासन की की जाए तो संभवतः इसका जवाब आज हां में नहीं है। कानून और व्यवस्था की निरंतर बिगड़ती जा रही स्थिति तो चिंताजनक है ही, नौकरशाही का अड़ियल रवैया नब्बे के दशक के इंस्पेक्टर राज की याद दिलाता है। दलाल संस्कृति इतनी हावी है कि बिना लेन-देन कुछ भी नहीं होता है। भ्रष्टाचार और लालफीताशाही के दौर की वापसी हो गई है। कुछ मंत्री और कई विधायक खुलेआम वसूली कर रहे हैं। ऐसे में राज्य में किसका विकास होगा, यह सोचने योग्य बात है। बड़े-बड़े निवेश के मुगालते में लघु और मध्यम दर्जे के उद्योग दम तोड़ते नजर आ रहे हैं। बड़ी संख्या में मंझोले उद्यमी अपना कारोबार समेटने को मजबूर हुए हैं, जिससे बेरोजगारी बढ़ी है। जब भी बड़े उद्योग आते हैं तब रोजगार मिलने का ढोल तो पीटा जाता है, मगर सच्चाई यह है कि बड़े उद्योगों में ज्यादातर दक्ष लोगों को काम मिलता है। स्थानीय लोग तो बड़े उद्योगों के दरवाजों में भी प्रवेश नहीं कर पाते हैं।
बड़े बड़े कॉरपोरेट घराने जिस भी इलाकों में अपनी ईकाईयां स्थापित करते हैं तो वहां के पर्यावरण और सामाजिक सांस्कृतिक सोहार्द्र को नष्ट कर देते हैं। शांति और व्यवस्था की स्थितियां बिगड़ जाती हैं, सार्वजनिक उपयोग के प्राकृतिक संसाधनों पर या तो जबरन कब्जा कर लिया जाता है अथवा उनमें मलबा डाल कर उन्हें किसी काम का नहीं रखा जाता है। पूंजीवादी तत्व गांव कस्बों में ऐसे दलाल पैदा कर देते हैं जो जनता की आवाजों को कुचलने में अपनी भूमिका अदा करते हैं। रिसर्जेंट राजस्थान के इस कार्यक्रम के दौरान जिस नवलगढ़ इलाके में 7 हजार करोड़ के निवेश की बात कही गई है, वह इलाका इन समस्याओं से रूबरू है। अन्यायपूर्ण उत्खनन के विरुद्ध जन संघर्ष कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश मीणा बताते हैं कि नवलगढ़ का पूरा इलाका डार्क जोन है, पीने के भी पानी की समस्या है। वहां सीमेंट उद्योग के लिए पानी कहां से आएगा? इस इलाके के लोग पिछले साढ़े पांच साल से खनन माफिया से लड़ रहे हैं। जनता की आवाज को कंपनियां और सरकार मिलकर कुचल रही हैं। नवलगढ़ हो या नीम का थाना चारों तरफ संघर्ष जारी है।
हाल ही में भीलवाड़ा जैसे औद्योगिक जिले में जिंदल में ठेका पाने को लेकर दो ठेकेदारों में शुरू हुआ संघर्ष खुनी लड़ाई में बदल गया है। जो भी लोग कंपनी के खिलाफ बोलते हैं, वे या तो मारपीट के शिकार हो जाते हैं या उन पर पुलिस झूठे मामले लगा कर कार्यवाही करने लगती है। ऐसी स्थिति में स्थानीय लोग न तो इन उद्योगों में रोजगार प्राप्त कर पाते हैं और न ही शांति से अपने गांव में जी सकते हैं।
राजस्थान की बहुप्रतीक्षित रिफाइनरी, सेज और कृषि जैसे क्षेत्र इस रिसर्जेंट के दौरान विस्मृत कर दिए गए हैं, स्मार्ट सिटी और औद्योगिकीकरण की अंधाधुंध योजनाओं पर बात की जा रही है। जिन-जिन क्षेत्रों में निवेश आमंत्रित किया जा रहा है, वो राजस्थान की विपुल प्राकृतिक संपदा को निजी हाथों में लुटाने का प्रयास दिखाई पड़ रहा है। यह साफ हो चुका है कि पूंजीपतियों की नजर राजस्थान की खाली पड़ी जमीन पर है, जमीन के नीचे दबे भंडार पर है, यहां की हवा पर है और सूरज की रौशनी पर है, ताकि वह कोलोनियं बना सकें, सोलर एनर्जी के प्लांट लगाए जा सकें, विंड एनर्जी से कमा सकें और खनन, आयल, गैस, मार्बल, सिरेमिक जहां से भी लाभ मिले, ले सकें। कहीं ऐसा न हो कि राज्य सरकार धनकुबेरों के लिए कालीन बिछाती रहे और राजस्थान ‘रिसर्जेंट राजस्थान’ जैसे आयोजन करके बीमारू राज्य का तमगा हटाने के लिए बिकाऊ राज्य बनने की सीमा तक पहुंच जाए।
( भंवर मेघवंशी स्वतंत्र पत्रकार हैं।)