Advertisement
18 June 2016

लोमहर्षक हैं ‘उड़ता पंजाब’ के दृश्य

गूगल

घना नीला हरा अंधकार, ऊंचे-ऊंचे पेड़, सरहद पार से इधर पैकेट फिँकवाए जा रहे हैँ स्थानीय दलालोँ के लिए। गांव वाले दिशा-मैदान के लिए बैठे हैँ। उनमेँ से एक है खेतोँ मेँ काम करने वाली बिहारन पिंकी। एक पैकेट उस के हाथ भी लगता है। वह चुटकी भर सफ़ेद पाउडर निकालती है। यह है चिट्टा (हेरोइन)। गांव का नशेड़ी किशोर बल्ली उस की जान-पहचान का है। उस के जरिये वह कुछ नफ़ा कमाना चाहती है। दलाल के पास जाते-जाते उसकी समझ मेँ आता है कि वह क्या करने जा रही है। सारा माल कुएं मेँ फेंक देती है। जिस माल को वह तीन हज़ार मेँ बेचना चाहती थी वह दस करोड़ कीमत का तीन किलो का बंडल था। इसके लिए माफ़िया उसे माफ़ नहीँ करने वाला। यहां से शुरू होता है पिंकी का गहरे दलदल मेँ फंसने का सफ़र।

दूसरी ओर रॉकस्टार टॉमी की अपनी दुनिया है। वह नशेड़ियोँ का प्यारा है। वह और उसके साथी अपने मेँ जीते हैँ। अपने को सब कुछ समझते हैँ। वह गाता हैँ, कमाता है, नशा करता है, नशे को बढ़ावा देता है। और नशेड़ियोँ मेँ अपनी लोकप्रियता के नशे मेँ चूर है। उसके लिए वही सही है जो वह करता है। अपने को सब से बड़ा समझना उसकी एक और लत है। पल मेँ तोला, पल मेँ माशा होना उस का स्वभाव है।

उधर, पुलिस है जो नशे की लत से जूझ रही है। एक इंस्पेक्टर किसी ट्रक को रोकता है तो बड़ा अधिकारी बताता है कि पहलवान जी के ट्रकोँ को जांचा नहीँ जाता। इस प्रकार हम बड़े नेता पहलवान जी से परिचित होते हैँ। चुनावोँ के दिनोँ मेँ उनके ट्रकों से उपहार लेने के लिए वोटर उतावले रहते हैँ। ये उपहार क्या हैँ – यह बाद मेँ पता चलता है। किशोर बल्ली नशेड़ी है जो नशे मेँ इतना आगे बढ़ चुका है कि अब कोई राह नज़र नहीँ आती। वह और उसके साथी इधर-उधर उलटियां करते सड़ते पड़े रहते हैँ। छोटे भाई बल्ली की हालत से घबरा कर इंस्पेक्टर नौजवान डाक्टरनी के पास ले जाता है जिसने नशा छुड़ाने का आंदोलन सा छेड़ रखा है।

Advertisement

इन सब प्लाटोँ और सबप्लाटोँ को ले कर ‘उड़ता पंजाब’ का दिल, दिमाग और आत्मा को झिंझोड़ देने वाला प्रभावशाली तानाबाना बुना है पटकथा लेखक सुदीप शर्मा और निर्देशक अभिषेक चौबे ने। उल्लेखनीय है कि अभिषेक चौबे ‘ओंकारा’, ‘इश्किया’, ‘डेढ़ इश्किया’, ‘मटरू की बिजली का मंडोला’ जैसी फिल्मोँ के पटकथा लेखक भी रहे हैँ।

टूटे लोगोँ की मर्मस्पर्शी जिंदगी और टूटे दिलोँ को राहत देने वाली यह सशक्त कहानी और फिल्म दर्शकोँ को हर पल जोड़े रहती है। इस की पृष्ठभूमि मेँ है भ्रष्टाचार मेँ लिप्त व्यवस्था, जिसे सुधारे बिना नशे की समस्या को सुलझाया नहीं जा सकता।

कहानी को साकार करने मेँ सबसे बड़ा योगदान किया है रॉक स्टार टॉमी की भूमिका मेँ शाहिद कपूर के टैटू खुदे शरीर ने। हमेशा नशे मेँ धुत बरताव ने और जब उसे समझ मेँ आता है कि उसने एक पूरी पीढ़ी को बरबाद कर दिया है तो उस के जुझारू क्रियाकलाप ने। उसके जैसा परिवर्तनशील सनकी मूड वाला भयावह पेचीदा व्यक्तित्व दर्शक के सामने ला पाना शाहिद का अपना प्राप्तव्य है। ‘कमीने’ और ‘हैदर’ के बाद ‘उड़ता पंजाब’ शाहिद को एक और ऊंचाई तक ले जाता है।

उधर, बिहारन खेत मज़दूर पिंकी साधारण मज़दूर नहीँ है। किसी ज़माने की हॉकी स्टार है। बेरोजगारी से मज़बूर होकर पंजाब मेँ कमाने आई है। वह मज़बूर है लेकिन दुनिया की बातोँ से अनजान नहीँ है। इस दीन-हीन अवतार मेँ माफ़िया के कब्जे मेँ फंसी घायल हिरनी जैसा उस का विद्रोह करना, भाग निकलने की कोशिश, फिर पकड़े जाना, और फिर एक बार।। पिंकी की जगह आलिया भट्ट के अलावा कोई और हो सकती थी तो वह मुझे नज़र नहीं आती।

नशे से ग्रस्त बल्ली को देख कर दया आती है। हम उसके साथ हो जाते हैँ, पर वह कब क्या कर बैठे – इस कठिन भूमिका को निभाया है प्रभजोत सिंह ने।  उस के बड़े भाई इंस्पेक्टर की भूमिका मेँ हैँ पंजाब के सुपर स्टार दिलजीत सिंह जो डाक्टरनी प्रीत (करीना कपूर खान) के साथ मिल कर राजनीतिक भ्रष्टाचार की जड़ खोदने का काम करते हैँ। फिल्म के दिल दहलाऊ अंत मेँ बुरी तरह घायल प्रीत को देख कर मुझे ‘ओंकारा’ की पावनता की मूरत डॉली मिश्रा याद आई यानी अथेलो की डेस्डेमोना।

मेरी पीढ़ी के लोग हिप्पियोँ के ज़माने की (1971) देव आनंद निर्मित-निर्देशित और देव के साथ साथ जीनत अमान और मुमताज वाली फ़िल्म ‘हरे कृष्णा हरे राम’ के पिक्चर पोस्टकार्ड जैसे ‘लगभग सुंदर’ नशेवाले दृश्योँ को देखकर ड्रग ऐडिक्शन का रूप समझते रहे हैँ। लेकिन ड्रगों की लत क्या है, उस का क्या प्रभाव होता है, कैसे इसके नशेड़ी खंडहरोँ मेँ उलटियां करते सड़ते पड़े रहते हैँ यह दर्शाने वाले घिन और करुणा की भावना जगाने वाले भयानक लोमहर्षक दृश्य देख कर ही यह समझ मेँ आता है कि इस लत मेँ फंसे समाज का उद्धार जल्दी से जल्दी होना चाहिए।

और अंत मेँ

फ़िल्म प्रमाणन बोर्ड के अड़ियल अध्यक्ष पहलाज निहलानी को धन्यवाद। ‘उड़ता पंजाब’ मेँ बेहिसाब कट और इसके ख़िलाफ़ कई बेतुके और हास्यास्पद असंबद्ध बयान दे कर (‘पंजाब को बदनाम करने के लिए इसे आम आदमी पार्टी ने पैसा दिया था, ‘यह पंजाब मेँ होने वाले चुनावोँ मेँ सत्तासीन पक्ष को हराने के लिए बनाई गई है’) इसके बारे मेँ पूरे देश को जागरूक कर दिया। वैसे सवाल यह भी उठता है कि यदि दोनोँ बयान सही भी रहे हों तो उनका फ़िल्म की प्रदर्शनीयता के प्रमाणपत्र से क्या संबंध हो सकता है? उन का अड़ियलपन इस हद तक पहुंच गया कि अदालत के आदेश के बाद इसके प्रमाण-पत्र पर ठप्पा लगा दिया गया ‘माननीय बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा पास।’ इस प्रकार भारतीय सिनेमा के इतिहास मेँ यह पहली फ़िल्म बन गई जिसके प्रमाण पत्र का दायित्व न्यायालय को दिया गया।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और माधुरी के संपादक रहे हैं)

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोरसे
TAGS: उड़ता पंजाब, ड्रग, शाहिद कपूर, करीना कपूर, आलिया भट्ट, टॉमी, नशा, माफिया, पुलिस, नेता, पहलाज निहलानी, फिल्म प्रमाणन
OUTLOOK 18 June, 2016
Advertisement