चर्चाः अंकल ओबामा ‘पाक भतीजों’ को भी दें शिक्षा | आलोक मेहता
अमेरिका परमाणु हथियार परिसीमन संधि पर दुनिया भर के देशों के हस्ताक्षर पर जोर देता रहा है। भारत पर भी उसके दबाव रहे हैं। लेकिन भारत इसे भेदभावपूर्ण नीति मानता है। भारत की आपत्ति उचित है, क्योंकि विश्व में परमाणु हथियारों का 90 प्रतिशत जखीरा अमेरिका और रूस के पास है। धीरे-धीरे चीन भी परमाणु शक्ति संपन्न हो गया। भारत के परमाणु परीक्षण पर अमेरिका ने आर्थिक प्रतिबंध भी लगाए। दूसरी तरफ पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर प्रारंभिक औपचारिक आपत्तियां करने के साथ-साथ स्वयं अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों की सप्लाई करता रहा।
बराक ओबामा की हिरोशिमा यात्रा के अगले दिन पाकिस्तान में परमाणु बम के निर्माता ए.क्यू. खान ने इस्लामाबाद में धमकी दी है कि ‘पाकिस्तान पांच मिनट में दिल्ली को परमाणु बम का निशाना बना सकता है।’ खान ने यह बात भी पाकिस्तान द्वारा 18 साल पहले किए गए परमाणु परीक्षण की वर्षगांठ पर आयोजित कार्यक्रम में कही है। खान ने इस बात पर भी अफसोस जाहिर किया कि ‘पाकिस्तान तो 1984 में ही परमाणु बम बना लेता, लेकिन जियाउल हक ने अंतरराष्ट्रीय दबाव में अनुमति नहीं दी।’
खान की धमकी पर भारत को कोई बड़ी चिंता नहीं हो सकती और रक्षा विशेषज्ञों ने इसे प्रचार स्टंट ही माना है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय यह जानता है कि इस परमाणु वैज्ञानिक पर परमाणु तकनीक की चोरी का अरोप अदालत तक पहुंच चुका है। बाद में पाकिस्तानी अदालत ने उसे बरी कर दिया। लेकिन हाल के वर्षों में भारत सहित अमेरिकी विशेषज्ञ एवं राजनयिक परमाणु हथियार आतंकवादियों के हाथ नहीं लगने देने के लिए हरसंभव कदम उठाने की सलाह देते रहे हैं। अमेरिका परमाणु हथियारों और आतंकवाद पर बहुत कुछ बोलता है। फिर भी पाकिस्तान में बैठे शासकों एवं सैन्य अधिकारियों को आतंकवादी गुटों पर कठोर कार्रवाई का पाठ क्यों नहीं पढ़ाता?