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चर्चाः अंकल ओबामा ‘पाक भतीजों’ को भी दें शिक्षा | आलोक मेहता

चर्चाः अंकल ओबामा ‘पाक भतीजों’ को भी दें शिक्षा | आलोक मेहता

बराक ओबामा पहले अमेरिकी राष्‍ट्रपति हैं, जिन्होंने हिरोशिमा जाकर 1945 में अमेरिका द्वारा परमाणु बम गिराए जाने की भयानक मानवीय गलती को स्वीकारा एवं विभीषिका में मारे गए लोगों के स्मृति स्‍थल पर श्रद्धा सुमन अर्पित किए। 70 साल बाद ही सही अमेरिकी शासक की ओर से की गई यह पहल दुनिया के लिए सबक है।
ओबामा बोले, युद्ध में सब जायज है, जापान में हिरोशिमा पर नहीं मांगूंगा माफी

ओबामा बोले, युद्ध में सब जायज है, जापान में हिरोशिमा पर नहीं मांगूंगा माफी

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने जापान के मीडिया को दिए एक साक्षात्कार में साफ कहा है कि वह हिरोशिमा पर किए गए परमाणु हमले के लिए इस सप्ताह अपनी एेतिहासिक यात्राा के दौरान माफी नहीं मांगेंगे। जब ओबामा से पूछा गया कि उनके द्वारा वहां की जाने वाली टिप्पणियों में क्या माफी भी शामिल की जाएगी, तो ओबामा ने कहा, नहीं, क्योंकि मुझे लगता है कि यह समझाना जरूरी है कि युद्ध के बीच में, नेता हर तरह के फैसले लेते हैं।
क्या हिरोशिमा जाकर इतिहास लिखेंगे ओबामा

क्या हिरोशिमा जाकर इतिहास लिखेंगे ओबामा

दूसरे विश्वयुद्ध को 71 साल बीत चुके हैं और दुनिया के लोग जापान के उन दो शहरों की पीड़ा भी शायद भूल चुके हैं जिन्होंने उस युद्ध की सबसे भयानक त्रासदी अपने सीने पर झेली थी। दुनिया में पहली बार परमाणु बम का हमला जापान के हिरोशिमा शहर पर हुआ था जिसमें करीब 1 लाख 40 हजार लोग मारे गए थे। इसके बाद नागाशाकी पर परमाणु हमले ने युद्ध को पूरी तरह समाप्त कर दिया था।
हिरोशिमा पर परमाणु हमले के 70 वर्ष

हिरोशिमा पर परमाणु हमले के 70 वर्ष

जापान पर परमाणु बम हमले के 70 वर्ष पूरे होने पर स्मृति समारोह आयोजित किया गया है। ऐसा पहली बार हो रहा है है कि वाशिंगटन के एक वरिष्ठतम अधिकारी समारोह में शिरकत कर रहे हैं।
हिरोशिमा और सुरक्षित दुनिया के आश्‍वासन के 70 साल

हिरोशिमा और सुरक्षित दुनिया के आश्‍वासन के 70 साल

जापान पर नृशंस परमाणु बमबारी के सत्तर साल आज पूरे हुए। 6 और 9 अगस्त 1945 को जो डेढ़ से दो लाख नागरिक हिरोशिमा और नागासाकी पर अमेरिका के गिराए बमों से तत्काल मारे गए, शायद एक मायने में उनसे ज्यादा उन्होंने झेला जो जिंदा रह गए। एक खास बात जो इस पीढ़ी और अणुबम-जनित बीमारियों को झेलती बाद की पीढ़ियों में देखी गई वो यह कि उनमें किसी बदले की भावना की जगह दुनिया को परमाणु मुक्त बनाने की आकांक्षा ने ले ली, क्योंकि मानवीय हिंसा के इस सर्वाधिक संहारक हथियार के बाद शायद अब वापस ही लौटा जा सकता था।
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