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क्या हिरोशिमा जाकर इतिहास लिखेंगे ओबामा

दूसरे विश्वयुद्ध को 71 साल बीत चुके हैं और दुनिया के लोग जापान के उन दो शहरों की पीड़ा भी शायद भूल चुके हैं जिन्होंने उस युद्ध की सबसे भयानक त्रासदी अपने सीने पर झेली थी। दुनिया में पहली बार परमाणु बम का हमला जापान के हिरोशिमा शहर पर हुआ था जिसमें करीब 1 लाख 40 हजार लोग मारे गए थे। इसके बाद नागाशाकी पर परमाणु हमले ने युद्ध को पूरी तरह समाप्त कर दिया था।
क्या हिरोशिमा जाकर इतिहास लिखेंगे ओबामा

पूरी दुनिया इन हमलों को भयानक त्रासदी के रूप में देखती है और यह हमला करने वाले अमेरिका में भी बड़ी आबादी इसे भूलने का ही प्रयास कर रही है। जापान और अमेरिका इन 70 वर्षों में एक-दूसरे के काफी करीब आए मगर इस हमले की कसक दोनों को वैसा मित्र नहीं बनने देती जैसी दो आर्थिक महाशक्तियों से उम्मीद की जाती है। इसके पीछे एक वजह यह भी मानी जाती है कि अमेरिका ने कभी इतना भयानक हमला करने के लिए माफी नहीं मांगी। यहां तक कि इन 7 दशकों में किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने हिरोशिमा की यात्रा तक नहीं की क्योंकि इससे ऐसा संदेश जाने का खतरा था कि अमेरिका शायद परोक्ष रूप्‍ से अपनी गलती मान रहा है। वैसे भी अमेरिका में एक ऐसा तबका है जो परमाणु हमले को विश्वयुद्ध की समाप्ति के लिए जरूरी बुराई के रूप में मानता रहा है। यह तबका इसके लिए किसी क्षमा याचना को जरूरी नहीं मानता।

मगर इस साल इतिहास बदल सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को सलाह दी गई है कि इस वर्ष मई में हिरोशिमा जाकर उन्हें वहां कुछ घंटे गुजराना चाहिए। अमेरिकी अखबार वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार ओबामा मई में जी-7 की बैठक के लिए जापान जा रहे हैं और इसी दौरान उनके हिरोशिमा जाने की संभावनाएं व्हाइट हाउस टटोल रहा है। इस कड़ी में यह जानना जरूरी है कि अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी आज जी-7 बैठक की तैयारियों के सिलसिले में हिरोशिमा पहुंच रहे हैं और पिछले 70 सालों में किसी शीर्ष अमेरिकी राजनयिक की यह पहली हिरोशिमा यात्रा है। इसे लेकर जापान और खासकर हिरोशिमा के लोगों में उत्सुकता है।

गौरतलब है कि बराक ओबामा पिछले कुछ समय से दुनिया को पूरी तरह परमाणु शस्त्र मुक्त जगह बनाने की वकालत करते रहे हैं। इस बारे में अपने देश के अलावा वह दुनिया के सार्वजनिक मंचों पर भी अपनी आवाज उठाते रहे हैं मगर इस दिशा में कुछ खास नहीं कर पाए। अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में वह अपने कार्यकाल के आखिरी वर्ष में हैं और उनके रणनीतिकारों का मानना है कि विभिन्न मंचों पर दिए गए भाषणों का जो प्रभाव नहीं हुआ है वह हिरोशिमा में कुछ घंटे बिताने से हासिल किया जा सकता है। यह दौरा पूरी दुनिया में चर्चा में विषय बन सकता है और पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण के लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ा जा सकता है। यही नहीं इससे जापान और अमेरिका के बीच पूर्ण मेल-मिलाप की राह में जो बाधा है उसे भी आसानी से दूर किया जा सकता है। ऐसे में देखना यही है क्या ओबामा अपने पूर्ववर्तियों का अनुसरण करेंगे या इतिहास लिखने का मौका नहीं गंवाएंगे। 

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