चर्चाः दुनिया के बदलते रिश्तों से सीख | आलोक मेहता
लगभग 88 वर्षों बाद सोमवार को अमेरिका और क्यूबा के संबंधों के इतिहास का नया अध्याय लिखा गया। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल की यह सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी। राष्ट्रपति बराक ओबामा और क्यूबा के राष्ट्रपति राउल कास्त्रो के बीच वार्ता के अलावा हवाना की सड़कों पर हर्षनाद के साथ नई पहल का स्वागत होता रहा। दुनिया की कम्युनिस्ट सरकारों में क्यूबा ने अमेरिका के साथ सर्वाधिक कठोर रुख अपनाया हुआ था। फिदेल कास्त्रो ने अमेरिका को चुनौती दे रखी थी और दशकों तक एकला चलो की रणनीति बनाकर क्यूबा को जीना-मरना सिखाया। सादगी में भी उनकी अद्भुत मिसाल थी। फिर भी क्यूबा में उनके उत्तराधिकारी राउल कास्त्रो ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बदलाव देखते हुए नई पीढ़ी के लिए उदार रुख अपनाया और संबंधों में सुधार के संकेत दिए। ओबामा ने भी आंतरिक राजनीति में असहमतियों के बावजूद क्यूबा को साथ लेने के लिए हर संभव कूटनीतिक कदम उठाए। यह अंतरराष्ट्रीय राजनीति के लिए भी शुभ संकेत है। आर्थिक संबंधों की दृष्टि से अमेरिका ने चीन, भारत और ईरान तक से संबंधों को अधिकाधिक बढ़ाने की पहल की है। जब महाशक्ति अपना रवैया बदल सकता है, तो भारत कब तक चीन और पाकिस्तान के साथ कड़वाहट बनाए रख सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने के बाद चीन के राष्ट्रपति को आमंत्रित कर अच्छे संबंधों के समझौते किए। लेकिन उनकी पार्टी के नेता अब भी चीन को ‘मित्रता’ के खाते में रखने को तैयार नहीं हैं। पाकिस्तान की सेना और आई.एस.आई. निश्चित रूप से भारत विरोधी आतंकवादी गतिविधियों को प्रोत्साहित करती रही हैं। लेकिन देर-सबरे पाकिस्तान को भी पूरी तरह बदलना होगा। चीन ने कल नेपाल को भारत-चीन का सेतु बनने का आग्रह किया। इस दृष्टि से भारत को आने वाले समय में क्रांतिकारी ढंग से कदम बढ़ाने होंगे।