मोदी की उपग्रह परियोजना से पाक के बाद अब अफगानिस्तान ने भी मुंह मोड़ा
भारत की उपग्रह परियोजना के जरिये दक्षिण एशियाई देशों को एक मंच पर लाने की कवायद से पाकिस्तान के हटते ही अफगानिस्तान भी अब दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है। सूत्रों ने बताया कि अफगानिस्तान ने अंतरिक्ष संबंधी अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए यूरोपीय कंपनियों से नाता जोड़ लिया है। उपग्रह की वार्ता से जुड़े एक अधिकारी ने बताया, हमने अफगानिस्तान के साथ कई दौर की वार्ता की। एक बिंदु पर उन्होंने एक खास चीज की मांग की और हमारे बीच करार हुआ। अगली बैठक में वे कुछ दूसरी मांग करते हैं। अधिकारी ने कहा, एक और मुद्दा उपग्रह की अवस्थिति का था। भारत और अफगानिस्तान जहां अपना उपग्रह रखना चाहते थे, वह कमो-बेश एक ही था। सूत्रों ने बताया कि उपग्रह परियोजना के प्रति बांग्लादेश की भी बहुत दिलचस्पी नहीं है क्योंकि वह अपने भू-स्थैतिक संचार उपग्रह बंग बंधु-। का प्रक्षेपण करने वाला है। शुरूआत से पाकिस्तान का आग्रह था कि परियोजना को दक्षेस के दायरे में लाया जाए जिसका भारत ने विरोध किया। इसके बाद, पाकिस्तान इस परियोजना से हट गया। भारत ने स्पष्ट किया है कि वह परियोजना को आगे बढ़ाएगा।
बहरहाल, श्रीलंका, भूटान, मालदीव और नेपाल अब भी इस परियोजना को आगे ले जाने के लिए उत्सुक हैं और इन देशों से बात जारी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जून 2014 में इसरो से एक ऐसा उपग्रह विकसित करने को कहा है जिसे पड़ोसी देशों के लिए तोहफे के रूप में समर्पित किया जाए। उन्होंने काठमांडू में दक्षेस शिखर सम्मेलन के दौरान भी इस संबंध में घोषणा की थी। भारत ने दक्षेस देशों के लिए खास तौर पर तैयार किए जाने वाले इस उपग्रह के तौर-तरीकों को अंतिम रूप देने के मकसद से दूसरे सदस्य देशों के विशेषज्ञों के साथ विचार विमर्श किया है। भारत उपग्रह के निर्माण और उसके प्रक्षेपण में होने वाला खर्च उठाएगा जबकि दक्षेस के सदस्य देश जमीनी प्रणाली पर होने वाला खर्च वहन करेंगे। इस परियोजना का उद्देश्य दक्षेस क्षेत्र के लिए एक उपग्रह का विकास करना है जो दूरसंचार और टेलीविजन, डीटीएच, दूर-शिक्षा और आपदा प्रबंधन जैसे प्रसारण अनुप्रयोगों के क्षेत्र में हमारे सभी पड़ोसियों को सेवाओं की पूरी श्रृंखला उपलब्ध करा सके। उपग्रह का प्रक्षेपण इस साल दिसंबर में होना है।