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22 September 2015

गंगा-जमुनी संस्‍कृति पर हमलों का दौर

दिन-प्रतिदिन ये हमले और तीखे होते जा रहे हैं। असहमत बुद्ध‍िजीवियों की हत्याओं और खान-पान पर रोक-टोक के जरिये पूरे माहौल को घुटन भरा बनाया जा रहा है। बहुसांस्कृतिक, बहुलतावादी विचारों में रचे-बसे लेखकों पर सांप्रदायिक हमले हो रहे हैं।  

केरल, जहां की संस्कृति विभिन्न धर्मों की पहचान बनाए रखने और उन्हें घुलने-मिलने देने के लिए जानी जाती है, हाल ही में एक खबर की वजह से चर्चाओं में रहा। जाने-माने साहित्यिकार और मलयाली विद्वान डॉ. एम.एम. बशीर को रामायण पर उनका कॉलम रामायण जीनिथाश्रमऋथम  बंद करने की धमकी दी गई। वह मलयालम दैनिक मातृभूमि के लिए रामायण पर छह किस्तों की एक सीरीज लिख रहे थे, क्‍योंकि केरल में यह रामायण का महीना है और कई प्रकाशन इस विषय पर आलेख छापते हैं। वहां कवि और मशहूर गीतकार थॉमस मैथ्यू और स्वर्गीय यूसुफ अली कचेरी जैसे कई नामी गैर-हिंदू लेखक हुए हैं जिन्होंने इन विषयों पर लिखा है और दिलचस्‍प बात यह है कि इनके लिखे को अभी तक धार्मिक विभाजन के नजरिये से नहीं देखा गया था। लेकिन डॉ. बशीर को फोन पर गालियां मिलीं कि उनके जैसे किसी मुस्लिम को हिंदू देवताओं की आलोचना करने का क्‍या अधिकार है। जबकि बशीर केवल राम द्वारा सीता को अग्नि परिक्षा के लिए बुलाए जाने की वाल्मीकि की आलोचना पर टिप्पणी कर रहे थे। बशीर को, जो एक मुस्लिम हैं, पहली बार इस बात का अहसास कराया गया कि वह एक मुसलमान हैं। संघ परिवार के तत्वों खासकर हनुमान सेना के हमलों की झड़ी का सामना करने में असमर्थ बशीर ने अपना कॉलम ही बंद कर दिया। वैसे इस विषय पर वह पचासों लेख लिख चुके हैं।      

देश के बहुलतावादी मिजाज पर हो रहे लगातार हमलों में दो बातें खासतौर पर चिंताजनक हैं। पहली बात यह कि ऐसे कई साहित्यिक लोग और संत हुए हैं जिन्होंने खुद की आस्‍था से अलग हटकर इस उपमहाद्वीप में धर्म के सांस्कृतिक पक्ष में अहम योगदान दिया। मिसाल के तौर पर भगवान कृष्‍ण के जीवन और उनकी शिक्षाओं पर रहीम व रसखान के उत्‍कृष्‍ट योगदान को इस उपमहाद्वीप के सांस्कृतिक इतिहास से कभी मिटाया नहीं जा सकता है। इसी तरह उपनिषदों के फारसी में अनुवाद में दारा शिकोह के योगदान को कौन भुला सकता है। बीजापुर के नवाब के दरबार में देवी सरस्वती की वंदना के लिए कई वीणा वादक हुआ करते थे। कुछ साल पहले तक हमने उस्‍ताद बिस्मिल्लाह खान की शहनाई का आनंद लिया है जिनके ज्यादातर सुर हिंदू देवी-देवताओं की महिमा में समर्पित हैं।          

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महाराष्ट्र के एक संत शेख मोहम्मद, वरकारी परंपरा की बड़ी हस्ती हुए हैं। उन्‍होंने अपना जीवन भगवान विथोबा (ईंटों पर खड़े होने वाले भगवान) को समर्पित किया, जो महाराष्ट्र में भक्ति परंपरा का एक महत्वपूर्ण अंग है। उन जैसे और भी संत हुए हैं जैसे रामदेव पीर, सत्या पीर जिन्‍होंने सांस्कृतिक मेलजोल बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। पंजाब में तो मियां मीर को स्वर्ण मंदिर की नींव रखने के लिए आमंत्रित किया गया था। आज भी भारत के विभिन्न क्षेत्रों के गांवों-कस्‍बों में सूफी-संतों की दरगाह और यादगार हैं जहां विभिन्‍न मजहबों के लोग पूरे श्रद्धा भाव से आते हैं।         

इस मेलजोल को कबीर, नानक, और तुलसीदास ने खासतौर पर व्‍यक्‍त किया। इनके जीवन और कार्यों में दोनों धर्मों का प्रभाव दिखाई पड़ता है। नानक ने हिंदू और इस्लाम दोनों धर्मों से ग्रहण किया जबकि तुलसीदास अपनी कवितावली में एक मस्जिद में रहने का जिक्र करते हैं। कबीर ने लोगों के साथ सरल हिंदी में संवाद किया और दोनों समुदायों के बीच सेतु की तरह बन गए। 

भारत में औपनिवेशिक काल में शुरू हुई सांप्रदायिक राजनीति, संस्कृति और परंपराओं को धर्म के साथ जोड़ते हुए आगे बढ़ी है। आज विभाजन के बीज इतनी गहराई तक जा चुके हैं, हमने देखा कि मशहूर चित्रकार एमएफ हुसैन इस हद तक डर गए कि उन्हें अपने काम को जारी रखने के लिए देश तक छोड़ना पड़ गया। उनकी जड़ें उस गांव में थीं जहां हिंदू-मुस्लिम परंपराओं का गहरा मिश्रण था और उन्‍होंने हिंदू विषयों को अपनी विरासत का एक हिस्सा माना। हैरानी की बात है कि उनका काम 1980 के दशक तक निशाने पर नहीं आया जब सांप्रदायिकता की आग ने समाज के विभिन्न पक्षों को प्रभावित करना शुरू कर दिया था और असहिष्णु तत्वों की प्रचंडता इतनी फैलने लगी थी कि उन्‍होंने हुसैन जैसे लोगों की कृतियों को बर्बाद करना शुरू कर दिया था।

बशीर पर हमले का एक पहलू भगवान राम की कथा की व्‍याख्‍या से जुड़ा है। इस महाद्वीप में और यहां तक कि सुदूर पूरब में भी राम कथा के सैंकड़ों संस्करण प्रचलित हैं। हिंदुत्व की राजनीति ने रामानंद सागर वाली रामायण को पकड़ा है। जबकि बशीर ने वाल्मीकि परंपरा के राम को चुना है। संघ परिवार के राम किसी भी प्रकार की आलोचना से परे भगवान विष्णु के अवतार हैं। इसीलिए ए.के. रामानुजन के उत्कृष्ट निबंध one hundred Ramayana को दिल्ली विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम से बाहर कर दिया गया। यह उत्‍कृष्‍ट निबंध रामायण कथा के विविध सौंदर्यों का वर्णन करता है। सीता और शंबूक को निर्वासित करने के लिए राम की आलोचना करने वाली अंबेडकर की Riddles of Hindusim को भी कड़े विरोध का सामना करना पड़ा था।

लेकिन आज की आक्रामक राजनीति में रामायण का केवल वही संस्करण स्वीकार्य है जो राम को एक दिव्य व्यक्तित्व के रूप में स्थापित करता है, सीता की अग्नि परीक्षा और शंबूक वध को जायज ठहराता है। ऐसे दौर में हम सांस्कृतिक, धार्मिक, साहित्यिक बहुलतावाद को कैसे कायम रखें, सामाजिक आंदोलनों को इस बारे में गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। 

 

 

 

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TAGS: धर्मनिर्पेक्षता, अनेकता, भारतीय राष्ट्रीयता, हिंदुत्व की पहेली, तर्कवादी, रामायण जीनिथाश्रमऋथम, दिल्ली विश्वविद्यालय, सांप्रदायिकता, राम पुनियानी, Ram Puniyani, secularism, pluralism, Indian nationalism, Riddles of Hindusim, rationalist, Ramayan, Jeevithasaramritham
OUTLOOK 22 September, 2015
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