राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री ने विपक्षी कांग्रेस को आइने में झांकने की सलाह देते हुए काका हाथरसी की कविता पढ़ी। उन्होंने कहा कि वह काका हाथरसी की कविता का उल्लेख कर रहे हैं और इसे उत्तर प्रदेश चुनाव से जोड़कर नहीं देखा जाए। उन्होंने कहा अंतरपट में खोजिए छिपा हुआ है खोट, मिल जाएगी आपको बिल्कुल सत्य रिपोर्ट।
मोदी ने कहा कि हमारी ओर से किसी कार्यक्रम और योजना का जिक्र होता है तब उस ओर :कांग्रेस: से आवाज आती है कि यह तो हमारे समय था, यह तो हमारे समय था। मैं भी आपकी तरह कुछ खेलने का प्रयास करता हूं। आपके मैदान में ही खेलता हूं। प्रधानमंत्री ने इसके बाद वर्तमान और पूर्व सरकारों की विभिन्न योजनाओं के कार्यान्वयन का जिक्र करते हुए कहा कि वर्तमान सरकार के दौरान नीयत और कार्य संस्कृति में फर्क आया है।
उन्होंने महाभारत के एक उद्धरण का जिक्र करते हुए कि धर्म सब जानते हैं, आप भी जानते हैं लेकिन वह आपकी प्रवृत्ति नहीं थी। अधर्म क्या है, वह भी सब जानते हैं, आप भी जानते हैं लेकिन उसे छोड़ने का आपका सामर्थ नहीं था। प्रधानमंत्री ने संस्कृत का यह श्लोक भी पढ़ा, उद्यमेन ही सिद्धंति, कार्याणि न मनोरथै:। न हि सुप्तस्य सिंहस्य: प्रविशन्ति मुखे मृगा:।
उन्होंने कहा कि सोये हुए शेर के मुख में हिरण खुद से नहीं आता, उसे भी आकर शिकार करना पड़ता है। मोदी ने कहा कि हमारे यहां शास्त्राों में कहा गया है- अमंत्रां अक्षरं नास्ति, नास्ति मूलं अनौषधं। अयोग्य: पुरुष: नास्ति, योजक: तत्रा दुर्लभ:।
उन्होंने कहा कि कोई एेसा अक्षर नहीं है जो मंत्र में जगह नहीं पा सके, कोई एेसा मूल नहीं होता जो औषधि में जगह नहीं पा सके, कोई इंसान एेसा नहीं होता जो समाज को कुछ दे न सके। जरूरत योजना की है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमको चुनाव की नहीं, देश की चिंता है, इसलिए हम निर्णय लेते हैं। हमने जो फैसले किये हैं, उसके परिणाम भी आ रहे हैं। मोदी ने कहा कि चार्वाक का यह मंत्र कुछ लोगों के मन में बैठ गया है।
यावत जीवेत, सुखं जीवेत, रिणं कृत्वा घृतं पिवेत। उन्होंने कहा कि इसका अर्थ है कि जब तक जीयो, मौज करो। चिंता किस बात की। कर्ज लो और घी पीयो। भाषा