यह चुनाव उद्धव ठाकरे और शरद पवार की अगुआई वाली क्षेत्रीय पार्टियों के लिए अपनी पहचान और राजनैतिक अस्तित्व बचाने की लड़ाई, तो सत्तारूढ़ भाजपा के लिए भी उसकी राजनीति की अग्निपरीक्षा
अमेरिका में राष्ट्रपति चाहे कोई भी बने, भारत के साथ उसकी साझीदारियां कायम ही रहेंगी क्योंकि चीन के साझा डर के मद्देनजर यही दोनों देशों की राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के लिए यह चुनाव ‘करो या मरो’ जैसा है तो झारखंड में हेमंत सोरेन और झामुमो के लिए। ये चुनाव यह भी तय करेंगे कि भाजपा बनाम अन्य की लड़ाई में क्षेत्रीय दलों की क्या भूमिका है? और अगली सियासत का स्वरूप क्या होगा?