बीते अक्टू्बर में जॉर्जिया स्थित क्लार्कस्टन के एक मंच से कमला देवी हैरिस जब बुलंद आवाज में बोल रही थीं, उनके समर्थकों ने नारा लगाया, ‘‘जीत हमारी है।’’ अपनी परिचित मुस्कान के साथ हैरिस ने जवाब दिया, ‘‘या, जैसा कि एक पूर्व राष्ट्रपति कहते हैं, यस, वी कैन।’’ और उनके समर्थकों ने समवेत स्वर में नारा लगाया, ‘‘यस, वी कैन।’’ हैरिस कई मायनों में पहली हैं- कैलिफोर्निया की डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी चुनी जाने वाली पहली काली महिला, राज्य की पहली महिला अटॉर्नी जनरल और एशियाई मूल की पहली अमेरिकी सीनेटर। फिलहाल, मौजूदा उपराष्ट्रपति और भावी राष्ट्रपति की दौड़ में आधिकारिक प्रत्याशी के बतौर उनके ऊपर दो विरासतों का बोझ है। एक, पहली काली महिला और दूसरा, पहली दक्षिण एशियाई महिला होने का बोझ। उनकी यह पहचान बहुआयामी है जिससे कई लोग खुद को करीब पाते हैं, तो कई लोगों की उनके ऊपर सख्त नजर भी है। उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा और वैचारिक सफर के चलते उनकी निजी शख्सियत बहुत जटिल है। वे खुद को वाम और दक्षिण दोनों खेमों के समर्थकों और आलोचकों की मांगों के बीच फंसा हुआ पाती हैं। इन जटिलताओं को समझे बगैर हैरिस को नहीं समझा जा सकता।
पहले सन फ्रांसिस्को की डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी और बाद में अटॉर्नी जनरल के बतौर कैलिफोर्निया में उनका काम उनके समूचे करियर के सबसे विभाजनकारी अध्यायों में से एक है। उन्होंने खुद को ऐसे ‘‘प्रगतिशील वकील’’ के रूप में प्रचारित किया था जो व्यवस्था में भीतर से उसे सुधारने में यकीन रखता है। इसके उलट, बहुत से लोगों के मुताबिक उनका काम करने का नजरिया काले और भूरे समुदायों के लिए नुकसानदेह रहा है। हैरिस ने गांजे पर से प्रतिबंध हटाने का बाद में भले सार्वजनिक समर्थन किया, लेकिन अपनी वकालत के दौरान उन्होंने उससे जुड़े छिटपुट जुर्म और आरोपों में बहुत आक्रामक ढंग से लोगों को सजा दिलवाई थी। ऐसा ही एक विवादास्पद केस कैलिफोर्निया में कैद की नीति पर उनके पक्ष से जुड़ा था। राज्य की जेलों में कर्मचारियों का टोटा बताते हुए अदालत ने कई लोगों की कैद को गैरकानूनी ठहरा दिया था, बावजूद इसके हैरिस ने उन्हें जेलों में बंद रखने की नीति का बचाव किया था। जब वे सन फ्रांसिस्को की अटॉर्नी थीं उस तीन साल के दौरान शहर में दंड की दर 52 फीसदी से उछलकर 67 फीसदी तक पहुंच गई थी। इस किस्म की नीतियों के कारण ही हैरिस सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं की आलोचना का शिकार बनी थीं। कुछ का कहना था कि हैरिस प्रगतिशील भाषा के जामे में ‘‘अपराध पर कठोर’’ नीति वाली यथास्थिति को ही बढ़ावा दे रही हैं।
नतीजे पर निगाहेंः बाइडन के साथ कमला हैरिस
कैलिफोर्निया की अटॉर्नी जनरल रहते हुए हैरिस ने ओपेन जस्टिस नाम की एक पहल शुरू की। यह एक ऑनलाइन मंच था, जो पुलिस की जवाबदेही को सुधारने का दावा करता था। इस पर पुलिस हिरासत में हुई मौतों और जख्मी लोगों का डेटा जारी किया जाता था। पारदर्शिता के लिए इस पहल को काफी सराहना मिली थी, लेकिन पुलिस हिंसा से आक्रामक तरीके से निपटने में नाकामी के चलते हैरिस की आलोचना भी हुई। उनके विरोधियों का कहना है कि ऐसी पहलों ने प्रगतिशील तबके को अलगाव में डाल दिया और ज्यादा गहरे वैचारिक टकरावों की जमीन तैयार की।
डेमोक्रेटिक पार्टी की आधिकारिक उम्मीदवार होने के नाते हैरिस की जिम्मेदारी पार्टी के वामपंथी धड़े और मध्यमार्गी धड़े के बीच का विभाजन खत्म करना है। उन्होंने कुछ नीतिगत प्रस्ताव रखे हैं, जैसे चाइल्ड टैक्सव क्रेडिट को स्थाई बनाना, सोशल सिक्योरिटी का विस्तार करना, हेल्थकेयर में कीमतों में उछाल पर नियंत्रण करना और मजदूर यूनियनों को मजबूत करने के लिए संगठित होने के अधिकार के संरक्षण का एक कानून पास करना। ये प्रस्ताव बाइडन प्रशासन के व्यापक आर्थिक एजेंडे के साथ मेल खाते हैं, जिसकी मजदूर संगठनों और प्रगतिशीलों ने बराबर सराहना की है। हैरिस पर हालांकि अपने पिछले वादों से पलटने के आरोप भी लगते रहे हैं। मसलन, 2019 में उन्होंने मेडिकेयर फॉर ऑल का समर्थन किया था लेकिन बाद में उससे पलट गई थीं। इसी तरह उन्होंने फ्रैकिंग पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान करने के बाद इस मुद्दे को छोड़ दिया। बहुत से लोगों ने उनके इस पलटाव को प्रगतिशील आदर्शों से विश्वासघात माना था।
इसी तरह प्रवासन के मुद्दे पर उनका रिकॉर्ड मिश्रित है। उपराष्ट्रपति के बतौर उन्हें मध्य अमेरिका से पलायन के मूल कारणों को संबोधित करने का काम दिया गया था। इस पर रिपब्लिकन और डेमोक्रेट दोनों पक्षों ने उन्हें आड़े हाथों लिया था। संरक्षणवादियों ने सीमा सुरक्षा की उपेक्षा का उनके ऊपर आरोप लगाया, तो प्रगतिशीलों ने शरणार्थी के दरजे के इच्छुक लोगों को अमेरिकी सीमा तक आने में हतोत्साहित करने के लिए उनकी आलोचना की। अपने मध्यमार्गी पक्ष के चलते हैरिस को दोनों तरफ से हमलों का शिकार होना पड़ा है। उन्हें संरक्षणवादी ज्यादा उदार और प्रगतिशील ज्यादा सतर्क मानते हैं। मध्यमार्गी राजनीति की ओर उनका झुकाव दरअसल डेमोक्रेटिक पार्टी की आंतरिक चुनौती को झलकाता है जो अपने ही भीतर स्पर्धी धड़ों के बीच संतुलन साधने में लगी हुई है। वैचारिक रूप से बंटे हुए अमेरिका में मध्यमार्ग एक व्यावहारिक रास्ता तो हो सकता है लेकिन प्रगतिशील तबकों के छिटक जाने का इसमें खतरा है, जो बीते कुछ वर्षों में पार्टी के उभार का कारण रहे हैं।
इन बदलावों के बावजूद हैरिस विवादास्पद मसलों, खासकर अमेरिकी विदेश नीति और इजरायल के साथ रिश्तों के मामले में दृढ़ रही हैं। उनके आलोचक गाजा में इजरायल की सैन्य कार्रवाई को उनके समर्थन के लिए उनकी निंदा करते हैं, जिसमें अब तक हजारों फलस्तीनी और 175 पत्रकार मारे जा चुके हैं। वे मानते हैं कि हैरिस एक ‘जातीय-राष्ट्रवादी नस्लभेदी राज्य’ की समर्थक हैं। हैरिस ने इजरायल के आत्मरक्षा के अधिकार के प्रति अपनी संकल्पबद्धता जताई थी, जिसके बाद वे फलस्तीनियों के अधिकारों और मानवाधिकार संगठनों के निशाने पर आ गई थीं। युद्ध अपराधों के आरोप के बीच इजरायल को अमेरिकी प्रशासन के निरंतर जारी सैन्य सहयोग के चलते कुछ डेमोक्रेटिक मतदाताओं का भी उनसे मोहभंग हो चुका है। भारतीय लेखक पंकज मिश्रा ने कमला हैरिस की तुलना गैर-पश्चिमी मूल के कुछ ऐसे नेताओं के साथ की थी जिनकी नीतियां सामाजिक न्याय के बजाय धुर दक्षिणपंथी हैं। जो लोग हैरिस को कभी विविधता के वाहक के रूप में देखते थे वे अब उन्हें सैन्यकृत और नवउदारवादी राजनैतिक व्यवस्था के चेहरे की तरह देख रहे हैं।
अमेरिकी अर्थव्यवस्था युद्ध पर पलती है। युद्धों के चलते यहां एक ऐसा सैन्य-औद्योगिक परिसर कायम हुआ है जो देश की ज्यादातर नीतियों को हांकने का काम करता है। हाल ही में अफगानिस्तान का संकट इसका एक ज्वलन्त उदाहरण है। करीब दो दशक तक अमेरिका ने करीब 250 मिलियन डॉलर रोजाना वहां खर्च किया जो अमेरिकी नागरिकों की जेब से दिया टैक्स का पैसा था। इसमें से ज्यादातर राशि पुनर्निर्माण या जीवन की बेहतरी में नहीं लगी बल्कि घूम फिर कर अमेरिकी हथियार उद्योग के पास चली गई। ब्राउन युनिवर्सिटी का किया शोध बताता है कि इस पैसे का ज्यादातर इस्तेमाल अमेरिका में बने हथियारों को खरीदने में किया गया, यानी पैसा उन्हीं उद्योगों को गया जिन्हें हथियारों की बिक्री से लाभ होता है।
यह चलन अफगानिस्तान तक सीमित नहीं है। इजरायल की सैन्य कार्रवाई की शुरुआत के बाद से अमेरिका ने उसे सहयोग में करीब 20 अरब डॉलर का अनुदान दिया है। एक बार फिर इस पैसे का वास्तविक लाभार्थी अमेरिकी हथियार उद्योग ही हुआ है क्योंकि इस पैसे का ज्यादातर इस्तेमाल अमेरिकी रक्षा क्षेत्र से हथियारों की खरीद में हुआ है। ऐसे मामलों में जंग केवल मैदान तक सीमित नहीं होती, वह मुनाफे का एक बाजार भी बनाती है।
इन भूराजनीतिक घटनाक्रमों के बीच अमेरिका का घरेलू मोर्चा भी संकटग्रस्त बना हुआ है। गर्भपात के अधिकार से संबंधित पचास साल पुराने रो बनाम वेड के मुकदमे में दिए फैसले को पलटने के सुप्रीम कोर्ट के 2022 में आए आदेश ने राजनीतिक उथल-पुथल पैदा कर दी है। ऐसे में हैरिस प्रजनन अधिकार पर एक मजबूत स्वर के रूप में उभरी हैं। उन्होंने गर्भपात पर प्रतिबंध के विनाशक परिणामों को उजागर करना अपना मिशन बना लिया है और इस मुद्दे को स्वतंत्रता के व्यापक संघर्ष से जोड़ दिया है।
डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रीय सम्मेलन में उन्होंने अपने करियर का सबसे अहम भाषण दिया है, ऐसा कुछ लोगों का मानना था। उन्होंने कड़े शब्दों में औरतों से प्रजनन की आजादी छीनने का आरोप पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प और रिपब्लिकन पार्टी के ऊपर लगाया। उन्होंने कहा, ‘‘सीधे कहूं तो इनका दिमाग खराब हो गया है।’’ उन्होंने इस अधिकार को फिर से बहाल करने का संकल्प लिया है। उनका पूरा अभियान इसी मुद्दे पर केंद्रित है। प्लान्ड पैरेन्टहुड ऐक्शन फंड, कमेटी टु प्रोटेक्ट हेल्थकेयर, और रिप्रोडक्टिव फ्रीडम फॉर ऑल जैसे संगठनों ने उन्हें अपना समर्थन दे दिया है। अपने चुनाव प्रचार की वेबसाइट पर हैरिस ने अपनी प्रतिबद्धता जताते हुए लिखा है: अगर वे राष्ट्रपति चुन ली गईं तो वे संकल्प लेती हैं कि ऐसे कानून का समर्थन करेंगी जो रो वाले मुकदमे में दिए गए संरक्षण को बहाल कर सके नहीं तो वे राष्ट्रीय स्तर पर गर्भपात पर प्रतिबंध को लागू करने का वीटो करेंगी।
काली और दक्षिण एशियाई, यह दोहरी पहचान उनकी सार्वजनिक शख्सियत का अभिन्न अंग है। वे जब उपराष्ट्रपति बनी थीं तब उन्हें प्रतिनिधित्व और प्रगति का प्रतीक माना गया था। बहुत से लोगों के लिए उनका इस पद पर पहुंचना बहुत सार्थक परिघटना थी, खासकर एक ऐसे देश में जो आज भी अपने नस्लभेद के लंबे इतिहास से जूझ रहा है। इन उम्मीदों के साथ उनकी चुनौतियां भी बढ़ती गई हैं। अमेरिकी राजनीति में काले और भूरे समुदाय से आने वाली औरतों के साथ जैसा दोहरा बरताव होता है, उससे हैरिस को भी गुजरना पड़ा है। 2020 के चुनाव में और इस बार भी उनकी नस्ली और लैंगिक आधारों पर आलोचना हुई। पुरुष नेता जब अकड़ कर बोलते हैं तो उन्हें दबंग माना जाता है लेकिन हैरिस की मजबूत आवाज आलोचना का शिकार होती है। सोशल मीडिया और समाचारों में उनकी हंसी का मजाक बनाया जा चुका है और उनकी क्षमताओं पर भी सवाल उठाया जा चुका है।
राजनीति विज्ञानी नाडिया ब्राउन कहती हैं कि हैरिस का अनुभव दिखाता है कि कैसे राजनीति में अश्वेत औरतों के साथ लैंगिक और नस्ली, दोहरा भेदभाव किया जाता है। ब्राउन ने 2020 में न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा था, ‘‘अगर वे काली महिला न होतीं तो हमें इस किस्म के हमले देखने को नहीं मिलते।’’ उनकी बात की पुष्टि इस घटना से होती है जब डोनाल्ड ट्रम्प ने काले पत्रकारों के एक समूह में कहा था कि हैरिस कुछ साल पहले ही ‘काली हुई हैं।’ रिपब्लिकन नेताओं ने उनकी विश्वसनीयता पर चोट करने के लिए उन्हें ‘डीआइई हायर’ का नाम दिया है (भाड़े पर ‘विविधता, बराबरी और समावेश’)।
चुनाव करीब आता गया और, हैरिस के ऊपर चौतरफा दबाव बढ़ता गया। सर्वेक्षणों के मुताबिक पेनसिल्वेनिया, मिशिगन और विस्कॉन्सिन जैसे बदलते रुझान वाले राज्यों में ट्रम्प के साथ उनका मार्जिन बहुत पतला है। इससे चिंताएं बढ़ रही हैं कि उनका प्रचार अभियान कितना टिक पाएगा। हैरिस की इन संकटों से पार पाने की क्षमता भविष्य में डेमोक्रेटिक पार्टी की दिशा को भी तय करेगी।
नतीजा चाहे जो हो, एक बात तो तय है कि अपनी पहचान से संघर्ष कर रहे तनावग्रस्त अमेरिका का हैरिस एक प्रतीक हैं। उनकी उम्मीदवारी दिखाती है कि प्रतिनिधित्व का बड़ा अर्थ होता है लेकिन वह किसी नेता को आलोचना से नहीं बचा सकता।
(विचार निजी हैं। सूजीना मुश्ताक युनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन-रिवर फॉल्स में पत्रकारिता की असिस्टेंट प्रोफेसर हैं)