राज्य सरकार की बेरुखी से नाराज किसान और आदिवासी एक बार फिर विधान भवन की तरफ कूच करेंगे। विदर्भ, मराठवाडा और उत्तर महाराष्ट्र के किसान और आदिवासी शीतकालीन सत्र के दौरान 21 नवंबर को विधान भवन पहुंचेंगे। यह ऐलान करते हुए लोक संघर्ष मोर्चा में जल विशेषज्ञ राजेंद्र सिंह और योगेंद्र यादव जैसे कई नेताओं के शामिल होने का दावा किया गया।
लोक संघर्ष मोर्चा के महासचिव प्रतिभा शिंदे के अनुसार 20,000 से ज्यादा किसान व आदिवासी 21 नवंबर को विधान भवन पहुंचेंगे तथा 22 नवंबर को विधानसभा का घेराव करेंगे। उन्होंने बताया कि यहां आने वाले किसान और आदिवासी अपने खाने-पीने का सामान साथ लाएंगे।
राज्य सरकार के सामने 15 मांगें रखीं
शिंदे ने बताया कि मोर्चा में जल विशेषज्ञ राजेंद्र सिंह और योगेंद्र यादव जैसे कई नेता शामिल होंगे। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार के सामने हम लोगों ने 15 मांगें रखी हैं, जिनमें फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में किसानों को 50 फीसदी लाभ, कृषि पंप ट्रांसफार्मर की 48 घंटे में मरम्मत, ठंड में दिन में सिंचाई के लिए बिजली, स्कूल पोषक आहार में केला शामिल करने की मांग शामिल है।
मांगे पूरी होने तक किसान वहीं डटेंगे
शिंदे ने बताया कि विदर्भ, मराठावाडा व उत्तर महाराष्ट्र के 1,023 ट्रांसफार्मर महीनों से खराब हैं। कई बार शिकायतें की जा चुकी है, इसके बाद भी उसे ठीक नहीं किया गया। इस संबंध में 20,000 से ज्यादा पोस्टकार्ड सरकार को लिखे गए, जिसमें चेतावनी दी गई है कि हम मुख्यालय आ रहे हैं और अपनी मांगें पूरी होने तक वहां से हटेंगे नहीं।
किसान को एमएसपी ही मिल जाए तो, कर्ज मुक्त हो जाए
मोर्चा के महासचिव शिंदे ने फडणवीस सरकार पर आरोप लगाया कि इस सरकार ने किसानों से जो वादा किया था उसे पूरा करने में असफल रही। हमारा तो मानना है कि सरकार किसानों के फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य ही ठीक से देने की व्यवस्था कर दे, तो किसान कर्ज मुक्त हो जाएंगे।
कर्जमाफी महज छलावा
शिंदे ने सरकार की कर्जमाफी को महज एक छलावा करार दिया। उन्होंने बताया कि सरकार अगर ईमानदारी से न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलाने के लिए सख्ती बरते तो किसान को कर्ज की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। अब तक किसानों का हक मारने वाली सरकार उनकी कर्जदार है। शिंदे ने कहा कि कर्जमाफी के बाद भी किसानों को बैंक दोबारा फसल कर्ज नहीं दे रहे हैं। उनके पास ऐसे हजारों किसानों की सूची है, जिन्हें कर्ज नहीं मिल रहा है। सरकार को वादे के मुताबिक कर्ज देने से इनकार कर रहे बैंकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए।