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बेगूसराय में अंतरराष्ट्रीय नाटकों की धूम

भिखारी ठाकुर पुरस्कार से सम्मानित युवा रंगकर्मी अमित रौशन, राष्ट्रकवि दिनकर की भूमि बेगूसराय के सुपुत्र हैं। वह बिहार थिएटर की दुनिया का ऐसा नाम हैं जिनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि रंगमंच की नहीं लेकिन जिस शिद्दत से उन्होंने रंगमंच को गले लगाया और उसे जी रहे हैं।
बेगूसराय में अंतरराष्ट्रीय नाटकों की धूम

अपनी नाट्य संस्था आशीर्वाद रंगमंडल द्वारा बेगूसराय में वह पिछले कई वर्षों से थिएटर महोत्सव का आयोजन करते आ रहे हैं। यह निस्संदेह प्रशंसनीय और सराहनीय है। पिछले  कई  वर्षों से वह राष्ट्रीय थिएटर महोत्सवों का आयोजन करते आ रहे हैं और इस वर्ष विश्व रंगमंच दिवस (27 मार्च- 3 अप्रैल) के दिन से पहली बार बिहार के बेगूसराय में ही अंतरराष्ट्रीय थिएटर महोत्सव का आगाज किया।

आशीर्वाद रंगमंडल द्वारा आयोजित बिहार के इस प्रथम अंतर्राष्ट्रीय थिएटर महोत्सव का आगाज हुआ भारत की कीर्ति पताका पूरे विश्व में फहराने वाले भारत के वरिष्ठ और अप्रतिम रंगकर्मी रतन थियाम के नाटक ‘मैकबेथ’ से। यह कोरस रेपर्टरी, भारत की प्रस्तुति थी। 

दूसरे चरण में नाटक ‘पैच्ड’, ‘डस्ट टू डस्ट’ और ‘जमलीला’ का  प्रदर्शन किया गया। फिलिपींस के नाट्य दल ‘तेत्रो गुइंदेगन’ की प्रस्तुति ‘पैच्ड’ 4 कलाकारों द्वारा अभिनीत मूक प्रस्तुति थी जिसका लेखन एवं निर्देशन किया था फेलिमोन ब्लैंको ने। यह  नाटक  मानवीय  संबंधों में  प्रेम, घृणा और आने-वाले उतार चढ़ाव पर आधारित  था।


नाटक ‘डस्ट टू डस्ट’ परफॉर्मोसा थिएटर, ताइवान की प्रस्तुति थी जिसका निर्देशन  युवा  निर्देशिका हंग पेई चिंग ने किया था। यह नाटक एक लड़की की मौत के बहाने लौकिक और अलौकिक दुनिया की सैर दर्शकों को कराता है। नाटक ‘जमलीला’ राजस्थान के रम्मट नाट्य समूह की प्रस्तुति थी जिसकी भाषा हिंदी और राजस्थानी थी और इसका लेखन और निर्देशन किया था प्रसिद्ध निर्देशक अर्जुन देव चारण ने जो वर्तमान में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के उपाध्यक्ष हैं। इसमें एक हाथी की अकाल मौत और यमलोक के बहाने हमारे समाज, व्यवस्था पर व्यंग्य है। दरअसल यह एक सामाजिक-राजनीतिक व्यंग्य है। दरअसल इस नाटक का नाम ‘जमलीला’ इसलिए है क्योंकि यह भूतों का कोरस है। भूतों के गायन और यमलोक के बहाने इस दुनिया में व्याप्त दुराचार को निर्देशक ने इंगित किया है।

आशीर्वाद रंगमंडल द्वारा आयोजित बिहार के प्रथम अंतर्राष्ट्रीय थिएटर महोत्सव के तीसरे और अंतिम चरण में तीन नाटकों का मंचन किया गया। पहली प्रस्तुति थी बांग्लादेश के थिएटर समूह ‘कैट’ की ‘द मेटामॉरफोसिस’, दूसरा नाटक था ‘दो औरतें’ और तीसरा और अंतिम या यूं कहें कि इस समारोह का समापन नाटक था नयी दिल्ली के थिएटर समूह ‘संभव’ की प्रस्तुति ‘गरीब नवाज।’

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