हिंदी फिल्मों में उर्दू के मशहूर शायरों के गजल, नज्म और उर्दू लफ्जों में रचित गीतों का लंबे समय से दबदबा रहा है। शायरी की संपन्न परंपरा की आज भी खासी अहमियत है। कैफी आजमी, शकील बदायूनी, मजरूह सुल्तानपुरी, शैलेन्द्र, अकबर इलाहाबादी, साहिर लुधियानवी जैसे नामी-गिरामी शायरों के गजलों, नज्मों और गीतों को संगीतकारों ने सुरों में सजाकर जैसे पेश किया, उससे सिने जगत को नया चमकता हुआ आकाश मिला।
हाल ही में उर्दू शायरी पर केंद्रीत रक्स-ओ-गजल का आयोजन पारंगत कलाकेंद्र, बॉलीवुड ओडिशे और लुफ्त ने त्रिवेणी कला संगम के एम्फी थिएटर में किया। इस कार्यक्रम की संकल्पना लेखक और संगीतज्ञ अजय मनकोटिया की थी। मशहूर शायरों द्वारा कई फिल्मों के लिए लिखी गई स्वरबद्ध गजलों और गीतों को लुफ्त की नीलम कोहली और उनके साथ सुश्री सरिता धवन, गोपा दत्ता और चित्राकुमार ने भी अपने गायन में प्रस्तुत किया। गजल गायन के आधार पर कथक की मशहूर नृत्यांगना सुश्री नीलाक्षी राय ने नृत्य और अभिनय भाव में मनोरम प्रस्तुति दी। निलाक्षी राय के साथ नृत्यांगना आदिति और मेघना ने भी एकल और समूह नृत्य में अपनी प्रतिभा को दर्शाया।
नृत्य के साथ गजलों की प्रस्तुति में जो रोमांचित करने वाले पड़ाव हैं,उसमें सबसे ज्यादा योगदान कथक नृत्य का है। इस क्षेत्र में नृत्य की बडी हस्तियां गुरु लच्छू महाराज, सितारा देवी, पं. बिरजू महराज से लेकर गोपी कृष्ण का उल्लेखनीय योगदान है। इस कार्यक्रम में फिल्मों में गाई गई गजल और गीतों की शृंखला में संगीत निर्देशक खय्याम और शायर साहिर लुधियानवी द्वारा रचित फिल्म उमराव जान का गीत ‘इन आंखों की मस्ती’ को गोपा दत्ता ने मधुरता से गायन में प्रस्तुत किया। इस गाने के भावों को नृत्य और अभिनय-भाव से उकेरने में निलाक्षी का अंदाज बडा मनमोहक और सुरीला था। शकील बदायूनी की गीतमय रचना और खय्याम के शोखी भरे संगीत में निबद्ध अमर फिल्म का गीत ‘न मिलता गम तो बर्बदी के अफसाने होते’ को नीमल कोहली ने सुर में बांधकर सही लीक पर प्रस्तुत किया। फिल्म ‘छोटी-छोटी बातं’ में संगीत निदेशक अनिल विश्वास की धुन में शैलेंद्र का गीत ‘कुछ और जमाना कहता है’ को सरिता धवन ने गाया और उस पर निलाक्षी, आदिति और मेघना के समूह नृत्य ने गजब का समाु बांधा। साहिर के लिखे और जयदेव के संगीत में फिल्म ‘हम दोनों’ का गीत ‘मैं जिन्दगी का साथ निभाता चला गया’ को अजय मनकोटिया ने बडे सुरीले अंदाज में पेश किया। संगीतकार एस.डी.बर्मन के संगीत में फिल्म ‘बाजी’ का साहिर का लिखा गीत ‘तदबीर से बिगडी हुई तकदीर बना ले’ पर चित्रा कुमार का गायन भी सुरीला था।
फिल्म ‘ममता’ का गीत ‘रहते थे कभी जिनके दिल में’ पर सरिता का गाना और कैफी आजमी के द्वारा रचित और संगीत निदेशक गुलाम मोहम्मद द्वारा फिल्म ‘पाकीजा’ का गीत ‘चलते चलते यूं ही कोई मिल गया था’ पर गोपा दत्ता के गायन के साथ नीलाक्षी व उनके सहयोगी नृत्य कलाकारों की प्रस्तुति रोमांचक और दर्शनीय थी। फिल्म ‘अनपढ़’ का गाना ‘इसी में प्यार की आबरू’ और फिल्म मौसम में गुलजार के गीत ‘रुके रुके से कदम’ से लेकर फिल्म ‘लाल किला’ में मुजत्तर खैराबादी की लिखी बहादुर शाह जफर से जुडी नज्म ‘न मैं किसी की आंख का नूर हूं’ के गायन पर नीलाक्षी के संवदेनशील और भावपूर्ण नृत्य ने दर्शकों को पूरी तरह से मोह लिया।