हिन्दी जगत में लोकप्रिय लेखिका शिवानी ने अपने सृजनशील लेखन से जन-जन को प्रेरित करने में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी रचनाओं का प्रमुख हिस्सा स्त्री सशक्तीकरण पर क्रेन्द्रित रहा। जो अभूतपूर्व और विशिष्ट है। हाल ही शिवानी जन्म शताब्दी समारोह का भावभीना आयोजन इण्डिया इन्टरनेशनल सैन्टर के सभागार में हुआ।
शिवानी के व्यक्तित्व और लेखन से प्रभावित हिन्दी साहित्य से जुडी कईं महिला लेखकों ने उन्हें याद किया और साहित्य में उनके विपुल और उल्लेखनीय लेखन पर वक्तव्य दिये। इस अवसर पर शिवानी को श्रद्धा के सुमन मशहूर गायिका सुश्री मिनाक्षी प्रसाद ने गायन के जरिये अर्पित किये। हिन्दुस्तानी संगीत की सुरीली गायिका मिनाक्षी ने पूरब अंग गायिकी में खास पहचान बनायी है।
मंगलाचरण रूप में उन्होने भक्ति-भाव में गाने का आरम्भ गुरू-वन्दना से किया। राग मिश्र खमाज में रचना-”जाओ वहीं तुम श्याम “ गायन में कृष्ण के प्रेम में आसक्त नायिका के मनोभावों में प्रियतम के प्रति प्रेम का इजहार, रूठने पर उलाहना आदि का अस्थाय और संचारी भाव में अभिव्यक्ति बडी रंजक थी। कईं तरह के बोल बनाव पर विविध भावों को दर्शाना ठुमरी गायन में खास है। जिसका मिनाक्षी ने न सिर्फ शुद्धता से निर्वाह किया बल्कि गहरी दूरदर्शिता से भावों को उकेरने में जो रंग भरे, वो देखने लायक थे। विलम्बित लय की ठुमरी गाने में ठहराव से जो सुरों का संचार होता है, उसकी भरपूर रंगत मिनाक्षी के गायन में थी। पूरब अंग गायकी में विलम्बित और उठी थिरकती लय पर गाने का एक अनूठा प्रचलन है।
उसी आधार पर मिनाक्षी के दादरा गायन में खुबसूरत अंदाज था। राग पहाड़ी में निबद्ध बंदिश - बांके सैंया ना जाने मन की बात“ में नायिका के मन में उद्वेलित शृंगारिक भावों का मार्मिक स्पर्श मिनाक्षी के गायन में उभरा। हमारे संगीत में होली गाने की परम्परा बहुत ही उल्लासपूर्ण और आनंददायक है। सदियों से होली को लोक और शास्त्रीय गायन में पूरे उमंग और धूमधाम से गाने का रिवाज है। मिनाक्षी ने सुरीले गायन में होली की छटा को खास बनारसी अंदाज में बिखेरा। उन्होने विशेष रूप से वृंदावन की होली-”होली खेलन आयो श्याम“ के मनोरम दृश्य को सुरों के जरिये पेश किया।
उनके गाने को गरिमा प्रदान करने में तबला पर अख्तर हसन, हारमोनियम वादन में बदलू खां, सारंगी पर कमाल अहमद और स्लाईड रिदम वादन पर अफजल खां शामिल हुए।