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भाषाओं की कब्रगाह: 50 साल में खत्‍म हो सकती हैं आधी भारतीय भाषाएं

एक रिपोर्ट के मुताबिक, 50 सालों में आधी से अधिक भारतीय भाषाएं खत्म हो सकती हैं।
भाषाओं की कब्रगाह: 50 साल में खत्‍म हो सकती हैं आधी भारतीय भाषाएं

अगले 50 सालों में भारत में बोली जाने वाले आधे से अधिक भाषाएं लुप्‍त होने के कगार पर पहुंच सकती हैं। यह आशंका पीपुल्स लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया (पीएलएसआई) नाम की संस्था न जताई है। गुरुवार को पीएलएसआई की ओर से भारतीय भाषाओं के सर्वे के 11 खंडों का विमोचन किया गया। 

पीएसएलआई के चेयरमैन जीएन देवी का कहना है, “अगले 50 सालों में करीबन 400 भाषाएं लुप्‍त हो सकती हैं।” देवी के मुताबिक जब कोई भाषा खत्‍म होती है तो उसके साथ उससे जुड़ी संस्कृति भी मर जाती है। पिछले पांच दशकों में भारत में 250 भाषाएं खत्म हो चुकी हैं। 

आदिवासी भाषाओं को ज्यादा खतरा

सबसे ज्‍यादा खतरा उन भाषाओं को है जो आदिवासी समुदायों से जुड़ी हैं। उनके बच्‍चे जब स्‍कूल जाते हैं तो उन्‍हें भारत की मान्‍य 22 भाषाओं में से ही किसी एक या दो भाषाओं को पढ़ाया जाता है।

6000 भाषाओं का दस्तावेजीकरण

देवी ने बताया कि पीएसएलआई दुनिया भर में बोली जाने वाली करीब 6,000 जिंदा भाषाओं का दस्तावेज तैयार करेगा। इस रिपोर्ट को 2025 तक आने की उम्मीद है।

मातृभाषाओं में पढ़ाई-लिखाई जरूरी

इस रिपोर्ट पर मातृभाषाओं के लिए आंदोलन कर रहे नंदकिशोर शुक्ल ने आउटलुक को बताया, “मातृभाषाओं को प्राथमिक शिक्षा का माध्यम बनाने से ही इस खतरे का निराकरण होगा। इससे भाषा भी बचेगी और शिक्षा का स्तर पर अच्छा होगा।” उन्होंने आगे कहा कि महात्मा गांधी मातृभाषा के सबसे बड़े हिमायती रहे लेकिन आज भारतीय भाषाएं खत्म हो रही हैं और सरकार की उदासीन बनी हुई है।

गौरतलब है कि नंदकिशोर शुक्ला गोंडी, हल्बी, सादरी, कुडुख, सरगुजही जैसी आदिवासी भाषाओं और छत्तीसगढ़ी भाषा को प्राथमिक शिक्षा का माध्यम बनाने के लिए आंदोलन चला रहे हैं।

 

 

 

 

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