Advertisement

मैं न हिंदू समर्थक हूं न इंसान विरोधी- भगवान सिंह

संस्‍थापक पं. जगतराम आर्य की जयंती/स्‍थापना-दिवस पर हुई किताबघर प्रकाशन की संगोष्ठी में वक्ताओं ने अपना देश और मीडिया विषय पर जोरदार बहस की। ‘सवाल’ को ले कर ‘हल्का बवाल’ भी हुआ। पांडुलिपि पर दिया जाने वाला आर्य स्मृति सम्मान इस बार नहीं दिया जा सका।
मैं न हिंदू समर्थक हूं न इंसान विरोधी- भगवान सिंह

      नई दिल्ली के हिंदी भवन में गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए डॉ. भगवान सिंह ने कहा, मैं हिंदू के पक्ष में नहीं हूं, इंसान के पक्ष में हूं, लेकिन उस इंसान में से हिंदू को निकालना जरूरी नहीं समझता। सवाल है कि देश जिन वजहों से बटा, क्या वे वजहें दूर हुई हैं। उन्होंने मीडिया में वैचारिक पक्षधरता के मुद्दे पर कहा कि मैं प्रगतिशीलता का विरोधी नहीं हूं लेकिन हमने प्रगतिशीलता के नाम पर अज्ञानता को भी बढ़ावा दिया और परंपरा व संस्कृति से दूरी बनाया, इससे धीरे-धीरे सच अस्तित्व खोता गया। मीडिया / लेखक को अपनी आंख से देखे अपनी बुध्दि से परखे सच से जुड़ना होगा।   संचालक सुशील सिद्धार्थ के कथन ‘हालांकि सूचनाओं के सूचीभेद्य अंधकार के बीच से सच निकालना बहुत ही संकटपूर्ण है, लेकिन सबकी खबर लेने वाले मीडिया की खबर लेने की बात पर उसको परेशानी क्यों होती है?’ और मालिक सत्यव्रत शर्मा के स्वागत से शुरू गोष्ठी के नवीन कुमार ने आंकड़े के साथ नोटबंदी, बीसीसीआई, आइपीएल, लापता जेएनयू छात्र नजीब आदि मुद्दे पर मौजूदा सरकार की खिंचाई की और मीडिया के भटकने के पीछे मालिकों का हाथ बताया। अवनिजेश अवस्‍थी ने पिछले वक्तव्य में रामनाथ गोयनका का जिक्र न होने पर एतराज जताया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर कहा कि घटनाओं को सांप्रदायिक रंग दे कर टीआरपी बढ़ाई जाती है। विपक्ष पर आरोप लगाया, एक पूर्व मंत्री ने सरकार गिराने में पाक से मदद मांगी जो मीडिया में नहीं आया। प्लांट, पेड न्यूज वाला मीडिया स्टिंग में न दिखाए जाने की कीमत वसूलता है।

   महेश दर्पण ने सवाल उठाया कि आखिर देश किसका, और मीडिया किसका? एक ही कानून का उपयोग दो तरह से क्यों? नवीन कुमार की बात उनकी अकेली नहीं। ‘हंसो हंसो, इतना हंसो कि हंसने का कोई मतलब ही न रह जाए’, रघुवीर सहाय का यह कथन आज के मीडिया और उसके ब्रेकिंग पर लागू होता है। अखबारों में अब खबर का मतलब होता है विज्ञापन से बची जगह को भरना। उनका सरोकार छापने से ज्यादा न छापने वाली खबरों से होता है। तरुण विजय का मानना था कि पत्रकारिता में किसी धारा के प्रति झुकाव होने के बावजूद समाचारों में उसकी मिलावट नहीं करना चाहिए। मीडिया घरानों के लोग अपना पैसा आम तौर पर मीडिया के बजाय दूसरे फायदेमंद उद्योगों में लगाते हैं। नोटबंदी के आलोचकों को चाहिए कि अंधेरे ही नहीं उजाले की ओर भी देखें। विमुद्रीकरण की सबसे बड़ी चोट आतंकवाद पर पड़ी है।

  मदन कश्यप ने एक उद्धरण के सच पर सवाल उठाया, वहीं रामकुमार कृषक को सवाल न करने देने पर थोड़ा विवाद भी हुआ। आभार मनोज शर्मा ने व्यक्त किया।

   

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad