उत्तर प्रदेश के रहने वाले हाशिम रजा जलालपुरी ने मीराबाई की 209 पदावलियों के 1,510 पदों का उर्दू में अनुवाद किया। यह काम करने में रजा को पांच साल का समय लगा। रजा कहते हैं, बृज भाषा में लिखी इन पदावलियों का उर्दू में अनुवाद करना आसान काम नहीं था।
कहा जाता है कि कला, संस्कृति, साहित्य किसी भी सीमाओं से परे है। इसी धारणा को जलालपुरी ने साबित कर दिखाया। कृष्ण को समर्पित मीराबाई की पदावलियों का उर्दू में अनुवाद करने पर उनकी आलोचना भी हुई लेकिन वे यह काम पूरा करके ही माने।
रजा ने जब अपनी किताब का पोस्टर लॉन्च किया, तो उनकी इस बात के लिए जमकर आलोचना हुई थी। लोगों ने उन्हें कहा कि एक मुस्लिम हो कर वह ऐसा कैसे कर सकते हैं। हालांकि, उन्होंने आने वाली सभी टिप्पणियों को नजरअंदाज कर दिया और अपने काम में जुटे रहे।
हाशिम रजा का कहना है कि बचपन से ही उन्हें मीराबाई की पदावलियां पढ़ना और सुनना पसंद थी। यही वजह है कि एक बार जब उन्होंने इसे उर्दू में अनुवाद करने की ठानी तो फिर किसी तरह की आलोचना की परवाह नहीं की और इससे पीछे नहीं हटे।
रजा इसे उर्दू में इसलिए अनुदित करना चाहते थे, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इन छंदों को जान पाएं क्योंकि अभी ब्रज में लिखी इन पदावलियों को हिंदी समझने वाले ही पढ़ते हैं। उनका कहना है कि ब्रज भाषा सबसे अधिक बोली जाने वाली लोकप्रिय बोलियों में से एक है। अब वे कबीर के दोहों का उर्दू अनुवाद करने की कोशिश कर रहे हैं।
रजा मीराबाई को दुनिया का सबसे बड़ा कवि मानते हैं। वह कहते हैं कि कविता की दुनिया में केवल दो कवि हैं जिन्हें सूरज और चांद का दर्जा दिया जा सकता है। पहली हैं, प्राचीन मिस्र की कवयित्री सोप्पो और दूसरी हैं मीरा। हमारे अपने देश की महान कवियत्री जिनकी कविताओं में भावनाएं और उदात्त प्रेम छुपा है।