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साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल के समर्थन में उतरे लेखक; प्रकाशकों के शोषण और दुर्व्यवहार पर जताई चिंता

हिंदी के अप्रतिम साहित्यकाकर विनोद कुमार शुक्ल के समर्थन में लेखक उतर आए हैं। लेखक मलय, अशोक...
साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल के समर्थन में उतरे लेखक; प्रकाशकों के शोषण और दुर्व्यवहार पर जताई चिंता

हिंदी के अप्रतिम साहित्यकाकर विनोद कुमार शुक्ल के समर्थन में लेखक उतर आए हैं। लेखक मलय, अशोक वाजपेयी,  ममता कालिया, प्रयाग शुक्ल, सुरेश सलिल,  विभूति नारायण राय, रामशरण जोशी, स्वप्निल श्रीवास्तव, जयनंदन आदि ने कहा कि हम हिंदी के लेखक यशस्वी साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल के साथ हिंदी के दो प्रकाशकों द्वारा किए गए शोषण और दुर्व्यवहार से बेहद चिंतित हैं और उन प्रकाशकों के इन रवैये  की कड़ी भर्त्सना करते हैं। हम हिंदी के लेखक प्रकाशकों की इस मोनोपोली के भी खिलाफ हैं और लेखकों के साथ उनसे सम्मानपूर्वक व्यवहार की उम्मीद करते हैं।

लेखकों का कहना है कि श्री शुक्ल ने  अपने ऑडियो और वीडियो में राजकमल प्रकाशन और वाणी प्रकाशन के बुरे बर्ताव के बारे में जो बातें कहीं हैं, वह हतप्रभ करने वाली हैं। श्री शुक्ल 86 वर्ष की अवस्था में कई तरह की  शारीरिक व्याधि से  ग्रस्त हैं और गहरे आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं। ऐसे में उनके बहुचर्चित एवम अनूठे उपन्यास "नौकर की कमीज" और  "दीवार में  एक खिड़की रहा करती है" की पूरी  रॉयल्टी  न मिलना और प्रकाशकों द्वारा उसका हिसाब किताब न देना अत्यंत क्षोभ की बात है।

उनका कहना है कि हम हिंदी के लेखक उपरोक्त प्रकाशकों द्वारा विनोद जी के संदर्भ में  दिये गए स्पष्टी करण से सहमत नहीं और इसे  प्रकाशकों द्वारा इस मामले की लीपापोती करने का प्रयास मानते हैं। हमारा मानना है कि हिंदी में प्रकाशन जगत लेखकों के निरंतर शोषण पर आधारित है। अक्सर प्रकाशक बिना अनुबंध के पुस्तकें छापते हैं और छपी हुई किताबों की रॉयल्टी देना तो दूर उसका हिसाब किताब भी नहीं देते। अनुबंध पत्र भी प्रकाशकों के हित में बने होते हैं जिसमें लेखकों के अधिकार सुरक्षित नहीं। प्रकाशकों की मनमानी से हिंदी के लेखक त्रस्त हैं और विनोद जी के शब्दों में किताबें बंधक बना ली गयीं हैं। ये प्रकाशक एक तरफ तो किताबों के न बिकने का रोना रोते हैं पर दूसरी तरफ वे  मालामाल भी हो रहे हैं। उनका नित्य विस्तार हो रहा है और न के कारोबार में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।

लेखकों ने कहा कि हमारा मानना है कि विनोद कुमार शुक्ल की व्यथा को प्रकाशकों द्वारा तत्काल सुना जाना चाहिए और बिना उनकी अनुमति के उनकी किताबों का प्रकाशन और बिक्री नहीं होनी चाहिए या  ऑडियो बुक नहीं निकलनी चाहिए। हम हिंदी के प्रकाशकों से अपील करते हैं कि वेकिताबों के प्रकाशन के बारे में  एक उचित नीति बनाएं और पुस्तकों को गुणवत्ता के आधार पर प्रकाशित करें न कि साहित्येतर कारणों से।वे लेखकों के आत्मसम्मान की भी रक्षा करें और यह न भूलें कि लेखकों की कृतियों के कारण ही उनका कारोबार जीवित है।

उन्होंने कहा कि हम हिंदी के सभी लेखकों से अपील करते हैं कि वे विनोद जी के समर्थन में खुल कर आएं और उनका समर्थन करें तथा प्रकाशकों के सामने समर्पण न करें।हम हिंदी के लेखक प्रकाशकों की चिरौरी की संस्कृति के भी विरुद्ध हैं। लेखकों के अधिकारों पर किसी तरह का कुठाराघात हमें स्वीकार्य नहीं है।

बता दें कि लेखक-कवि विनोद कुमार शुक्ल ने बुधवार को दो बड़े प्रकाशन समूहों पर  उन्हें वर्षों तक कम भुगतान करने का आरोप लगाया है। उन्होंने अपनी पीड़ा वीडियो के माध्यम से सोशल मीडिया पर पोस्ट की है।

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