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कला को जीवन देती कला

खजुराहो नृत्य समारोह-एक ऐसे दौर में जब कला को खुद को जिंदा व प्रासंगिक बनाए रखने के लिए जद्दोजेहद करनी पड़ रही है, अलग-अलग कलाओं का एक-दूसरे का सहारा बनकर एक मंच पर आना एक सुकून देने वाला अनुभव है। खजुराहो नृत्य समारोह ऐसा करने में काफी हद तक कामयाब रहा है।
कला को जीवन देती कला

 यह देशभर में होने वाले इसी तरह के नृत्य महोत्सवों के लिए एक सबक भी है। हर साल होने वाला खुजुराहो नृत्य समारोह देश के सबसे प्रतिष्ठित और पुराने नृत्य महोत्सवों में से एक है। उसका 41वां आयोजन 20 से 26 फरवरी को हुआ। लेकिन सालों तक अपनी घटती लोकप्रियता से चिंतित यह समारोह पिछले कुछ सालों से फिर से दर्शकों, सैलानियों, कलाकारों और समीक्षकों का पसंदीदा बनता जा रहा है। 

केवल नृत्य के पैमाने पर भी खजुराहो समारोह शास्त्रीय नृत्य में अभिनव प्रयोगों के लिए प्रसिद्ध रहा है। कई उपलद्ब्रिधयां इसके खाते में जुड़ती रही हैं। इस लिहाज से इस साल के समारोह की उपलद्ब्रिधयां पांचवे दिन यशोदा राव ठाकुर का देवदासी नृत्यरहा। देश में किसी शीर्ष नृत्य समारोह में देवदासी नृत्य की यह पहली प्रस्तुति मानी जा सकती है। यशोदा प्रख्यात कुचिपुड़ी नृत्यांगना हैं लेकिन अब वह देवदासी नृत्य को यौन शोषण की कालकोठरियों से निकालकर उसकी विशिष्ट शैली को लोगों के सामने पेश करने की दिशा में प्रयासरत हैं। उन्होंने पदम और अभिनयम की अनूठी प्रस्तुति इस बार समारोह में पेश की और देवदासी प्रथा और नृत्य के बारे में लोगों से संवाद भी किया।

इस साल के महोत्सव में ओडिसी की कई प्रस्तुतियां उल्लेखनीय  रहीं जिनमें पहले दिन गुरु विचित्रानंद स्वैन व उनके साथियों का ओडिसी नृत्य, दूसरे दिन सुविकास मुखर्जी व एश्वर्या  सिंह देव का ओडिसी युगल और समाप्ति से एक दिन पहले सोनाली महापात्र का एकल नृत्य मुक्चय रूप से गिनाए जा सकते हैं। सोनाली महापात्र के बारे में एक काबिले तारीफ बात यह है कि पांच साल की उम्र में एक इलाज के दौरान लापरवाही से उनके सुनने की क्षमता लगभग चली गई थी। उसके बावजूद उन्होंने नृत्य में अद्भुत दक्षता हासिल की। अब वह कान की मशीन की मदद से केवल ताल की ताप सुनकर नृत्य करती हैं। हालांकि समारोह में ओडिसी की एक अन्य प्रस्तुति अखरने वाली भी रही— शुभदा वराडकर और उनकी साथियों की नृत्य नाटिका—कनुप्रिया। गुरु केलुचरण महापात्र से नृत्य की बारीकियां सीखने वाली इस नृत्यांगना ने ओडिसी को शास्त्रीय रूप में प्रस्तुत करने के बजाय विजुअल व म्यूजिकल इफेट्स के साथ जिस तरह प्रस्तुत किया उसमें टीवी व  रियलिटी डांस शो का प्रभाव नजर आ रहा था।

कुछ इसी तरह की बात समारोह के दौरान हुई कथक प्रस्तुतियां के साथ भी रही। तीसरे दिन सुरश्री भट्टाचार्य व अनुस्वा मजुमदार ने कथक और राजेश व राकेश साईं बाबू ने मयूरभंज छाऊ का खूबसूरत संयोजन पेश किया। इसे पूरे समारोह की सबसे शानदार प्रस्तुतियों में से एक माना गया। खजुराहो में विभिन्न शास्त्रीय नृत्य शैलियों का इस तरह का संयोजन साल-दर-साल होता आया है। तीसरे दिन ही प्रक्चयातख्यात नृत्यांगना गुरु रानी कर्णा का साथियों के साथ समूह कथक और चौथे दिन शिवानी सेठिया, तृष्णा कुमारी व जेसल पटेल की कथक त्रयी भी काफी सराही गई। कुचिपुड़ी की भी कुछ शानदार प्रस्तुतियां देखने को मिली जिनमें चौथे दिन शैलजा का अपने साथियों के साथ समूह और छठे दिन जयकिशोर व पद्मवनी मोसलिकंटी का युगल खास थे। छठे दिन प्रोग्रेसेिव आर्टिस्ट लेबोरेटरी के टिकेन सिंह ने अपने साथियों के साथ मणिपुरी नृत्य का रास संकीर्तन पेश करके माहौल में फागुन के मानो रंग सरीखे बिखेर दिए। यह भी सबसे लोकप्रिय प्रस्तुतियों में से एक रही।

नृत्य के अलावा समारोह को स्थानीय लोगों-कलाकारों से जोडऩे के लिए भी बहुत सचेत प्रयास किया गया है। इसे राज्य में कला का सर्वोच्च मंच बनाने की कोशिश में मध्य प्रदेश सरकार अब अपने राज्यस्तरीय शीर्ष कला पुरस्कार यहीं पर देने लगी है। यहीं पर उन कलाकारों की प्रदर्शनी भी लगती है। आर्ट मार्ट को दो हिस्सों में रखा गया है। एक हिस्सा इन पुरस्कृत कलाकारों की प्रदर्शनी का रहता है और दूसरा राज्य के बाकी कलाकारों की कला का। इस बहाने इन छोटे कलाकारों को भी एक ऐसा मंच उपलद्ब्रिध कराया जाता है जहां वे अपनी कृतियों के लिए ग्राहक खोज सकते हैं।

नेपथ्य में इस बार आंध्र प्रदेश की प्रदर्शनकारी कलाओं की कला यात्रा को दिखाया गया। नेपथ्य का मकसद कला की यात्रा को सजीव तौर पर प्रस्तुत करना है। 2013 में कत्थकली और पिछले साल ओडिसी की कला यात्रा को दिखाया गया था। इस बार आंध्र प्रदेश के बहाने कुचिपुड़ी की यात्रा को यहां संजोया गया था। कला वार्ता में अलग-अलग कलाओं के लोगों के बीच संवाद कायम करने के लिए रोजाना बातचीत का सत्र रखा गया। सामाजिक कार्यकर्ता और मध्य प्रदेश में लोक कलाओं के संरक्षण से जुड़े चिन्मय मिश्र का कहना था कि समारोह में हुनर को देशज कला परंपराओं के मेले के तौर पर रखा गया है, जहां दस्तकार, शिल्पकार अपनी हस्तकलाओं का सजीव प्रदर्शन करते हैं और साथ ही साथ उन्हें इसके लिए एक बाजार भी समारोह में आने वाले दर्शकों व सैलानियों के रूप में मिल जाता है।

उस्ताद अल्लाउद्दीन खान संगीत एवम कला अकादमी में सहायक निदेशक राहुल रस्तोगी ने बताया कि पिछले चार सालों में खजुराहो नृत्य समारोह के आयोजन के तरीके में जो बदलाव किया गया है, उसके सकारात्मक नतीजे देखने को मिले हैं। पहले इस तरह के प्रयोग को लेकर जो संशय व परिहास का भाव था, वो अब सराहना में बदल गया है। इससे समारोह के दायरे और पहुंच दोनों में कई गुना इजाफा हुआ है। रस्तोगी ने बताया कि अब वे समारोह का दायरा अंतरराष्ट्रीय करना चाहते है। उनकी इच्छा है कि हर साल किसी देश को इस समारोह का सहयोगी देश बनाया जाए और वहां के कलाकारों की इसमें शिरकत कराई जाए। इस बहाने विभिन्न  देशों की कलाओं के बीच भी संवाद का एक मंच बने। इसमें कोई दोराय नहीं कि नृत्य में जितने अभिनव कलात्मक प्रयोग हो रहे हैं और शैलियों में सुगठन हो रहा है, उन सबका मंच बन रहा है खजुराहो नृत्य समारोह।

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