Advertisement

भरतनाट्यम की लालित्यपूर्ण भंगिमाएं

भरतनाट्यम दक्षिण भारत की प्रमुख और समृद्ध नृत्य शैली है। उत्तर भारत में बाहरी अक्रमणों से यहाँ का...
भरतनाट्यम की लालित्यपूर्ण भंगिमाएं

भरतनाट्यम दक्षिण भारत की प्रमुख और समृद्ध नृत्य शैली है। उत्तर भारत में बाहरी अक्रमणों से यहाँ का जनजीवन और कला-संस्कृति प्रभावित होती रही। पर दक्षिण भारत को इन विपदाओं को झेलना नहीं पड़ा। इस कारण जहाँ की संस्कृति-कला का मूलरूप नहीं बदला। दक्षिण भारत की कई नृत्य शैलियों में भरतनाट्यम नृत्य शैली समग्रता से विकसित होती रही। इस शैली का पुराना नाम दासी अट्टम था। दासी यानि देवदासिया इस नृत्य के प्रचार-प्रसार में देवदासियों का बड़ा योगदान रहा है। लेकिन इस नृत्य को नए सिरे से मर्यादित करने और विस्तार देने में इस कला की मर्मज्ञ विदूषी रुकमणी देवी ने एक उल्लेखनीय कार्य करके इस नृत्य को भरतनाट्यम के नाम से स्थापित किया। कथक नृत्य की तरह भरतनाट्यम एक लचीली शैली नहीं है। यह पूर्ण रुप से व्याकरणबद्ध है। पर इसमें अभिव्यक्ति की काफी गुंज़ाईश है। अन्य नृत्यों की तरह इसका भी जुड़ाव भक्ति परम्परा से रहा है। समय के बदलाव के साथ इस नृत्य में भी परिवर्तन होते रहे है। कुछ हद तक रूढ़िवादी परम्परा को तोड़कर आगे बढ़ने के लिए रुकमणी देवी ने नए-नए बिंब देकर इसे तैयार किया और इसके व्याकरण को सुदृढ़ किया।

इस समय राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भरतनाट्यम सबसे ज़्यादा लोकप्रिय नृत्य शैली है। इस नृत्य में बड़ी हस्तियों में नृत्यांगना, बला सरस्वती, यामिनी कृष्णा मूर्ति से लेकर बेजंती माला से लेकर अनेक है। पर इस नृत्य को उत्तर भारत में पहचान दिलवाने और लोकप्रिय करने में अहम भूमिका विदूषी सरोजा वैद्यनाथन की है। इस नृत्य के प्रति लोगों को आकर्षित करने और प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए तकरीबन चार दशक पूर्व दिल्ली में गणेश नाट्यालय की स्थापना की। अपने सपनों को साकार करने के लिए वे पूरे तन-मन-धन से कार्यरत रही और धीरे-धीरे अपने लक्ष्य को पाने के लिए आगे बढ़ती गई। नतीजतन आज यह नाट्यालय न सिर्फ दिल्ली बल्कि पूरे उत्तर भारत में प्रमुख हैं। एक लम्बे समय से लगातार यहाँ देश और विदेश के छात्र नृत्य की विधिवत शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। उनमें कई राष्ट्रीय स्तर के कलाकार बनकर उभरे हैं। गुरु-शिष्य परम्परा पर प्रशिक्षण प्रदान करने के गुरू सरोज़ा वैद्यनाथन के साथ सुविख़्यात नृत्यांगना और गुरू रमा वैद्यनाथन भी कार्यरत है। नृत्य में उभरती प्रतिभाओं को मंच पर प्रस्तुत करने के लिए हर साल गणेश नाट्यालय एक भव्य आयोजन भी करता है।

हाल ही में हेबिटेट सेन्टर के स्टेन सभागार में गुरु सरोजा और रमा वैद्यनाथन की शिष्या देबासमिता ठाकुर ने नृत्य और अभिनय को मनोरम प्रस्तुति दी। मंगला चरण के रूप में कार्यक्रम का आरम्भ भरतनाट्यम के परम्परागत नृत्य पुष्पांजलि की प्रस्तुति से किया। देखने से लगा कि गुरू के सानिदय में नृत्य के हर पक्ष और सूक्ष्म चलनों को सही लीक पर बड़े चाव और लगन से सीखा है। अंग संचालन, पद विन्यास, हस्त मुद्राओं आदि में पूर्ण गठन के अलावा लयात्मक गति में नृत्य प्रदर्शन में अच्छी चमक और रंगत थी। उसके उपरांत रवीन्द्रनाथ टैगोर की काव्य रचना सबला की प्रस्तुति थी। इसमें पुरुष प्रधान समाज में नारी का प्रतिशोध है। सबला नारी को पुज़ारियों द्वारा पूजा करने की अनुमति न देना। शादी के मंडप में पति के आधीन न रहने का उसके अन्दर उठता द्वंद, वह अपनी प्रतिष्ठा की लड़ाई के लिए लड़ना और ऐसा साथी चुनना जिसके साथ उसका बराबरी का दर्जा हो। इस परिदृश्य को नृत्य और अभिनय के जरिए जीवंतता से दर्शाने का सुन्दर प्रयास नृत्यांगना में नज़र आया। रुढ़िवादी समाज की उपेक्षा से उसका मन शांत और स्थिर और टकराव कैसे होता इस भाव की अभिव्यक्ति भी रोमानचित करने वाली थी। अगली प्रस्तुति में वनवास के दौरान अर्जुन मणिपुर की राज कव्या चित्रांगदा को देखकर मोहित हो जाते हैं। लेकिन चित्रांगदा अर्जुन के सामने शर्त रखती है कि जब तुम समाज और अपने जीवन में स्त्री की मर्यादा और उसको बराबर का सम्मान देने का वादा करो तभी मुझे पहचान पाओगे। इसमे नारी के स्वाभिमान का जो आवाहन है उसे बड़ी सीमा तक देबासमिता ने जीवंतता से चित्रित गया। आख़िर में तिल्लना और मंगलम की प्रस्तुति भी रंजक थी। इस कार्यक्रम को गरिमा प्रदान करने में गायन पर श्रीराग, मृदंगम वादन में मनोहर बालचन्द्रयाने, वायलिन पर राघवेन्द्र प्रशांत, इसराज वादन में ज्ञान चानका, नटुवांगम पर हिमांशु श्रीवास्तव, और पढ़ंत पर शोभा भट्टाचार्य की संगत मनोहारी थी।

 

(लेखक वरिष्ठ संगीत समीक्षक हैं)

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad