रूदार ए शिरीन या टेल ऑफ शिरीन की संगीतमय प्रस्तुति समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी भी मौजूद थीं।
काव्यात्मक रूदार ए शिरीन में एक आम महिला की कहानी है। शिरीन की शादी 16 साल में हुई और वहीं से उसकी कहानी शुरू होती है। उसके अपने घर, माता-पिता एवं मित्रों से अलगाव की दास्तां को बयां करते चलती है। यह कहानी नए जगह पर उसकी असहजता एवं अच्छी पत्नी, अच्छी बहू और अच्छी मां के तौर पर उस पर लाद दी गई जिम्मेदारियों के बोझ का वर्णन भी करती है।
संगीत, कविता और चित्रकारी के माध्यम से इस प्रस्तुति ने खुसरो और उनके उस्ताद ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया के समयकाल को यहां जीवंत बना दिया।
इस संगीत नाटिका के निर्देशक और संगीतज्ञ उस्ताद इकबाल अहमद खान ने कहा, ’रूदार-ए-शिरीन के माध्यम से हम महिला सशक्तिकरण की एक संगीतमय कहानी कहना चाहते हैं। दिल्ली घराने में हम महिला अधिकारों के पक्ष में हमेशा मजबूती से खड़े रहते हैं और हमारा मानना है कि कोई भी समाज तभी फल फूल सकता है जब उस समाज में महिलाएं सशक्त हों।’
खुसरो ने ही 13वीं सदी में दिल्ली घराने की नींव डाली थी जो कि भारतीय उपमहाद्वीप के सांस्कृतिक इतिहास और विकास का एक बेहतरीन नगीना है।
शिरीन की कहानी समाज में बाल विवाह जैसी कुरीति पर भी चोट करती है। अंत में शिरीन किसी भी जिम्मेदारी को निभाने से मना कर देती है और निजामुद्दीन औलिया की ओट में ही दैवीय प्रेम को पाती है।