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शहरनामा/देवरिया: आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, प्राकृतिक संपदा वाला शहर

“आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, प्राकृतिक संपदा वाला शहर” महात्माओं की भूमि उत्तर प्रदेश के पूर्वी छोर...
शहरनामा/देवरिया: आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, प्राकृतिक संपदा वाला शहर

“आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, प्राकृतिक संपदा वाला शहर”

महात्माओं की भूमि

उत्तर प्रदेश के पूर्वी छोर का अंतिम जिला  देवरिया है, जो आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, प्राकृतिक हर दृष्टि से बड़ा समृद्धशाली रहा है। जिले के बूढ़-पुरनियां बताते हैं कि देवरिया ऋषियों, संतों और महात्माओं की भूमि है। यहां अनेक सिद्ध महात्मा जन्मे। यहां तीज-त्योहार पर सभी वर्णों का सौहार्द देखते ही बनता है। जिऊतिया के त्योहार में चूड़ा-दूध से लेकर छठ महापर्व पर ठेकुआ का प्रसाद खाकर हर किसी का मन ललचा जाता है। देवरिया का अधिकांश क्षेत्र ग्रामीण है। अत: जब आप भ्रमण करने के उद्देश्य से इसके खेतों-खलिहानों, बाग-बगईचा और बारी को निहारेंगे तो आपको शत-प्रतिशत सुकून से भरे प्राकृतिक आलिंगन की अनुभूति होगी।

देवरहा बाबा के देशी-विदेशी भक्त

ब्रिटेन के शाह जॉर्ज पंचम जब भारत आए तो अपने भाई प्रिंस फिलिप से साधु-संतों की महिमा के विषय पर प्रश्न किया, तो फिलिप ने उत्तर में एकमात्र वाक्य ‘यू मस्ट मीट ग्रेट सेंट कॉल्ड देवरहा बाबा टु गेट योर आंसर’ कहा। इसके पश्चात जॉर्ज पंचम देवरहा बाबा से मिलने गए। बाबा से वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी जीवनी में भी देवरहा बाबा का उल्लेख किया। प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू के अलावा इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, अशोक सिंघल, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव और अनेक बड़े नाम उनके भक्त थे।

पावन नदियों का तट

यहां तीन प्रमुख नदियां हैं। बुद्धकालीन इतिहास की प्रमुख नदियों में से एक राप्ती नदी बहती है। यह नेपाल की लघु हिमालय श्रेणियों से निकलकर देवरिया को अपने जल से पवित्रता के सूत्र में बांधती है। नेपाल से आने वाली पूरब की एक और प्रसिद्ध नदी गंडक है, जो हिमद्रवण से साल भर जल प्राप्त होते रहने से सदावाही अवस्था में बनी रहती है। जिले के सर्वाधिक प्रसिद्ध आराधना-स्थलों में दो मंदिर हैं, जलपा माई का मंदिर और स्वयंभू महादेव शंकर जी का स्थान अर्थात् जंगली बाबा का मंदिर इसी पावन गंडक (नारायणी) के तीर पर शोभायमान है। सरयू की पावन जलधारा के यहां के बरहज घाट पर हम सभी को दर्शन प्राप्त होते हैं। इसी नदी के तीर पर देवरहा बाबा का प्रसिद्ध आश्रम है और बाबा के शिष्य बताते हैं कि बाबा नित्य ब्रह्ममुहूर्त में सरयू में ही स्नान किया करते थे। देवरिया के बारे में एक तथ्य यह भी प्रचलित है कि यहां तटों के नाम से नदियों को पुकारने का अनूठा चलन न जाने कब से चला आ रहा है। उदाहरण के लिए, बरहज घाट, इंदुपुर की नदी और जिले का सबसे विशेष स्नान-स्थल भागलपुर का घाट है जहां नहावन (स्नान) के लिए भिन्न-भिन्न स्थानों से श्रद्धालु आते हैं। भागलपुर घाट पर शवदाह करने की परंपरा भी अत्यधिक पुरातन है। देवरिया और आस-पास के जिलों में भागलपुर को लेकर मुक्तिधाम की आस्था सर्वमान्य है। आस्‍था यहां के लोक-परंपरा और लोक-गीतों में भी महकती रहती है।

1857 की क्रांति में अग्रणी

1857 की क्रांति में देवरिया के अनेक क्रांतकारियों ने भाग लिया, जिसमें रूद्रपुर के नरेश उदित प्रताप नारायण सिंह के साथ भवन सिंह, ठाकुर सिंह, शिवव्रत सिंह, पलटन सिंह, मुशर्रफ खान, सासंभर सिंह, राजा किशन किशोर चंद्र, राजा रघुवीर सिंह, मुनवान सिंह, जाकिर हुसैन, विरजिस कदर, जफर अली, नारायण दयाल, संग्राम लाल, बल्ली सिंह, पृथ्वीपाल सिंह और सैकड़ों लोगों ने बढ़-चढ़कर मोर्चा संभाला था। राजा उदित प्रताप नारायण सिंह को अंग्रेजी हुकूमत ने काला पानी की सजा सुनाई थी। स्वतंत्रता की ही खातिर देवरिया के कक्षा-8 में अध्ययनरत बलिदानी बालक रामचंद्र ने यूनियन जैक का बहिष्कार कर भारतीय ध्वज (तिरंगा) फहराया था। देवरिया की राष्ट्र के प्रति कर्तव्य-परायणता का यह एक लघु उदाहरण मात्र है।

समानता का सम्मान

देवरिया के औसत लिंगानुपात की रिपोर्ट के अनुसार जिले में 1000 लड़कों पर 17 लड़कियां अधिक जन्म लेती हैं। यह लिंगानुपात सिद्ध कर देता है कि हमारे जिले-जवार के नागरिक लड़का-लड़की दोनों को एक समान सम्मान देते हैं। सामान्यत: समाज में अब भी ये धारणा बैठी हुई है कि पुत्र श्रेष्ठ होता है और पुत्रियों का स्थान दोयम दर्जे पर माना जाता है। मगर देवरिया इस मामले में अपवाद है क्योंकि लिंगानुपात की रिपोर्ट से पता चलता है कि देवरियावासी 'बेटा-बेटी एक समान' सिद्धांत का भलीभांति अनुसरण करते हैं और पुत्र-पुत्री में समानता के सिद्धांत को बड़ी सहजता से अपनाए हुए हैं।

भोजपुरिया माटी के नायक

पूरे पूर्वांचल में सबसे ठेठ भोजपुरी बोले जाने वाले जिलों में देवरिया अग्रणी है। यहां के जन-जन का मानना है कि जैसे एक विशाल वृक्ष किसी कारणवश मिट्टी से जुड़ी अपनी जड़ें छोड़ दे तो उसे धराशायी होने में एक क्षण का भी विलंब नहीं होता, उसी भांति अपने मूल को त्याग देने वाला कहीं भी, कभी भी उत्तरोतर प्रगतिशील नहीं हो सकता है। पचासों वर्षों से ज्यादा से चली आ रही भोजपुरी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित कराने की मांग को लेकर भी यहां के लोग प्रयत्नशील हैं। हम भोजपुरी भाषा में सदा एक ही बात कहते हैं कि “धरातल के खोअबऽ, ता आसमान में रोअबऽ।”

आदित्य प्रकाश मिश्र

(नवोदित कवि, पूरब:मेरा काव्य संग्रह)

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