Advertisement

रवि बुले की कहानी: प्रोडक्शन नं.3

5 सितंबर, 1971, जबलपुर (म.प्र) में जन्म। ढाई दशक से पत्रकारिता में सक्रीय। बीते दस बरस में दो कहानी संग्रहः आईने सपने और वसंत सेना। यूं ना होता तो क्या होता। पिछले साल आया उपन्यास दलाल की बीवी काफी चर्चित रहा। गुजरे डेढ़ दशक से लगातार फिल्म समीक्षाएं, विवेचन और अध्ययन। मुंबई में निवास। प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक अमर उजाला के मुंबई ब्यूरो प्रमुख।
रवि बुले की कहानी: प्रोडक्शन नं.3

संगमरमरी बैंक्वेट हॉल के एक कोने में वह खड़ी थी। सफेद रेशमी गाउन में लिपटी। खिड़की के पार देखती। रात उतर चुकी थी। बारिश से मौसम सुहाना हो रहा था। मद्धम संगीत और चमेली की हल्की खुशबू हॉल में बिखरी थी। मेहमान और पत्रकार धीरे-धीरे आ रहे थे। मंच फूलों से सजा था। बैनर टांग दिया गया थाः आरके फिल्म्स। प्रोडक्शन नं.3, निर्देशकः रहमान खान। वह उसका ही इंतजार कर रही थी। उसने उदास आंखों से दरवाजे की ओर देखा। वह शायद इसी बात की प्रतीक्षा में था। दरवाजा खोल कर तत्क्षण प्रकट हुआ। फिरोजी बुशर्ट, नीली जींस और सफेद स्पोर्ट्स शू पहने। गले में सोने की मोटी चेन। बाएं हाथ में सुनहरी ब्रेसलेट। नगीनों से जड़ी अंगूठियां। वह मुस्कराया। वह जहां थी वहीं खड़ी रही। पास आकर वह उसके कान में फुसफुसाया। उसने सिर हिलाया और जाकर एक कुर्सी पर बैठ गई।

 

 

रहमान पत्रकारों के पास गया और बोला, ‘आइए, वह तैयार है।’

 

सबने उससे हाथ मिलाया। परिचय दिया। फिर घेर कर बैठ गए। वह मुस्कराती रही। सवाल शुरू हुए। आप कहां से हैं? फिल्मों में कैसे आईं? माता-पिता कैसे माने? अभिनय और नृत्य कहां सीखा? फिल्म में आपका रोल क्या है? कोई रिश्तेदार फिल्मों में नहीं है तो स्ट्रगल कितना कठिन है? छोटे शहर से महानगर में आने पर किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा?

 

जवाब देते हुए वह शुरुआत में घबरा रही थी। यूं रहमान ने समझा रखा था कि क्या-कितना कहना है। धीरे-धीरे वह सामान्य हुई। उसे बातों में मजा आने लगा। दो फोटोग्राफर भी वहां थे। उसकी तस्वीरें खींच रहे थे। एक सवाल से वह चौंकी, ‘चुंबन और बिकनी के सीन आजकल आम हैं। क्या आप तैयार हैं?’ कुछ पल सोचकर वह बोली, ‘कनविंस हुई तो जरूर करूंगी। देखूंगी कि शॉट क्या है, सिचुएशन क्या है, कितनी जेनुइन है।’ फिर सवाल आया, ‘तो माना जाए कि नई लड़कियां इन स्थितियों के लिए माइंड मेक-अप करके आती हैं?’ उसने आत्मविश्वास से कहा, ‘कॉम्पीटीशन देखिए कितना है। प्रोड्यूसर उसी को साइन करते हैं जो सब करने को तैयार हो। लड़कियां करती हैं क्योंकि उन्हें फेम चाहिए।’

 

‘मतलब बाहर से आने वाली लड़कियों का शोषण होता है?’ प्रश्न उछला।

 

‘डायरेक्टर हमें पुरानी हीरोइनों की स्विम सूट, बिकनी और किसिंग वाली तस्वीरें दिखाते हैं, जिनके परिवार इस इंडस्ट्री में थे। जिनके बच्चे आज सितारे हैं। वे कहते हैं कि देखो, उन्होंने किया था। बड़ी आर्टिस्ट हैं। क्या ये खानदानी नहीं हैं?’ इस जवाब पर सबने हैरानी से एक-दूसरे को ऐसे देखा जैसे कोई राज खुला! फिर पूछा, ‘यानी सबकी मर्जी होती है?’

वह अदा से बोली, ‘ये इंडस्ट्री एक खूबसूरत बिजनेस है और हम प्रोडक्ट। इसके अलावा कुछ नहीं। कौन आर्टिस्ट प्रोडक्ट के रूप में खुद को कहां रखना चाहता है, यह उस पर है। वैसे सब चाहते हैं कि ऑडियंस के दिलों में बैठ जाएं। मगर ऑडियंस की भी कुछ खास डिमांड होती है... डिमांड है तो सप्लाई है।’

 

रहमान चुपचाप पीछे खड़ा था। उत्तर सुन कर हल्के-से मुस्करा दिया।

 

एक गंजे-अधेड़ पत्रकार ने गहरी सांस भरी और शब्द चबा-चबा कर बोला, ‘प्रोडक्शन नंबर 3...! मुझे याद आ रहा है कि कोई ढाई-तीन साल पहले भी रहमान के साथ ही आपकी दो फिल्में लॉन्च हुई थीं। उनके भी टाइटल नहीं थे। सिर्फ प्रोडक्शन नंबर 1 और प्रोडक्शन नंबर 2 लिखा था। उन फिल्मों का क्या हुआ?’

 

वह सन्न रह गई। चेहरे का रंग उड़ गया। उजले कमरे में एकाएक जैसे अंधेरा हो गया। उसे गंजे-अधेड़ की जगह उस बिल्डर की छाया दिखने लगी जिसका बालों से भरा भारी शरीर और बदबूदार सांसें वह महीनों तक अपने ऊपर सहती रही। उसकी टांगें कांपने लगी। जांघों पर पसीना महसूस हुआ। वह कमजोर पड़ने लगी। तभी रहमान का स्वर उभरा, ‘अरे भाटिया जी यह मुझसे पूछिए। कंपलीट हो गई हैं वे। हम तीनों को एक साथ रिलीज करेंगे। इन्हें जोर-शोर से सबके सामने लाएंगे। थोड़ा-सा इंतजार कीजिए।’

 

फिर स्वर बदला, ‘चलिए सर... खत्म कीजिए बातें। थकान मिटाइए। बार इज वेटिंग फॉर यू...’

 

सबके चेहरे खिले। वे उठे। मुस्कराए। उसे शुभकामनाएं दी।

 

वह अब भी घबराई हुई थी। मुश्किल से खड़ी हो पाई। रहमान ने कंधे पर हाथ रख कर बैठाया और बार अटेंडेंट को इशारे से समझाया। वह ड्रिंक बना कर लाया। ‘सिप’ करती हुई वह खिड़की के नजदीक जाकर खड़ी हो गई। बरसात रुक जाने से उमस हो रही थी। संगीत बंद हो गया। खुशबू भी गुम थी।

 

खिड़की के पार देखती हुई वह खो-सी गई।

 

 

वह अपने शहर की ‘मिस ब्यूटीफुल’ चुनी गई थी। कुछ कच्चे सपने आंखों में जन्मे थे। जुनून का सैलाब फूटा था। वह घर से बगावत करके मायानगरी मुंबई में आई थी। कोई परिचित नहीं। काम का ठिकाना नहीं। यहां-वहां धक्के खाती रही। कभी रैंप की भीड़। कभी एक्स्ट्राज का कोना। लोग मिलते थे। भरोसा दिलाते थे। दोस्ती करते थे। वादे करते थे। लेकिन यह झूठ के पर्दे थे। सच अंदर नंगा था। स्वार्थ, लोभ, षड्यंत्र, धन और हवस उसके रूप थे। कोई लिहाज नहीं। कमजोर का शिकार तय था। आशंकाओं में वह अकेली नहीं जी रही थी। हजारों-हजार थीं। कहीं बच रही थीं तो कहीं शिकार हो रही थीं। ग्लैमर की दुनिया के रास्ते जिस्म फरोशी के धंधे और ड्रग्स के कारोबार की अंधेरी दुनिया तक जा रहे थे। कहीं ठगी से सपनों को पूरा करने का जुर्म था तो घोर निराशा में आत्महत्या की डरावनी खबरें भी थी। डर आईने के सामने भी लगता था। गुजरते वक्त के साथ काया की ढलती चमक चिढ़ाती थी। तब वन-रूम में बंद दरवाजे के भीतर उसे लगता था कि कोई अपनी बांहों में समेट ले। वक्त ठहर जाए।

 

देखते-देखते रेत की तरह मुट्ठी से सब फिसल रहा था। छह साल यूं ही गुजर गए।

 

कश्मकश के इन्हीं दिनों में उसकी मुलाकात रहमान से हुई। बेफिक्र और हंसमुख। कई-कई प्रोजेक्ट्स की बातें करता। हर पल नई फिल्म शुरू करने को तैयार। वह हैरान हुई। आंखों में आंखें डाल कर वह बोला, ‘यह इंद्रजाल है बेबी। इसके जादू में लोग तिल-तिल कर मर जाते हैं। तुम क्यों मरना चाहती हो?’ उसी पल उसका मन इन आंखों में डूब कर मर जाने को हुआ। वह अचानक कमजोर पड़ गई। रहमान का हाथ थामे हुए उसने सुंदर सपना देखा। जब सपने से जागी, तब हकीकत की भयावह तस्वीर ने हिला दिया। सच की इस क्रूर दुनिया से सपने के रूमानी संसार में लौटना असंभव था। रहमान सस्ते प्रोजेक्ट बनाता था। बी और सी ग्रेड से भी सस्ते। उसे पता ही नहीं चला कि कब वह उसके कैमरे में कैद छाया बन गई। रोना-धोना, शिकवे-शिकायत, कसमें-वादे बेकार गए।

 

 

बाहर बरसात फिर शुरू हो गई। उसे लगा कि आसमान उसके लिए रो रहा है।

 

वह भी रोना चाहती थी। मगर अब उसकी आंखों में आंसू नहीं आते थे।

 

रहमान ने उसे लेकर दो प्रोजेक्ट बनाए। प्रोडक्शन नं.1 और प्रोडक्शन नं.2।

 

ऐसी ही पार्टी थी। पत्रकार थे। फोटोग्राफर थे। मेहमानों की छोटी भीड़ थी। रोशनी थी। खुशबू थी। संगीत था। कुछ देर में प्रोड्यूसर आया। सिर से पैर तक उसे देखा। पीठ पर हाथ फेरा। बोला, ‘स्टार बन जाओगी तो हमें भूल मत जाना डार्लिंग!’ उसके गाल मारे शर्म के लाल हो गए।

 

यह प्रोजेक्ट प्रोडक्शन नंबर तक सीमित रहे। नाम और अंजाम तक नहीं पहुंचे। इधर शूटिंग शुरू हुई। उधर बजट में हेराफेरी हुई। गुस्साया प्रोड्यूसर चला गया। वह रूठ गई। रहमान ने कहा कि तुम चाहोगी तो नया प्रोड्यूसर मिल जाएगा। वह चाहती थी इसलिए नया प्रोड्यूसर मिला। प्रोजेक्ट फिर शुरू हुआ। थोड़ा शूट होकर फिर बंद हो गया। इसके बाद यह चक्र चल पड़ा। वह चाहती और रहमान नए प्रोड्यूसर लाता। काले धन के सफेदपोश कारोबारी। बिजनेसमैन। बिल्डर। फैक्ट्री मालिक। कारपोरेट अधिकारी। सरकारी अफसर। छोटे-बड़े नेता। वकील और गुंडे तक। इन सिलसिलों के बीच धीरे-धीरे प्रोडक्शन नं.1 और प्रोडक्शन नं.2 पुराने पड़ गए। सिनेमा का अंदाज बदल गया। नया फैशन आया। नई हीरोइनें आईं। अदाएं बदल गईं। कल्पनाओं के नए उत्सुक कारोबारी बाजार में आ गए।

 

वह भी पहले जैसी नहीं रह गई।

 

शुरुआती दुख के बाद वह सोचने लगी कि यह सब उतना बुरा भी नहीं है। कल की चिंता खत्म हो गई। ब्रांडेड कपड़े, एक्सेसरीज और महंगे मेक-अप मटीरियल से वह सजने-संवरने लगी। रहमान ने वन-रूम से निकाल कर खुला फ्लैट दिला दिया। उसे वह पार्टियों में साथ ले जाता। वह खुश रहती। नए प्रोड्यूसरों के लिए उत्सुक। आईने के सामने अब डर नहीं लगता था। अभावों और संघर्षों की मार के निशान खो गए थे। वह पहले से ज्यादा जवान और हसीन थी। खूबसूरती उसके काम आ रही थी।

 

एक दिन रहमान ने उससे कहा कि नए समय में बने रहने के लिए नया प्रोजेक्ट लॉन्च करना पड़ेगा।

 

नया प्रोड्यूसर ढूंढने में मुश्किल नहीं हुई।

 

यह पार्टी उसी की तरफ से थी।

 

 

खिड़की में खड़ी वह प्रोड्यूसर का इंतजार कर रही थी। वह किसी भी पल आ सकता था।

 

ड्रिंक खत्म हो चुका था। मन हल्का लग रहा था। घबराहट खत्म हो गई थी। मद्धम संगीत फिर बज रहा था। चमेली की हल्की खुशबू फिर बिखरी थी। अचानक हॉल की रोशनी बुझ गई। गहरे अंधेरे में तूफानी संगीत का शोर उठा। रहमान की खनकती हुई आवाज आई, ‘लेडीज एंड जेंटिलमैन प्लीज वेलकम प्रोड्यूसर ऑफ अवर प्रोड्क्शन नंबर 3... मिस्टर कमल किशोर।’

 

तालियों की गड़गड़ाहट में संगीत का शोर मीठा लगने लगा।

Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad