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दिवंगत उर्दू साहित्यकार अख़्तर ओरेनवी को युवाओं तक पहुंचाने में लगे युवा सय्यद अमजद

ये रील का दौर है। रील के ज़माने में लोग रियल लाइफ से कटते चले जा रहे हैं। किसी भी उम्र के लोग हों, सभी इन...
दिवंगत उर्दू साहित्यकार अख़्तर ओरेनवी को युवाओं तक पहुंचाने में लगे युवा सय्यद अमजद

ये रील का दौर है। रील के ज़माने में लोग रियल लाइफ से कटते चले जा रहे हैं। किसी भी उम्र के लोग हों, सभी इन दिनों रील के खुमार में खोए हुए हैं। खासकर युवाओं पर इसका नशा कुछ ज़्यादा ही तारी है। भारत में पठन-पाठन की एक समृद्ध परंपरा रही है। पहले संसाधन और आर्थिक क्षमता सीमित होने पर भी बुक क्लब का चलन था लेकिन इंटरनेट और मोबाइल फोन की आसान सुलभता ने युवाओं को गैर अकादमिक पठन-पाठन  विशेषकर साहित्य से बहुत दूर कर दिया है। ऐसे दौर में जब युवा उम्र की दहलीज पर बस कदम रख रहे हैं, किसी युवा द्वारा साहित्य में रुचि, वह भी साहित्य के संरक्षण में रुचि दिखाई जाए तो यह काफी सुखद आश्चर्य का बायस होता है। आज के दौर में भले ही उर्दू चंद सभा, गोष्ठियों तक सीमित होकर रह गई हो लेकिन उर्दू की शुरुआत हिंदुस्तान से हुई थी। उर्दू को तहज़ीब की ज़बान भी कहते हैं। विशेषकर हिंदी भाषी क्षेत्रों यूपी बिहार में एक समृद्ध परंपरा रही है इसी समय समृद्ध परंपरा के वाहक रहे हैं प्रसिद्ध आलोचक कथाकार शायर और शोधकर्ता, अख़्तर ओरेनवी। नए दौर में जैसे-जैसे धुंधली पड़ती इस महान रचनाकार की यादों को सहेजने का बीड़ा उठाया है बिहार के शेखपुरा के रहने वाले युवा सय्यद अमजद हुसैन ने।

अमजद इन दिनों “अख़्तर ओरेनवी: बिहार में उर्दू साहित्य के निर्माता” शीर्षक पुस्तक पर लंबे समय से काम कर रहे थे जिसका प्रकाशन अगले माह प्रस्तावित है। अमजद कहते हैं, "इस रचना के माध्यम से इस महान साहित्यकार के जीवन के बारे में युवा पीढ़ी को बताने का प्रयास है। अख़्तर ओरेनवी की किताब “बिहार में उर्दू ज़बान-ओ-अदब का इरतक़ा” बहुत नामी किताब रही है जिसे उर्दू पढ़ने वाले लोग ज़रूर पढ़ते हैं।"

उपेक्षित उर्दू भाषा

बकौल अमजद, उर्दू में बिहार के कई शायर हुए हैं। जिसमें शाद अज़ीमाबादी,  हुसैनुल हक, आरिफ इस्लाम पुरी जैसे कई नाम शामिल हैं। हिंदी पट्टी में आजादी के बाद भी उर्दू का एक समृद्ध इतिहास रहा और बिहार भी उससे अछूता न था। लेकिन इन दिनों बिहार के बंगाल सीमा से लगे क्षेत्रों को छोड़ दिया जाए तो यह परंपरा बिहार से भी लगभग गायब ही हो रही है जो हमारी पीढ़ी के लिए काफी चिंता का विषय है।

जिस उर्दू भाषा की शुरुआत बारहवीं शताब्दी में दिल्ली से मानी जाती है, उसी उर्दू भाषा के एक साहित्यकार की स्मृतियों को संरक्षित करने के कार्य में लगे 18 वर्षीय सय्यद अमजद हुसैन की स्कूली शिक्षा स्थानीय कन्वेंट स्कूलों में हुई है। फिलहाल वह पश्चिम बंगाल स्थित मौलाना अबुल कलाम आजाद यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्नोलॉजी से बीबीए में अध्ययनरत हैं।

 

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