फ्रांस सैयद हैदर रज़ा की कर्मभूमि रहा है जहां उन्होंने अपने जीवन का एक लम्बा और सर्जनात्मक समय बिताया।
एक चित्रकार के लिए उसके रंग और उनमें वर्णित मूर्त और अमूर्त कथाएँ सपनीली दुनिया के समान होती हैं जिनमें वह केवल अपने होने को ही नहीं तलाशता बल्कि उसके माध्यम से संसार में एक अलग तरह की दुनिया की खोज करता है। यह खोज उसके विश्वास, उसके अपने निर्मित किए ईश्वर, प्रकृति, मनुष्य और प्रेम को पूर्ण करती है। यह पूर्णता भौतिक रूप से शायद दृश्यमान न रहे लेकिन रंगों और आकृतियों द्वारा एक चित्रकार उसमें अपना ऐसा संसार पा लेता है जो उसके भीतर के ईश्वर ने रचा होता है। सैयद हैदर रज़ा एक ऐसे ही चित्रकार के रूप में जाने जाते हैं जिन्होंने अपने जीवन का प्रारम्भ अभावों की क्षति में मध्य भारत के प्राकृतिक माहौल में किया। उन्हें केवल चित्रकार कहना एक उच्च कला बोध को आंशिक रूप से खंडित करना होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि कलाकृतियाँ भी जीवित मनुष्यों की तरह सांस लेती हैं, संसार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती हैं और अपने होने के गुण की पुष्टि वे स्वयं करती हैं। रज़ा की कलाकृतियाँ भी सांस लेती हैं। उनके रंग अपने होने में चमत्कृत करते हैं। उनकी आभा अपने क्रमवार विकास की ओर संकेत करती है।
इन्हीं संकेतों को एक कलाप्रेमी अपनी दृष्टि से तोलता है, अपनी मेधा से समझने का प्रयास करता है। दुनिया भर के कलाप्रेमियों के लिए ही फ्रांस जैसे कला और सौन्दर्य को समर्पित देश के खूबसूरत शहर पेरिस में इस माह रज़ा शती के रूप में सैयद हैदर रज़ा के चित्रों की अब तक की सबसे लम्बे समय तक आयोजित होने वाली प्रदर्शनी का शुभारम्भ किया गया। यह प्रदर्शनी एक भारतीय चित्रकार के जीवन संघर्ष, आध्यात्म, रंगों के प्रति उसकी आस्थावान भाषा और जीवन दर्शन का प्रतीक है। रज़ा फाउण्डेशन के प्रबन्ध न्यासी, सुपरिचित कवि, लेखक, आलोचक और संस्कृतिकर्मी अशोक वाजपेयी के वर्षों के अथक प्रयासों के निर्णायक दिवस के रूप में रज़ा की कलाकृतियों की प्रदर्शनी पेरिस के भव्य और प्रतिष्ठित सेंटर द पोम्पीदू में 14 फ़रवरी से 15 मई तक चलेगी। इस प्रदर्शनी में रज़ा के चित्रों के साथ ही उनके अभिलेखागार से कुछ महत्वपूर्ण तस्वीरें, केटलॉग्स, साथी कलाकारों के साथ उनके पत्रकार आदि भी इस प्रदर्शनी में प्रदर्शित किए गये जिनमें विश्व भर से संयोजित कुल 92 कलाकृतियाँ और 83 दस्तावेज़ शामिल हैं। इन सभी सम्बन्धित महत्वपूर्ण दस्तावेजों को विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त किया गया है।
रज़ा के चित्रों का संसार बहुआयामी था और इस संसार में हर एक दुनिया के अपने कई आयाम हैं। ये आयाम मानवीय प्रतीकों के साथ अमूर्त सत्यों का सत्यापन भी करते हैं। अपनी चित्रकला के माध्यम से रज़ा ने भारत और फ्रांस दोनों देशों के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक सम्बन्धों को न केवल प्रगाढ़ किया है बल्कि दोनों देशों की कलात्मक विरासत की परम्परा को और भी आगे बढ़ाया। रज़ा ने अपनी उम्र के लगभग साठ वर्ष पेरिस में रंगों को कैनवस पर बरतने की रीतियों को समझने में बितायें। भारत की तरह पेरिस भी उनके लिए एक घर था। यहीं उन्होंने अपने रंगों के नवीन प्रयोगों साथ अपना जीवन साथी जानीन के रूप में पाया। जानीन जो ख़ुद एक बेहतरीन कलाकार थीं, ने अपना जीवन रज़ा और उनकी कला के प्रति समर्पित कर दिया।
सैयद हैदर रज़ा का नाम भारत के चुनिंदा सम्मानित और स्थापित चित्रकारों में शुमार है। वे भारतीय सर्वोच्च नागरिक सम्मानों- पद्म श्री, पद्म भूषण, और पद्म विभूषण से सम्मानित थे। जिस समय वे अपने जीवन में रंगों की भाषा समझने के प्रारम्भिक चरण थे, उस समय अपने चित्रों में फॉर्म्स को लेकर वे गंभीर भी हो रहे थे। वे यूरोपियन चित्रकारों के कामों को समझने की प्रक्रिया में थे। उस समय वे पेरिस में थे और उन्होंने जाना कि रंगों की भी अपनी भाषा और संगीत होता है। वे कला के सत्यों में प्रवेश कर रहे थे और अपने मन में उठते प्रश्न कि क्या रंगना है, उसे केवल चेतना ही जानती है, समझ रहे थे। इस तरह पेरिस में रहते हुए उन्होंने अपने चित्रों में बिन्दु के उच्च आध्यात्मिक पक्ष को खोज लिया। यह बिन्दु उनके चित्रों में उनके लिए ऊर्जा का महान केन्द्र बनता गया और वे इस ऊर्जा चक्र का दोहराव करते रहे। यह दोहराव दरअसल रज़ा के लिए एक आध्यात्मिक क्रिया बन गई।
सैयद हैदर रज़ा के चित्रों की अब तक की सबसे बड़ी प्रदर्शनी पेरिस के भव्य सेण्टर दि पाम्पिदू की गैलरी-4 में फरवरी माह से मई तक चलेगी। यह किसी भी भारतीय चित्रकार की अब तक की सबसे लम्बे समय तक चलने वाली प्रदर्शनी तो है ही साथ ही उच्च कला के विभिन्न आयामों को समझने वाले देश फ्रांस में यह एक भारतीय चित्रकार की ठोस उपस्थिति को मिली वैधता भी है। इसे एक ऐसी परिघटना के रूप में भी देखा जा सकता है जो भारतीय कला जगत के संदर्भों में दुर्लभ है। इस प्रदर्शनी के लिए प्रायः सभी दस्तावेज़ भारत से फ्रांस पहुचाएँ गये हैं। उनका रख रखाव और उन्हें लाने ले जाने की पूरी व्यवस्था और ज़िम्मेदारी को एक सक्षम टीम की सामूहिक निगरानी में सम्पूर्ण किया गया।
इस प्रदर्शनी के शुभारम्भ पर सेन्टर पोम्पीदु में रज़ा के प्रशंसक, उनकी कला के कई संग्रहकर्ता, कलावीथिकाओं के कुछ प्रतिनिधि, कलाविद्, अन्तरराष्ट्रीय आक्शन हाउसों के विशेषज्ञ, कुछ हिन्दी युवा लेखक, साहित्य और ललित कला के कर्म नामचीन लोग, भारत के कई कलालोचक और पत्रकार एकत्र हुए।