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'दुख होता है कि आज भी मंदिर-मस्जिद बनाने की बात हो रही'

प्रख्यात सरोद वादक अमजद अली खान का कहना है कि यह दुखद है कि शिक्षा लोगों को एक दूसरे के प्रति हमदर्द बनाने में नाकाम रही और दुर्भाग्य से कुछ लोग आज के दौर में भी मंदिर और मस्जिद बनाने के बारे में बात करते हैं।
'दुख होता है कि आज भी मंदिर-मस्जिद बनाने की बात हो रही'

यह पूछे जाने पर कि क्या प्रवासी भारतीय अतीत के सांस्कृतिक संदर्भों में उलझे हुये हैं,  खान ने कहा कि वे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं लेकिन बेहद शिक्षित होने के बावजूद वे कट्टरपंथी भी हो सकते हैं।

उन्होंने कहा, मैं यह देखकर बेहद दुखी हूं कि वो चाहे प्रवासी हों या शिक्षित भारतीय लोग,  वह अब भी मंदिरों और मस्जिदों को बनाने की बात कर रहे हैं। कुछ प्रवासी भावनात्मक रूप से हमारी संस्कृति और परंपराओं से जुड़े हैं लेकिन कुछ अप्रवासी भारतीय बेहद कट्टर हैं। वे बेहद शिक्षित हैं।

खान अपनी किताब मास्टर ऑन मास्टर्स के विमोचन के मौके पर बोल रहे थे जिसमें उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत के महान सितारों को नमन किया है।

इस किताब में 20वीं शताब्दी के 12 प्रख्यात संगीतज्ञों का जिक्र है जिनमें बड़े गुलाम अली खान, आमिर खान, बेगम अख्तर, अल्ला रक्खा, केसरबाई केरकर, कुमार गंधर्व, एम एस सुब्बालक्ष्मी, भीमसेन जोशी, बिस्मिल्लाह खान, रवि शंकर, विलायत खान और किशन महाराज का नाम शामिल है। भाषा

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